Published On : Fri, Dec 28th, 2018

2019 के चुनाव में जातियों के प्रश्न बनेगा मुख्य मुद्दा- सीएसडीएस

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नागपुर : 2019 में राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव जातियॉ के मुद्दों और प्रश्नों पर केंद्रित होगा। देश में विभिन्न मुद्दों पर सर्वे के लिए पहचानी जाने वाली संस्था सेंटर स्टड़ी ऑफ़ डेवलपिंग सोसायटी( सीएसडीएस) के सर्वे यह जानकारी सामने आयी है। राजनीतिशास्त्र के प्रोफ़ेसर और विदर्भ,उत्तर महाराष्ट्र के लिए सीएसडीएस के समन्वयक प्रो राजेश बावगे के मुताबिक आगामी चुनाव वर्ष 2014 में हुए आम चुनाव से अलग होगा। इसमें शामिल मुद्दे भी भिन्न होंगे। 2014 में हुआ चुनाव मोदी और विकास पर केंद्रित था पर अब परिस्थियाँ बदल चुकी है। इसके पीछे की बड़ी वजह सोशल मीडिया का अधिक सशक्त होना और इसकी पहुँच ज्यादा से ज्यादा लोगो तक होना है।

नवंबर के महीने में किये गए इस सर्वे में सरकार की परफॉर्मेंस।,केंद्र और राज्य सरकार की योजना उनके क्रियान्वयन,सोशल मीडिया की राजनीतिक चर्चा प्रमुख मुद्दे रखे गए थे। बावगे का कहना है कि आम मतदाता वर्ष 2014 में सोशल मीडिया में राजनीतिक चर्चाओं में दिलचस्पी दिखता था अब वैसी स्थिति नहीं है। पहले राजनीतिक टिपण्णियों पर सोशल मीडिया द्वारा प्रतिक्रिया भी नहीं दी जाती थी मगर आज वैसा नहीं है। विदर्भ जैसे क्षेत्र में दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में 2014 के मुकाबले 2018 में मोबाईल का इस्तेमाल लगभग दोगुना हो गया है। जिसके पास स्मार्ट फ़ोन है वह किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़ा हुआ है। अब सार्वजनिक होने वाली बातों पर व्यापक तरीक़े से चर्चा हो रही है। बावगे के अनुसार आगामी चुनाव में सोशल मीडिया प्रभावी रहेगा लेकिन इसका असर 2014 की तरह दिखाई नहीं देगा। जो राजनीतिक दल तर्कों के साथ अपनी बात रखेंगे उसे लाभ मिलने की संभावना अधिक होगी।

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एट्रोसिटी के मुद्दे को लेकर ओबीसी,ऊंची जाति के लोग बीजेपी से नाराज़
बीते लोकसभा चुनाव के बाद अब तक देश में कई जनआंदोलन खड़े हुए है। विदर्भ में किसान और जातियों के सवाल पर आंदोलन हुए। राज्य में आरक्षण के साथ कई मुद्दों को विभिन्न जातियों के आंदोलन खड़े हुए। गाँव-गाँव में अपनी जाति के प्रश्नों पर चर्चा हो रही है। अब तक मिले आश्वाशन और उनकी पूर्तता पर व्हाट्सएप ग्रुपों पर चर्चा हो रही है।

राज्य में होने वाले आगामी लोकसभा चुनाव में जातियों के प्रश्नो का मुद्दा बड़ा फैक्टर बनेगा। विशेष तौर पर ग्रामीण मतदाता किसी दल को सत्ता में बैठने की केंद्रीय सोच के भिन्न अपने अधिकारों को लेकर मताधिकार का प्रयोग करने के मूड में है। एट्रोसिटी के मुद्दे को लेकर बीजेपी के रुख बाद ओबीसी या ऊंची जाति के लोग मौजूदा सरकार से नाराज़ होने की बात सीएसडीएस के सर्वे में निकलकर आयी है।

राजनीतिशास्त्र के अन्य प्रोफ़ेसर संदीप तुडलवार ने भी सोशल मीडिया के चुनाव और मतदाता पर पड़ने वाले असर को लेकर रिसर्च की है। उनकी रिसर्च के मुताबिक सोशल मीडिया का प्रभाव पिछले आम चुनाव से अधिक होगा। इसके पीछे की बड़ी वजह से सोशल मीडिया में राजनीतिक चर्चाओं का गिरता स्तर है। युवा सोशल मीडिया में हो रही चर्चाओं पर ज्यादा संजीदगी नहीं दिखा रहे। मूल प्रश्नों से इतर अन्य मुद्दों पर बहस ज़्यादा हो रही है। युवाओं को लेकर किये गए अध्ययन में राजनीति को लेकर सोशल मीडिया में राजनीति को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई दी है।

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