Published On : Thu, Apr 19th, 2018

“वेश्या-पत्रकारिता” के ये कलंक…!

Advertisement

SN Vinod on Journalist and Governor
जब हमें ‘बाज़ारू पत्रकारिता’ के विशेषण से नवाजा गया, हम शर्मसार हुए थे। हमें ‘वेश्या’कहा गया, ‘दलाल’कहा गया, तब भी हम शर्मसार हुए थे। लेकिन, आज हम गुस्से में हैं। आक्रोशित हैं। क्योंकि, ‘शर्मगाह’ में मुंह छुपाने एक इंच भी जगह उपलब्ध नहीं! बेशर्मों से पटा पड़ा है, भरा हुआ है! बिरादरी का एक बड़ा वर्ग निर्वस्त्र-बेशर्म ‘कोठे’ पर हाँ, हम वेश्या हैं-बिकाऊ हैं की मुद्रा में बैठा दिखा। अब इनसे नैतिकता पत्रकारीय मूल्य, सिद्धांत, जिम्मेदारी, दायित्व की अपेक्षा?..शर्म भी शर्मा जाए!

हाँ, ऐसे ही ‘कुकृत्य’ का अपराधी बन गया है आज पत्रकारों-पत्रकारिता का एक वर्ग।प्रिंट मीडिया के लिए चुनौती बन उभरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ख़बरिया चैनलों ने साबित कर दिया कि वे विशुद्ध रूप से वेश्या हैं, वे कोठे पर बैठे हैं, दलाल उनकी बोली लगाते हैं, खरीदार अंकशायिनी बना शयनकक्ष में ले जाते हैं।ऐसे में समय-समय पर शासक अगर अपनी बूटों से इन्हें रौंदते हैं, खेलते हैं, तो आश्चर्य क्या?

आज तो स्वयं हमारा जी कर रहा है इन्हें रौंदने का!नागपुर निवासी, महाराष्ट्र के एक हर दृष्टि से ईमानदार, मूल्यों-सिद्धांतों की कसौटी पर एक स्थापित आदर्श, अनुकरणीय चरित्र-धारक व्यक्तित्व के स्वामी, प्रातःस्मरणीय राजनेता-पत्रकार, सम्प्रति तमिलनाडु के वयोवृद्ध राज्यपाल आदरणीय बनवारीलाल पुरोहित के चरित्र-हनन का दुस्साहस किया है इन नामाकुलों ने! शर्म कि हथियार बनी एक महिला पत्रकार! किसी महिला के प्रति हम असीम सम्मान रखते हैं। लेकिन, आज हम मजबूर हैं इस टिप्पणी के लिए कि इस महिला पत्रकार ने स्वेच्छा से स्वयं को उन बेशर्मों की गोद में सौंप दिया। कारण दबाव, बेबसी, प्रलोभन हो सकते हैं। लेकिन इनके आगे झुकने वाला पत्रकारिता का दंभ कैसे भर सकता है? उसके कथित आरोप से सभी परिचित हैं।दोहराना नहीं चाहता।लेकिन, टीवी फुटेज की याद दिलाना चाहता हूं। जिसमें महिला पत्रकार के सवाल पूछने पर “बाबूजी” अपने वात्सल्य पूर्ण हथेली से उसका गाल थपथपा देते हैं। बिल्कुल पिता-दादा तुल्य व्यवहार! सवाल के प्रति सराहनीय, आश्वस्ति पूर्ण थपकी!

Gold Rate
27 June 2025
Gold 24 KT 96,400 /-
Gold 22 KT 89,700 /-
Silver/Kg 1,07,500/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

यहां राज्यपाल नहीं, बाबूजी का पत्रकारीय-मन सवाल की सराहना कर रहा था।जवाब नहीं देने का कारण भी उसमें संप्रेषित था।कोई आंख का अंधा भी उस दृश्य को देख सराहना करेगा। एक वयोवृद्ध पत्रकार-राजनेता, एकयुवा पत्रकार को उत्साहवृद्धि की नीयत से,उसके गाल पर थपकी दे दे, अन्य पत्रकारों, राजभवन के कर्मचारियों की मौजूदगी में, तो ख़बरिया चैनलों ने आंखों पर पट्टी बांध अपने राजनेता आकाओं का ‘खेल’खेलने लगे, कुत्सित पूर्ण उनका हित साधने लगे! उनका घृणित खेल साफ दिख गया। राजभवन में इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के समाप्त होने के बाद तत्काल उस महिला पत्रकार ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की। चूंकि उसे स्वयं कोई अनहोनी नहीं लगी थी।आश्चर्य कि कार्यक्रम समाप्त होने के करीब दो घंटे बाद उक्त महिला पत्रकार ने ट्वीट कर आपत्ति दर्ज की। साफ है कि इस बीच महामहिम राज्यपाल के राजनीतिक विरोधियों ने षडयंत्र रच5,महिला पत्रकार को मोहरा बना घोर घृणित कृत्य को अंजाम दिया गया।कोई राजनीतिक हित साधने के लिए, किसी अति सम्मानित वृद्ध का चरित्र-हनन! सर्वथा अकल्पनीय!! लेकिन, नामुरादों ने ऐसी कोशिश की। हम आहत हैं विरादरी की दो बातों को लेकर।

प्रथम वह महिला पत्रकार घिनौने हाथों का खिलौना क्यों और कैसे बनी? दूसरा, ख़बरिया चैनलों के पत्रकार, एंकर, संपादक अंधे कैसे बन गए?टीवी फुटेज में उन्हें बाबूजी का पिता-दादा तुल्य वात्सल्य नज़र कैसे नहीं आया? साफ है कि ये भी राजनीति कर रहे थे-अपने आकाओं की घृणित आकांक्षाओ की पूर्ति की राजनीति! राजनीति में प्रतिद्वंद्विता होती है।होनी भी चाहिए।लेकिन स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता!क्या इसी को पत्रकारिता कहते हैं? क्या यही सम्मानित-पवित्र पत्रकारिता है जिसका हम दंभ भरते हैं?शर्म करो।उतार फेंको पत्रकारिता का लबादा। पापी हो तुम। घृणित हो तुम इस आवरण के हकदार तुम नहीं।तुम तो पत्रकारिता के नाम पर कलंक हो।कोठे पर बैठी वेश्या और तुम में फर्क कहाँ?तुम्हारे जैसों के कारण पूरी विरादरी बदनाम हो रही है।बेशर्मों, अपने परिवार की ओर देखो,अपने माता-पिता की ओर देखो और पूर्ण विराम लगा दो ऐसी विलास-लोलुप पत्रकारिता पर!

Advertisement
Advertisement