File Pic
नागपुर: नागपुर महानगरपालिका की आर्थिक हालात कागजों पर सबल और हक़ीक़त में काफी जर्जर हो चुकी है. इससे संभलने के लिए न खाकी और न ही खादी साथ दे रहे हैं, बल्कि समय काटने के लिए दोनों (खाकी व खादी ) ऋण पर ऋण लेने का दबाव बना रहे हैं. ऐसा ही एक प्रस्ताव कल होने जा रहे मनपा की आमसभा में चर्चा के साथ मंजूरी के लिए रखा गया है. जबकि समय की मांग के अनुसार उक्त प्रस्ताव विचार में लाया ही नहीं जाना चाहिए था.
गत महा नागपुर के सांसद व केंद्रीय भूतल परिवहनमंत्री नितिन गडकरी ने शहर के विकास कार्यों का जायजा लेने के लिए सत्तापक्ष के पदाधिकारियों और मनपा के अधिकारियों की अहम बैठक बुलाई थी. इस बैठक में सत्तापक्ष के पदाधिकारी-नगरसेवकों ने आर्थिक अड़चनों के कारण विकासकार्य रुके होने की जानकारी दी. इससे तमतमाए गडकरी ने मनपा अधिकारियों को फटकार लगते हुए उन्हें कहा कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं, इसको ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित, अधूरे व अटके कार्यो को पूर्ण करने की चेतावनी दी गई. फिर इसके लिए जरूरत पड़े तो ऋण ले लो, पर सभी महत्वपूर्ण कार्य पूरा करो.
इस फटकार के बाद मनपा प्रशासन ने समीक्षा कर एक पुराना ऋण जो इसी वर्ष ख़त्म हो रहा, उसे आगे बढ़ाते हुए २०० करोड़ का ऋण लेने को तैयार हुआ, जिसे स्थाई समिति ने मंजूरी प्रदान कर दी. अब मनपा आमसभा में मंजूरी बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.
सफेदपोश को खुश करने के लिए २०० करोड़ के ऋण के बाद अब मनपा प्रशासन मनपा की बिजली विभागप्रमुख के पहल पर बिजली विभाग पूर्ति और २० करोड़ ऋण लेने के लिए कल होने वाली आमसभा में प्रस्ताव ला रहे हैं. इस प्रस्ताव के अनुसार आमसभा की मंजूरी के बाद राज्य सरकार मनपा को सड़क में बाधक बिजली खंभे हटाने व स्थानांतरित करने के लिए एकमुस्त या किस्तों में २५ करोड़ ऋण देगी. जिसमें से ५ करोड़ माफ़ कर २० करोड़ लौटाना होगा. यह ऋण राज्य सरकार मासिक जीएसटी की किस्तों में समाहित कर देगी.
अब तक राज्य सरकार द्वारा जीएसटी से मासिक आने वाली निधि का खर्चा मनपा प्रशासन के निर्णायक मंडल कार्यों की महत्ता के आधार पर किया करते रहे हैं. लेकिन जीएसटी के माध्यम से उक्त ऋण का पूर्ण निधि सर और सिर्फ बिजली विभाग के प्रस्तावित कार्यों के लिए खर्च किया जाएगा, ऐसी आशंका मनपा मुख्यालय में चर्चा में है.
बिजली विभाग के कार्यों की हो समीक्षा
यह विभाग आम जनजीवन और नगरसेवकों के दायरे के बाहर है. इस विभाग के कामों की समीक्षा गहराई से की गई तो स्ट्रीट लाइट के लिए एलईडी खरीदी में कारखाना विभाग जैसा मामले प्रकाश में आ सकते हैं. अब तक देखा गया है कि इस विभाग की जितनी भी बड़ी-बड़ी फाइलें तैयार की गईं, उसे मंजूरी दिलाने के लिए विभागप्रमुख खुद के कक्ष दर कक्ष घूम-घूम मंजूर कराते हैं. इससे दाल में कुछ काला होने के संकेत मिल रहे हैं.