Published On : Wed, Dec 6th, 2017

ध्येय में बाधक जवां पेड़ों को किया जा रहा री-ट्रांसप्लांट

Advertisement


नागपुर: सरकारी हो या गैर सरकारी, विकास कार्य के मार्ग में बाधा पहुंचाने वाले कीमती, स्वास्थ्यवर्धक पुराने व बड़ी चौड़ाई वाले वृक्षों को बड़ी बेदर्दी से काट कर बेच दिया जाता और किसी निजी या संस्थान ने उंगलियां उठानी चाही तो कागजों पर दिए गए या प्रस्तावित जगह पर बड़े पैमाने में प्लांटेशन करने की तैयार हलफनामा दर्शाकर अब तक चुप्प करवाते रहे. लेकिन अब नागपुर में राज्य वनविकास महामंडल ने पेड़ों को धाराशाही करने के बजाय री-ट्रांसप्लांट का प्रयोग शुरू किया है.

गोरेवाड़ा जंगल में एफडीसीएम के नेतृत्व में प्रशासकीय इमारत के साथ अन्य निर्माणकार्यों की शुरुआत की गई. इस ध्येयपूर्ति में बाधक, खासकर जंगल के लिए उपयोगी नए वृक्षों के परिसर की खुली जगहों में री-ट्रांसप्लांट किया जा रहा है. इसके लिए एफडीसीएम ने वाल्वो कंपनी की ट्रांसप्लांटर मशीन का उपयोग उन्हीं की विशेषज्ञ दल प्रमुख शिव कुमार अग्रवाल के मार्गदर्शन में उक्त अभियान को सफल अंजाम देने के लिए किया है. एफडीसीएम व वाल्वो के मध्य हुए करार के अनुसार एक माह में रोजाना ८ घंटे यानि कुल २४० घंटे सेवाएं दी जाएंगी, जिसकी एवज में एफडीसीएम ७.५ लाख रूपए का भुगतान करेगी. पिछले १५ से २० दिनों में ५५ वृक्षों का री-ट्रांसप्लांट किया गया. अगले शेष दिनों में ७५ के आसपास और वृक्षों का री-ट्रांसप्लांट किया जा सकता है.

वाल्वो कर चुका है लगभग १२०० री-प्लांटेशन
वाल्वो के परियोजना प्रबंधक अग्रवाल के अनुसार अब तक १२०० से १३०० छोटे, बड़े व मझौले आकार के वृक्षों का री-प्लांटेशन कर चुके हैं. री-प्लांटेशन के पूर्व जिन पेड़ों का री-प्लांटेशन किया जाना है, उनकी समीक्षा की जाती हैं, फिर जब पेड़ों के री-प्लांटेशन के लिए चयन हो जाता है तब अगर पथरीली जमीन पर लहलहा रहे वृक्षों का री-प्लांटेशन करना हो तो पहले वृक्षों के इर्द-गिर्द जेसीबी से चारों ओर की २-३ फुट मिटटी निकाल ली जाती है, फिर इसका इस्तेमाल कर पेड़ को एक जगह से जड़ सहित उखाड़ कर अन्यत्र जगह री-प्लांट किया जाता है. पेड़ की अधिकांश जड़ों के साथ उससे लिपटी शत-प्रतिशत मिटटी भी साथ आना निहायती जरूरी हैं. प्लांटेशन प्रक्रिया के बाद नियमित कम से कम ३ माह पानी से सिंचाई की जाती है. इस दौरान पेड़ के वर्तमान पत्ते सूख जाते हैं फिर नई पत्तियां आती हैं. यह संकेत जीवित होने का समझा जाता हैं. वाल्वो को अब तक इस प्रयोग में ८० से ८२% सफलता मिली है. महाराष्ट्र में वाल्वो का पहला प्रयोग है. वॉल्वो का नॉलेज पार्टनर बैंगलुरू की इंस्टिट्यूट ऑफ़ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Wood Science and Technology ) है.

२२२५ वृक्षों के स्थानांतरित पर होगा १.५ करोड़ रुपए खर्च
एफडीसीएम के अनुसार उनका ध्येयपूर्ति के लिए २२२५ वृक्षों को स्थानांतरित किया जाएंगे. आज के हिसाब से अधिकतम ७ पेड़ों का ८ घंटे में रोजाना री-प्लांटेशन किया जा रहा है. वॉल्वो के साथ हुए करार के अनुसार उनका रोजाना खर्च २५००० रुपए आंका गया है. वैसे एक पेड़ के री-प्लांटेशन के पीछे उन्हें ७ से ८ हज़ार का खर्च होने का अंदाजा व्यक्त किया गया है. इस आंकलन के हिसाब से वॉल्वो ने एफडीसीएम की उद्देश्यपूर्ति के लिए २२२५ पेड़ों को री-प्लांटेशन किया तो वॉल्वो को एफडीसीएम ८० लाख से १.५ करोड़ रुपए खर्च आने का अनुमान है. यह खर्च वॉल्वो की उक्त मशीन खरीदी से काफी सस्ती साबित हो सकती है.

प्राणी संग्रहालय का विकास शुरू
एफडीसीएम के विभागीय प्रबंधक नंद किशोर काले के अनुसार गोरेवाड़ा परियोजना ९५४ हेक्टेयर जमीन पर गोरेवाड़ा प्राणी संग्रहालय विकसित कर रहा है. इस परियोजना के तहत प्रशासकीय इमारत, अन्य इमारत, इंडियन सफारी, अफ्रीकन सफारी, नाइट सफारी, पक्षियों के पिंजरों का निर्माण किया जा रहा है. इसी प्रकल्प के लिए जवां व महत्वपूर्ण पेड़ों का री-प्लांटेशन किया जा रहा है. री-प्लांटेशन से पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ेंगा, जबकि वृक्षारोपण से लाभ लेने के लिए कुछ वर्ष राह तकना पड़ेगा.