नागपुर: कोराडी स्थित बिजली निर्माण केन्द्र से निकलने वाली विद्युत पारेषण लाइन के नीचे वर्षो से हज़ारों लोग जीवनयापन कर रहे हैं. इनमें अधिकांश वर्ग मजदूर है. खास तौर से वर्षों पूर्व इन मजदूरों को बिजली निर्माण केंद्र निर्माण करने वाली कंपनी ने ही लाया था. इसी कंपनी ने इन रहवासियों को सर्व-सुविधायुक्त व्यवस्था कर टॉवर लाइन के नीचे बसाया था. फिर कंपनी का कार्य पूरा होते ही इन रहवासी मजदूर परिवारों को जस के तस उनके हाल पर छोड़ दिया गया.
ज्ञात हो कि वर्ष २००४ में पतंगबाजी के चक्कर में यहां के किसी मजदूर के तीन बच्चे बिजली की स्पार्किंग के चपेट में आने के कारण झुलसने से मौत हो गई थी. जिनमें से एक की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. इस घटना से नाराज नागरिकों ने बच्चे की लाश को लेकर कोराडी पुलिस थाने के सामने रख कर अपना गुस्सा उतारा था. इस आंदोलनकारियों से निपटने के लिए पुलिस व ऊर्जा निर्माण केंद्र प्रबंधन को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी.
निर्माण केंद्र के तकनिकी सूत्रों के अनुसार जब आसमान में बिजली चमकती है, तब इस टॉवर लाइन से चिंगारी निकलती है. बताया जाता है कि तारों से जुडी अर्थिंग पट्टी काफी पुरानी हो चुकी है. टॉवर लाइन के नीचे बसाये गए मजदूरों की बस्तियों के ठीक ऊपर अक्सर जगह जगह स्पार्किंग होती रहती है. कभी-कभी विस्फोटक आवाज भी आती है.
उल्लेखनीय यह है कि भारतीय विद्युत अधिनियम १९५६ की धारा के अनुसार पारेषण लाइन के पास न्यूनतम २० मीटर व अधिकतम ३५ मीटर तक निवासी क्षेत्र नहीं होना चाहिए। समय समय पर विद्युत निरीक्षकों ने निरिक्षण के बाद हाईटेंशन लाइन के नीचे की बस्तियों को स्थानांतरित करने की सलाह भी दी थी. लेकिन बिजली निर्माण केंद्र प्रबंधन इस सलाह को नज़रअंदाज करता रहा है.
वर्ष २००२-२००३ में राज्य की तात्कालीन राज्यमंत्री सुलेखा कुंभारे ने उन मजदूरों की बस्तियों का पुर्नवास करने की मांग की थी. जिसका नतीजा यह निकला था कि राज्य सरकार ने हुगली मार्ग पर विद्युत मंडल की खाली पड़ी १७ एकड़ जमीन इन मजदूरों के पुर्नवास के लिए मंजूर की थी. तब इस जगह पर पट्टे वितरण का काम भी शुरू किया गया था. लेकिन लोकसभा चुनाव की अचार संहिता लागु होने के कारण मामला अधर में लटक गया. इस जगह पर १२०० मजदूरों को विस्थापित किए जाने की योजना थी. जबकि लगभग ४ से ५ हज़ार मजदूर परिवार का पुनर्वास अत्यंत जरुरी था. इतना ही नहीं कोराडी-महादुला का बाजार भी इसी टॉवर लाइन के नीचे लगता है. इसी लाइन के नीचे ज्वलनशील पदार्थो की बिक्री भी होती है.
इस मामले को लेकर मोदी फाउंडेशन समेत स्थानीय जागरूक नागरिकों ने पुलिस प्रशासन, विस्फोटक विभाग, राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण, राजस्व विभाग, यातायात विभाग समेत ऊर्जा मंत्रालय के ध्यान में लाया गया. लेकिन आज तक पुनर्वास की पहल नहीं हुई, बल्कि बस्तियों में कल तक कच्चे मकान आज पक्के मकानों में तब्दील होने के साथ ही साथ जनसंख्या भी दिनों-दिन बढ़ी है. मोदी फाउंडेशन समेत स्थानीय जागरुक नागरिकों ने स्थानीय विधायक एवं राज्य के ऊर्जामंत्री से उक्त मजदुर परिवारों को अन्यत्र जगह पुनर्वास करने की पुनः मांग की है.
– राजीव रंजन कुशवाहा