गोंदिया। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का खास महत्व है इस दुर्लभ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से कई फल प्राप्त होते हैं। गोंदिया के शिव भक्तों ने स्थानीय स्वागत लॉन ( गणेश नगर ) में प्रथम पूजनीय श्री सोमनाथजी ज्योतिर्लिंग के मूल अवशेषों के दिव्य दर्शनों का निशुल्क लाभ उठाया । इस पुण्य अवसर पर हजारों श्रद्धालु नतमस्तक हुए इस मौके पर भक्ति संगीत का आयोजन भी किया गया। मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के अवशेषों को लेकर बैंगलोर के आर्ट ऑफ़ लिविंग आश्रम से पधारे सन्यासी स्वयंसेवक सूर्यतेज से नागपुर टुडे ने बातचीत की उन्होंने इस महाराष्ट्र दर्शन यात्रा और अद्भुत और अलौकिक ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
चंद्रदेव ने ब्रह्मांड से लाकर सोमनाथ की थी स्थापना
स्वामी सूर्यतेज जी ने बताया-सोम का अर्थ है (चंद्र देव ) सोमनाथ जी की स्थापना श्रीपति चंद्रदेव जी द्वारा की गई थी जब सोमनाथ जी की स्थापना की गई थी तब वह भू- को स्पर्श नहीं था।सोमनाथ जी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है जो सोमनाथ जी को भू- से एक से डेढ़ फीट ऊपर रखते हैं ऐसा कहा जाता है कि सोमनाथ जी को चंद्रदेव ने ब्रह्मांड से लाकर के इसकी स्थापना की थी कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने भी सोमनाथ जी की तपस्या की थी। हम जितने भी शिवलिंग शिवालयों में देखते हैं वह भू- को स्पर्श रहते हैं लेकिन
सोमनाथ जी अपने आप में बहुत सुंदर , अद्भुत आकर्षक हैं उस गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सोमनाथ जी भू को स्पर्श नहीं करते थे।
वैज्ञानिक परीक्षण: मात्र 2% हैं लोह तत्व
स्वामी सूर्यतेज जी ने बताया- किसी भी तत्व में गुरुत्वाकर्षण शक्ति होता है तो उसमें लोह तत्व बहुत अधिक होता है पर सोमनाथ जी में कहते हैं लोह तत्व ना के बराबर है , लगभग दो प्रतिशत और इसी कारण सोमनाथ जी हवा में रहते थे।
आक्रांता महमूद गजनवी ने किया था सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1026 ईसी में जब विदेशी आक्रांता महमूद गजनवी बार-बार सोमनाथ जी पर आक्रमण कर रहे थे।
17 वीं बार कहते हैं वह आक्रमण करने में सफल हुए और उन्होंने सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त किया , हजारों लाखों भक्तों का नरसंहार किया और सोमनाथ जी जो मूल शिवलिंग में थे उनको भी ध्वस्त किया ,क्योंकि सोमनाथजी आस्था और भक्ति का केंद्र थे इसलिए महमूद गजनवी ने आस्था भक्ति पर प्रहार किया।
अग्निहोत्री पुरोहित ने पुन: जीर्णोधार कर छोटे शिवलिंग का रूप दिया
उस समय वहां अग्निहोत्री पुरोहित परिवार ने सोमनाथ जी के जो अंग थे उनको इकट्ठा किया और उसे लेकर दक्षिण भारत आ गए और तमिलनाडु राज्य में सोमनाथ जी के जितने अंग थे उनका पुन: जिर्णोधार करके छोटे शिवलिंग का रूप प्रदान किया और पूजा पाठ करते रहे और पीढ़ी-दर- पीढ़ी , हजार साल तक परिवार सोमनाथ जी का संरक्षण करता रहा।
इस दौरान अग्निहोत्री परिवार कांचीपुरम के शंकराचार्य से मिले उन्होंने शंकराचार्य को सोमनाथ जी की अद्भुताओं ओर विशेषताओं के बारे में बताया तो कांचीपुरम के शंकराचार्य ने कहा- कि अगले 100 बरस तक आप इसे बाहर लेकर नहीं जाएंगे जिस प्रकार आप पूजा पाठ संरक्षण कर रहे हैं वैसे निरंतर करते रहें।100 बरस के बाद दक्षिण भारत में एक शंकर नाम के संत होंगे आप उनसे जाकर मिलीएगा वह आगे का मार्गदर्शन करेंगे और उसके बाद 2007 में वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया , वैज्ञानिकों ने पाया जिस प्रकार का तत्व सोमनाथ जी में है वैसा तत्व सृष्टि में विद्यमान ही नहीं है । वैरियम ,सिलिकॉन और अन्य तत्वों के अलावा लोह तत्व मात्र दो प्रतिशत है जिस पर वैज्ञानिकों ने भी इसे अद्भुत और अलौकिक बताया।
श्री श्री रविशंकर को सौंपा , लिया दर्शन यात्रा का निर्णय
अग्निहोत्री परिवार के आखिरी संरक्षक सीताराम शास्त्री ये जनवरी 2025 में आर्ट ऑफ लिविंग के बेंगलुरु आश्रम में आए और गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी से मिले और कहा- गुरुदेव यह आपको सौंपना चाहता हूं मेरे परिवार ने बड़े निष्ठा से हजारों साल इसका संरक्षण किया तो गुरुदेव ने कहा- हम इसकी भारत में दर्शन यात्रा करेंगे।
सोमनाथ जी के दर्शन मात्र से लोगों के जीवन में सुख समृद्धि खुशहाली आती है और आस्था भक्ति में वृद्धि होती है तो इस संकल्प के साथ मूल सोमनाथ जी के अवशेषों की यात्रा महाराष्ट्र से शुरू हुई जो तीन अलग-अलग सन्यासी गण द्वारा की जा रही है ऐसी जानकारी देते स्वामी सूर्यतेज ने बताया- संभाजी नगर से विदर्भ के लिए मैंने यात्रा की शुरुआत की अकोला से अमरावती करते हुए गडचिरोली से अभी गोंदिया में और यहां से भंडारा में इस यात्रा का 5 जुलाई को समापन होगा।
दूसरी यात्रा एक सन्यासी नासिक जिले से काफी जिलों को कवर कर रहे है और एक अन्य संन्यासी जो है वह पुना , कोकण सहित पश्चिमी महाराष्ट्र के जिलों में यात्रा कर रहे हैं।
श्रावण मास आ रहा है जिसपर यात्रा प्रारंभ करेंगे ताकि देश के सभी जिलों के भक्तों को इसके दर्शनों का लाभ मिल सके।
जब स्वामी सूर्यतेज से सवाल किया कि- भविष्य में कोई ऐसी योजना है क्या कि दो शिवलिंगों में से एक शिवलिंग की स्थाई रूप से कहीं स्थापना किया जाए और उस स्थान को भव्य मंदिर का स्वरूप दिया जाए तो जवाब देते उन्होंने कहा- इस पर क्या चर्चा चल रही है मैं इसमें कुछ नहीं कह सकता , गुरुदेव श्री श्री रविशंकर ही समय आने पर सही और उचित इसका निर्णय लेंगे।
रवि आर्य