नागपुर: राकां के मुखिया शरद पवार द्वारा आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन होने की सोमवार को स्पष्ट रूप से घोषणा करने के बाद ‘विदर्भ-गढ़’ बचाने की बड़ी चुनौती अब बीजेपी पर आ गई है. राजनीतिक जानकारों का तो दावा यहां तक है कि सब कुछ पवार की प्लानिंग के हिसाब से हुआ तो 1998 में जिस तरह लोकसभा चुनाव के परिणाम राज्य में आये थे, उसी तर्ज पर फिर से एक बार 2019 के लोकसभा चुनाव में हाईवोल्टेज मुकाबला देखने को मिल सकता है.
पवार फिर से संभालेंगे कमान
1998 की तरह इस बार भी खुद पवार फिर से कांग्रेस और राकां की कमान को एकजुट होकर संभालने वाले हैं. दोनों वर्षों के चुनावों में केवल इतना ही फर्क है कि उस समय राकां अलग पार्टी नहीं बनी थी और पवार पुरानी कांग्रेस के सर्वमान्य नेता थे. इस बार फर्क इतना ही है कि दोनों कांग्रेस मजबूरी में एकजुट हो गई हैं और पवार एक बार फिर से नेतृत्व की कमान संभालने वाले हैं.
‘अटल लहर’ को दी थी चुनौती, बीजेपी को मिली थीं मात्र 4 सीटें
1998 के चुनावों में पवार की रणनीति के कारण ही कांग्रेस ने ‘अटल लहर’ को चुनौती दी थी. उल्लेखनीय है कि 1998 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. लेकिन महाराष्ट्र में उसे 48 में से केवल 4 सीटों पर संतोष करना पड़ा था. बीजेपी ने वह चुनाव अपनी सहयोगी शिवसेना के साथ मिलकर लड़ा था और उसे भी इसमें 6 सीटें मिली थीं. इस तरह बीजेपी-शिवसेना को 10 सीटें मिली थीं. इस बार इन दोनों दलों में फिलहाल वैचारिक मतभेद चरम पर हैं, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि दोनों चुनाव के ठीक पहले सब कुछ निपटा लेंगे और बाद में एक साथ ही मैदान में उतरेंगे.
रिपा से गठबंधन, जीतीं थीं 31 सीटें
उस चुनाव में पवार ने ठीक उसी तरह का गठबंधन कर लिया था, जिसकी चर्चा अब महागठबंधन के रूप में की जा रही है. पवार ने महाराष्ट्र के सभी रिपब्लिकन धड़ों को एक साथ कर लिया था. इतना ही नहीं रिपा के सभी धड़ों को चुनावी मैदान में उतारकर उनकी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर भी लगा दिया था. अमरावती सीट से पूर्व राज्यपाल आर.एस. गवई, अकोला से प्रकाश आम्बेडकर, चिमूर से जोगेन्द्र कवाड़े को लड़ाया था.
मजे की बात यह है कि यह सभी रिपा की सीट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे और विजयी भी हुए थे. चिमूर की सीट को लेकर चल रही ऊहापोह में मतदान के ठीक 2 दिन पहले पवार ने ऐसी चाल चली थी कि वह सीट भी कांग्रेस-रिपा ने जीत ली थी. इस तरह कांग्रेस ने राज्य में 31 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि रिपा ने 4 सीटों पर विजय प्राप्त की थी. 3 सीटों पर अन्य उम्मीदवार चुनकर आए थे. देश भर में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन महाराष्ट्र में ‘पवार-प्लान’ से पार्टी को जबरदस्त लाभ हुआ था.
उम्मीदवारों का चुनाव भी बहुत ही सलीके से हुआ था, जिस कारण शत-प्रतिशत जीत सुनिश्चित की गई थी. नागपुर में विलास मुत्तेमवार ने बीजेपी के रमेश मंत्री को पराजित किया था तो रामटेक में चित्रलेखा भोसले ने शिवसेना के अशोक गूजर को. बुलढाना में मुकुल वासनिक ने शिवसेना के आनंद अड़सूल को हराया था. वर्धा में दत्ता मेघे ने विजय मुडे को तो भंडारा-गोंदिया में प्रफुल पटेल ने नारायणदास सराफ को.
