Published On : Sat, Sep 2nd, 2017

…अब मनपा में सत्तापक्ष नेता सुपर-सुप्रीमो की भूमिका में

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Tanaji Wanve
नागपुर:
मनपा में कांग्रेस पक्ष नेता पद को लेकर चल रही न्यायालयीन लड़ाई को विराम लगाते हुए उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के न्यायाधीश द्वय धर्माधिकारी व देव ने वर्तमान पक्ष नेता को कायम रखते हुए,इनके विरोधी खेमे की याचिका सिरे से रद्द कर दी. फिलहाल इस निर्णय से वनवे खेमा फूले नहीं समा रहा तो दूसरी ओर सत्तापक्ष वनवे को कायम रखने के निर्णय से इतनी प्रफुल्लित हुई कि पहली बार पक्ष-विपक्ष के नेता इस कदर गले मिल फ़ोटो सेशन किये,मानो दोनों ने मिलकर लड़ाई लड़ी और जंग जीती हो.

वनवे की न्यायालयीन जीत के बाद मनपा में यह साफ हो गया कि अब अगले सम्पूर्ण कार्यकाल के लिए सत्तापक्ष को उनके मेनिफेस्टो सह सपनों को बड़ी आसानी से पूरा करने में कोई कांटा नहीं रहेंगा. इनदिनों मनपा में सत्तापक्ष की कमान पक्षनेता संदीप जोशी के हाथों में है. इनकी सहमति,सलाह-मशविरा के बगैर इनदिनों मनपा में एक भी बड़ी निर्णय नहीं होती है, इसलिए मनपा में जोशी को सुपर-सुप्रीमो कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होंगी. इनके समक्ष स्थाई समिति अध्यक्ष को छोड़ दिया जाए तो महापौर-उपमहापौर निष्क्रिय पदाधिकारी की श्रेणी में सत्तापक्ष के नगरसेवक रखते हैं. वजह साफ है कि उन्हें अनुभव की कमी होने से वक़्त पर सिर्फ मूक-प्रदर्शन करते अक्सर देखे जा सकते हैं.

दूसरी ओर विपक्ष नेता वनवे सही में ‘वन-वे’ जैसा ही भूमिका निभा रहे हैं. वे मनपा से संबंधित मामलों में सिर्फ एक विशेष नगरसेवक से ही सलाह-मशविरा करते है,शेष को पक्ष में लेकर साथ चलने में असहज महसूस करते हैं. पिछले दिनों इसका विरोध भी हुआ था. जिसका साथ लेकर चलने में विपक्ष नेता को अड़चन में जिस वरिष्ठ नगरसेवक ने खड़ा किया था,यह वरिष्ठ नेता जब सत्तापक्ष नेता था तो उक्त नगरसेवक ने तब इसके खिलाफ भी लामबंदी करने की कोशिश करते हुए, पूर्व महापौर का कन्धा का इस्तेमाल किया था.

इस वरिष्ठ नगरसेवक के बगैर तानाजी का एक भी कदम आगे नहीं बढ़ता है,इसलिए की उन्हीं की मदद से विपक्ष नेता पद की प्राप्ति हुई हैं. यह और बात है कि वनवे स्वभाव से इतने लचीले है कि अपने कामों को सफल अंजाम देने के लिए पक्ष-विपक्ष,अधिकारी-कर्मचारी का भेद नहीं करते हैं.इसलिए उन्हें शुरुआत से अबतक सफलता मिलती रही है,आज इनके इस सोच का सत्तापक्ष को काफी लाभ होंगा. अंदरूनी रूप से सत्तापक्ष के हाँ में हाँ मिलाते रहेंगे और सत्तापक्ष पदाधिकारी अपने पक्ष और खुद के मेनिफेस्टो को सफल अंजाम देते रहेंगे. इसलिए सत्तापक्ष वनवे का कायम रहने पर फूले नहीं शमा रहा है. वहीं वनवे की जगह संजय महाकालकर जीते होते तो नामजद नगरसेवक विकास ठाकरे के ही होना तय था.तब सत्तापक्ष को प्रत्येक पहल पर हर जगह से पसीना बहाना पड़ता. याने सम्पूर्ण कार्यकाल सरदर्दी में गुजर जाती.यह और बात है कि महाकालकर उच्च न्यायालय में हार से घर बैठने के बजाय सुप्रीम कोर्ट जाकर न्याय की गुहार लगाने की जानकारी मिली हैं.

