Published On : Fri, Dec 12th, 2014

काटोल : सौंदर्य का मतलब सिर्फ दिखना नहीं, दूसरे भी वैसा बनें

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  • ‘तारूण्यभान’ कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर  डॉ. राणी बंग की नसीहत
  • युवाओं के मन-मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ेगा : न्या. नंदनपवार

Tarunyabhan Katol
काटोल (नागपुर)। जवानी में युवा वर्ग को उचित मार्गदर्शन की सख्त जरूरत होती है नहीं तो वे गलत मार्ग में चल निकलते हैं. लैंगिक जीवन जिंदगी का सबसे आनन्दपूर्ण क्षण है. केवल जानकारी के अभाव में युवाओं के मन में अश्लीलता की भावना जागृत होती है. सौंदर्य का मतलब दिखना नहीं, अपितु दूसरे भी वैसा बनें, वैसी अपनी इच्छा हो. सिर्फ स्वयं को स्वीकारने की अपनी मानसिकता न हो. सभी जगहों पर स्त्री-पुरुष समान नहीं समझे जाते हैं. हरेक के घर में लड़का-लड़की में भेदभाव किया जाता है. जो लड़का अपनी बहन की मदद करेगा, वह अपनी पत्नी को घर काम में भी मदद करेगा, तब समानता का निर्माण होगा. बेटी की शिक्षा सिर्फ अच्छे जीवन साथी मिले इसलिए न हो, बल्कि स्वयं के बल पर खड़ा हो सके, उसे उस दृष्टि से शिक्षा मिले. उक्ताशय के विचार महाराष्ट्र भूषण डॉ. राणी बंग ने ‘तारूण्यभान’ की कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर नबिरा महाविद्यालय के प्रांगण काटोल में रखे.

कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में शिक्षा प्रसारक मण्डल के सदस्य डॉ. गोविंद भूतड़ा, मार्गदर्शक के रूप में डॉ. राणी बंग व प्रमुख अतिथि के रूप में न्यायाधीश जी.के. नंदनवार, व्या. शेख, प्राचार्य डॉ. मिलिंद पाटिल, रमणलाल नबिरा, मदन नबिरा, राजू बिसाणी, सुनंदा खोरगड़े, ज्ञानेश्वर पाटिल, कृष्ण मोहन जायसवाल, राजेन्द्र खसारे, सचिन वैद्य प्रमुखता मंच पर उपस्थित थे.

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Tarunyabhan Katol  (2)
इस अवसर पर न्यायाधीश नंदनपवार ने कहा कि संविधान में स्त्री व पुरुषों को समान अधिकार दिया गया है. फिर भी बेटी का जन्म आज भी अशुभ माना जाता है. तारूण्यभान की कार्यशाला के माध्यम से युवतियों के दिमाग में लैंगिक शिक्षा का बीजारोपण होगा. दिमाग का तनाव नष्ट होकर मसाज होगा व समाज में समानता आने में मदद मिलेगी.

कार्यक्रम का प्रास्ताविक प्राचार्य डॉ. मिलिंद पाटिल परिचय प्रा. आदिल जीवाणी, संचालन डॉ. पुनीत राऊत किया. आभार प्रदर्शन प्रा. रोहीकर ने किया. सफलतार्थ डॉ. तेजसिंह जगतले, प्रा. परेश देशमुख, राजेन्द्र धुर्वे, प्रा. पुरुषोत्तम कुबड़े (उपप्राचार्य), प्रा. विजय कड़ू, प्रा. लक्ष्मीकांत धानोरे, डॉ. श्रीपाद सोनेगांवकर, डॉ. राजू पोटे आदि ने अथक परिश्रम किए.

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