संयम के सौरभ से ही मनुष्य की चेतना महकती है
विधानाचार्य ब्र. त्रिलोक
गोंदिया
सांप पिटारे में हो तो देवता नजर आता है, रोली चंदन से पूजा जाता है. उसकी आरती उतारी जाती है, उसे दूध पिलाया जाता है. लेकिन यही सांप घर में निकल आये तो काल नजर आता है. मिर्ची की धुनि से भगाया जाता है और न भागे तो लाठी से सताया जाता है. ऐसे ही मनुष्य का मन है, यदि संयम के पिटारे में रहे तो मनुष्य धरती पर देवता कहलाता है. कभी महावीर कभी राम कहलाता है. और यदि संयम के पिटारे के बाहर निकल आये तो रावण, दुर्योधन, कंस की तरह दुतकारा जाता है. उक्त भाव भूमि पर चातक की तरह उत्कंठित श्रोताओं को धर्ममृत का नीर पिलाते हुए धर्मोप्रदेशक ब्र.त्रिलोक ने कहा.
जीवन में सत्य से साक्षात्कार हो जाये और संयम न आये यह संभव नहीं है. एक बार निर्णय हो जाये की भोगो में सुख नहीं संताप बढ़ता है. तो कोई कारण नहीं मनुष्य संयम से कदम न बढ़ाये. लगाम से रहित घोडा, ब्रेक से रहित गाड़ी जैसे सवार व्यक्ति का अहित करती है. ऐसे ही संयम के बिना जीवन का हित नहीं होता. त्रिलोक ने श्रोता हृदय को झंकृत करते हुए कहा की भारतीय संस्कृति में इंद्रिय निगृह संयम, तप, त्याग एवं ब्रह्मचर्य यूँ ही नहीं पूजे गए. इनकी सतह में मानवीय विकास एवं आत्म कल्याण के मूलमंत्र छिपे हुए है. चरित्र हीन को सूर्य प्रकाशित नहीं कर सकता, चन्द्रमा आल्हादित, चंदन शीतल नहीं कर सकता, संयम के बिना जीवन जीवित नहीं हो सकता. अतः हम भौतिक मूल्यों के विकास में अंधे होकर नैतिकता का ह्रास न करे.
त्रिलोक जी ने राष्ट्र नायकों, शिक्षाविदों, अभिभावकों एवं युवापीढ़ी को वर्तमान वातावरण में संयम की उपादेयता बतलाते हुए कहा असंयम के नंगे नाच के कारण एड्स जैसी खतरनाक बीमारी राष्ट्र के लिए अभिशाप सिद्ध हो रही है. नारी माँ के रूप में प्रणम्य है, बहन के रूप में पूज्य है, पत्नी के रूप में सृजन हार है परिवार समाज एवं राष्ट्र की. अतः नारी के आदर सम्मान के बिना परिवार समाज एवं राष्ट्र का सम्मान नहीं हो सकता. हमारा सम्मान दुसरो के व्यवहार के साथ-साथ अपने आचरण पर भी निर्भर करता है. अतः पुरुष राम की मर्यादा, कृष्णा के निर्मल प्रेम के साथ महावीर के शील को याद रखे और नारी सीता सावित्री, चंदनवाला सोमा सती के आदर्शो का अनुकरण करे.
अंत में यही कहुंगा लक्ष्मण रेखा में रहो सीते, अब रावण घर-घर में है. सावधान और सजग रहो शील लुटेरा हर मन में है. कार्यक्रम प्रवक्ता सुकमाल जैन के अनुसार भगवान चन्द्रप्रभु के दिव्य दरबार में ज्ञान ध्यान एवं भक्ति की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है. एक ओर जहां त्रिलोक ने अनुभव के मोतियों से गुंथे प्रवचन घर-घर में चर्चा का विषय बने है, तो वंदन गीत भी दिलों दिमाग में गूंज रहे है. साथ ही भक्त हृदय त्रिलोक जी द्वारा पूजन भक्ति आरती में जो प्रभु की महिमा गाई जा रही है वह अदभूत एवं अविस्मरणीय है. की-बोर्ड वादक राजेश राज की उंगलियों का जादू एवं ढोलक पर राजेश वेश्य की संगीत साधना वातावरण में भक्ति संगीत की महक पैदा कर रही थी.