वरिष्ठ नगरसेवक को तय रणनीति के आधार पर तानाजी में महाकालकर के बजाय इसलिए रुचि है कि तानाजी के रहने से इस वरिष्ठ नगरसेवक को खुद व अपने गुट( नरु-फुके) के व्यवसाय को मनपा में पैर फैलाने में आसानी होंगी.वैसे भी दोनों मनपा के विवादास्पद ठेकेदार हैं.दोंनो से संबंधी ठेके से मनपा को बदनामी ही झेलनी पड़ी हैं. वरिष्ठ नगरसेवक खुद बिल्डर है,वे अक्सर अपने गुट से जुड़े मुद्दों पर सभागृह व उसके बाहर चुप्पी साधे रहते है,जबकि इनसे जुड़ी मुद्दे जैसे स्टार बस घोटाला,कनक के कर्मचारियों से उगाही,शमशान घाट की लकड़ी आपूर्ति,सड़क के गड्ढे बुझाने में निकृष्ट दर्जे का काम आम जनता से जुड़ी होने के बाद भी चुप रहना और खुद को शहर की तमाम जनता का प्रतिनिधि कहना हास्यास्पद हैं.

वरिष्ठ नगरसेवक वैसे भी जब से कांग्रेस में आये है तब से लेकर आजतक सिर्फ और सिर्फ अपने चुनावी क्षेत्र व अपने करीबियों से सम्बंधित मुद्दों को उछालने तक सिमित रहे है. आज कांग्रेस ने उन्हें राज्य कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण स्थान दिया,बावजूद इसके खुद के शहर का नेतृत्व करने का मामला टालते रहे है, वे कांग्रेस के नगरसेवकों को साथ लेकर एवं उनसे जुडी मसलों को तहरिज देने से दूर रहते है.इसलिए इस सोच के विपक्षी वरिष्ठ नगरसेवक का मनपा में होने से सत्तापक्ष काफी उत्साहित है..आज मनपा में विकास का न होना कांग्रेसी नगरसेवक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है.

न्यायालय के निर्णय से कोई जीता नहीं बल्कि कांग्रेस हारी
जब कोई पक्ष अपने टिकट पर चुनाव लड़वाता है,और उनमें से जीत कर आने वालों में से किसी एक को अपने अधिकार के तहत नेता चुनता है.तो उस नेता को किसी भी सूरत में बदलने/निष्काषित करने आदि का अधिकार सिर्फ उस पक्ष प्रमुख को होता है,यह जग-जाहिर प्रथा है.इसी तर्ज पर कांग्रेस ने मनपा चुनाव में चुनकर आये नगरसेवकों में से संजय महाकालकर को पक्ष नेता बनाया. कुछ महीनों बाद चुने हुए नगरसेवकों ने लामबंदी कर शहर के तथाकथित नेताओं की शह पर महाकालकर को बिना प्रदेशाध्यक्ष की सहमति से हटा कर वनवे को पक्ष नेता बना दिया. इससे कांग्रेस की बड़ी हार और पनपती अनुशासनहीनता कही जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए. फिर सत्तापक्ष ने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर उक्त कांग्रेस विरोधी गुट को हवा देकर अपने मनमाफिक डमी को विपक्ष नेता बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,जिसपर न्यायलय की कृपा होने से कांग्रेस विरोधी जीत तो गए लेकिन सोनिया-राहुल की कांग्रेस हार गई.जीतने वाले अक्सर विपक्ष के साथ के बगैर कभी एक-कदम कम से कम राजनीत में चलते नहीं देखे गए.आज कांग्रेस को हरा कर ख़ुशी मनाने वालों से शहर के सच्चे कांग्रेसी या तो दुखी है,या फिर घर बैठने में ही भलाई समझ रहे है.और जो अतिमहत्वकांक्षी है वे पाला बदल सत्तापक्ष में शामिल होने की योजना बना रहा है.