नागपुर: राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय का दावा है कि यूनिवर्सिटी का कार्य डिजिटल हो चुका है. विद्यार्थियों के कई शिक्षा से संबंधित कार्य विश्वविद्यालय प्रशासन सॉफ्टवेयर के माध्यम से करता है. लेकिन वर्षों से विद्यार्थियों के रिजल्ट और उनकी डिग्रियों में नामों में गलतियां दोहराई जा रही हैं, जिस पर विश्वविद्यालय का ध्यान नहीं है. अनेकों ऐसे विद्यार्थी हैं जिनके चार सेमेस्टर के रिजल्ट के प्रमाण पत्रों में से दो सेमेस्टर में उनका नाम सही है, लेकिन बाकी दो रिजल्ट में नाम गलत है. तो कई विद्यार्थियों की डिग्रियों में इंग्लिश में तो नाम सही है. लेकिन मराठी में उनका नाम गलत है.
परीक्षा विभाग की गलती का भुगतान विद्यार्थियों को करना पड़ रहा है और विद्यार्थियों को नाम में सुधार करने के लिए भी नागपुर यूनिवर्सिटी के अमरावती रोड स्थित परीक्षा विभाग के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन का इस बारे में कहना है कि नाम गलत होने पर विद्यार्थी अगर परीक्षा भवन आए तो चेकलिस्ट करके उनके डिग्रियों में और रिजल्ट में सुधार करके उन्हें दिया जाता है. लेकिन सवाल उठता है कि इतनी तकनिकी सॉफ्टवेयर की बातें करनेवाली नागपुर यूनिवर्सिटी द्वारा आखिर नामों में वर्षों से गलतियां होने का सिलसिला क्यों नहीं थम पा रहा है. इस गलती का सीधा असर विद्यार्थियों पर हो होता है. नाम में गलती हो जाने पर उनकी पढ़ाई तो प्रभावित होती ही है, साथ ही इसके उन्हें परीक्षा विभाग के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं.
इस पर नागपुर यूनिवर्सिटी के परीक्षा विभाग नियंत्रक डॉ. नीरज खटी ने बताया कि मार्कलिस्ट में विद्यार्थी का जो नाम होता है, वैसा ही डिग्रियों में नाम दिया जाता है. सॉफ्टवेयर के माध्यम से ही यह कार्य किया जाता है और मार्कलिस्ट का ही नाम सॉफ्टवेयर में सेव किया जाता है. ट्रांसलेशन में अगर गलती हो तो विद्यार्थी यहां आकर सुधार सकते हैं. बाबू द्वारा चेकलिस्ट करने के बाद ही ही विद्यार्थियों के नाम डिग्रियों में डाले जाते हैं.