चंद्रपुर में नरेश पुगलिया ने वर्तमान केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर को पराजित किया था. वाशिम में सुधाकरराव नाईक ने शिवसेना के ज्ञानेश्वर शेवाले को हराया था. यवतमाल में उत्तमराव पाटिल ने बीजेपी के राजाभाऊ ठाकरे को हराकर जीत हासिल की थी. अमरावती में गवई ने अनंत गुढ़े को, अकोला में आम्बेडकर ने बीजेपी के पांडुरंग फुंडकर को और चिमूर में कवाड़े ने नामदेव दिवटे को हराकर कांग्रेस का हाथ मजबूत किया था.
आम्बेडकर का रोड़ा, बसपा की संजीवनी
2019 में होने वाले चुनाव में कांग्रेस-राकां महागठबंधन के सामने एक बड़ी बाधा प्रकाश आम्बेडकर हैं. आम्बेडकर फिलहाल संभावित गठबंधन का हिस्सा होंगे भी या नहीं, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. पवार किसी भी हालत में उनको शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं. ऐसे में आम्बेडकर यदि राह में रोड़ा बनेंगे तो महाआघाड़ी को संजीवनी देने का काम मायावती की बसपा कर सकती है. माया को महाआघाड़ी में शामिल करके आम्बेडकर की पूरी तरह काट खोजने का काम भी पवार द्वारा किए जाने की जानकारी मिली है. ऐसे में यह मुकाबला बहुत ही ज्यादा रोचक हो जाएगा.
तब स्कोर 11-0 था और इस बार?
महाराष्ट्र में कांग्रेस-रिपा ने जो 35 सीटों पर जीत हासिल की थी, उनमें से विदर्भ का योगदान 11 सीटों का था. विदर्भ की सभी 11 सीटों में कांग्रेस-रिपा ने जीत हासिल की थी. तब का स्कोर 11-0 था और इस बार का स्कोर क्या होगा, इसे लेकर अभी से राजनीति में कयास लगने शुरू हो गए हैं. परिसीमन के बाद अब विदर्भ में 10 लोकसभा सीटें बची हैं. ऐसे में कुछ लोग इस स्कोर को 9-1 (9 महाआघाड़ी) भी बताने से नहीं हिचक रहे हैं. कुछ इसे 5-5 बता रहे हैं तो कुछ का कहना है कि 2014 की तरह इस बार भी कांग्रेस-राकां को शून्य पर ही संतोष करना पड़ेगा.
उलटी गिनती शुरू, नेताओं की धड़कनें भी बढ़ीं
चुनाव आयोग और प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा तैयारी शुरू कर दिए जाने के कारण अब चुनावों को लेकर उलटी गिनती शुरू हो गई है. भंडारा-गोंदिया के चुनावों में जिस तरह के परिणाम देखने को मिले हैं, उसके बाद से बीजेपी-शिवसेना दोनों का मनोबल जमकर गिरा है. कांग्रेस-राकां का मनोबल तो 2014 के बाद से ऊंचा ही नहीं उठा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, दोनों प्रमुख गठबंधनों के कार्यकर्ताओं की धड़कनें बढ़ने लगी हैं.
गड़करी-देवेन्द्र पर दारोमदार
विदर्भ का गढ़ बचाने की पूरी जिम्मेदारी केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस पर आकर रुक गई है. विदर्भ में इन दोनों नेताओं का फिलहाल जलवा है. मात्र चुनाव लड़ते समय किस तरह का गठबंधन होता है, किस तरह के लोगों को टिकट दी जाती है, इस पर असली खेल निर्भर करेगा. कांग्रेस-राकां के पास इनकी टक्कर का कोई नेता फिलहाल तो नजर नहीं आता, लेकिन सब ‘एक साथ’ आ जाएं और भंडारा-गोंदिया जैसा सीन कई सीटों पर दोहराया गया तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
आज कांग्रेस का मंथन, आधे नेताओं को निमंत्रण
राकां की बैठक के बाद अब कांग्रेस ने भी लोकसभा चुनाव को देखते हुए मंगलवार को मुंबई में प्रभारी मल्लिकार्जुन खरगे की अगुवाई में बैठक बुलाई है. प्रदेशाध्यक्ष अशोक चव्हाण की ओर से निमंत्रण भेजा गया है, उसमें विकास ठाकरे, राजेन्द्र मुलक के अलावा विलास मुत्तेमवार, अविनाश पांडे, सुनील केदार, गेव आवारी, बबनराव तायवाड़े, अनंत घारड़, प्रफुल गुड़धे और गिरीश पांडव का नाम है.