नागपुर. जिलाधिकारी की ओर से 3 मार्च 2025 को आदेश जारी कर बोरगांव ग्राम पंचायत के सदस्य व सरपंच श्रीराम धोटे को अयोग्य करार दिया गया. जिसे चुनौती देते हुए विभागीय आयुक्त कार्यालय के अति. आयुक्त के समक्ष चुनौती दी गई. अति. आयुक्त की ओर से 26 मार्च 2025 को आदेश जारी कर जिलाधिकारी द्वारा दिए गए आदेश को उचित ठहराया गया. जिससे सरपंच धोटे की ओर से इस आदेश को चुनौती देते हुए तथा जिलाधिकारी की ओर से जारी आदेश पर रोक लगाने की मांग कर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने 26 मार्च 2025 को अति. आयुक्त द्वारा दिए गए फैसले को खारिज कर दिया. साथ ही याचिककर्ता की अर्जी पर पुन: सुनवाई कर फैसला करने के भी आदेश दिए.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि अति. आयुक्त ने याचिकाकर्ता का आवेदन तो खारिज कर दिया, लेकिन इसका कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया है. दोनों पक्षों की दलिलों के बाद कोर्ट ने आदेश में कहा कि सहायक सरकारी वकील ने आदेश को उचित ठहराने का प्रयास तो किया है, लेकिन तथ्य यह है कि आदेश बिना किसी कारण के दिया गया है.
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की ओर से फैसला दिया है. जिसमें अदालतों को दिशा निर्देश दिए गए है. हाई कोर्ट ने कहा कि सहायक आयुक्त, वाणिज्यिक कर विभाग, वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट और लीजिंग, कोटा बनाम शुक्ला एंड ब्रदर्स, [(2010) 4 एससीसी 785] के मामले में तर्कसंगत आदेश के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सुप्रिम कोर्ट ने बहुत से शब्दों में आदेश व निर्णय के महत्व को स्पष्ट किया है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है कि कारण न बताना न्याय से इनकार करने के बराबर है.
कारण बताना कानून का एक बुनियादी नियम है और प्रक्रियात्मक कानून की अनिवार्य आवश्यकता है. इसे देखते हुए हाई कोर्ट ने रिट याचिका को स्वीकार किया. साथ ही कानून के अनुसार और आदेश के मुख्य भाग में जो कहा गया है, उसके अनुसार नए सिरे से स्थगन की मांग करनेवाले आवेदन पर विचार करने के आदेश अति. आयुक्त को दिए. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अति. आयुक्त के समक्ष उपस्थित होने के भी आदेश दिए.