डॉक्टरों के लिए मरीजों से ज्यादा ‘भाईचारा’ निभाना जरुरी
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– 1200 सरकारी डॉक्टरों के समर्थन में 3600 निजी डॉक्टर भी हड़ताल में कूदे – नागपुर में भी मरीज ‘रामभरोसे’
नागपुर: मरीज के परिजनों द्वारा सरकारी डॉक्टरों के साथ बढ़ते हिंसक टकराव का विरोध करते हुए महाराष्ट्र भर के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर गत चार दिन से कामबंद हड़ताल पर हैं। अपने हड़ताल की सफलता के लिए सभी सरकारी डॉक्टरों ने सामूहिक अवकाश ले रखा है। नागपुर के मेडिकल, मेयो सहित अन्य सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों के बदतर हाल हैं। मेडिकल अस्पताल में इलाज के अभाव में दो दर्जन से ज्यादा मरीजों के असमय मौत के मुंह में समा जाने की खबर है। राज्य सरकार ने छह महीने की वेतन कटौती की चेतावनी के साथ सरकारी डॉक्टरों को तुरंत काम पर लौटने के निर्देश दिए थे, लेकिन सरकार के निर्देश के बावजूद सरकारी डॉक्टरों ने तो काम पर लौटना मंजूर नहीं किया, उल्टे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सख्त निर्देश के मद्देनजर निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों ने भी अपनी ओपीडी मरीजों के लिए बंद कर दी है। महाराष्ट्र सरकार और डॉक्टरों के इस टकराव के बीच आम मरीज बुरी तरह पिस रहे हैं।
हड़ताली डॉक्टरों का कहना है कि उनकी हड़ताल एक-दो दिन के लिए नहीं बल्कि अनिश्चितकालीन है। हड़ताल तब तक जारी रहेगी कि जब तक सरकार और अदालत उनकी समस्याओं का संज्ञान लेकर उसके निराकरण के लिए कानूनी प्रावधान नहीं करती।
उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने डॉक्टरों को अविलंब काम सुचारु करने के आदेश दिए थे। अदालत के आदेश नहीं मानने पर कल राज्य सरकार ने 1200 में से 440 हड़ताली डॉक्टरों को निलंबित किया, बावजूद इसके डॉक्टर अपनी हड़ताल पर अड़े हुए हैं। हड़ताली डॉक्टरों के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा था, ‘यदि आप डॉक्टर जन काम नहीं करना चाहते तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? आप कोई फैक्ट्री मजदूर हैं, जो कामबंद हड़ताल कर रहे हैं? शर्म नहीं आती आप लोगों को? आप डॉक्टर होकर ऐसा व्यवहार करते हैं?’
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यह जनहित याचिका आफ़ाक़ मंडाविया ने दायर की है। उनके वकील दत्ता माने ने उच्च न्यायालय को बताया कि ऐसी ही एक हड़ताल पर फटकार के बाद महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ़ रेसिडेंट डॉक्टर्स (मार्ड) की ओर से अदालत को पिछले साल आश्वस्त किया गया था कि भविष्य में वे कभी हड़ताल नहीं करेंगे। उच्च न्यायालय ने इसे अदालत की अवमानना भी माना है।
मुंबई के सायन अस्पताल का मामला
इस हड़ताल की शुरुवात सोलापुर में एक सरकारी डॉक्टर को मरीज के परिजनों द्वारा बेदम पीटने के विरोध में शुरु हुई। धीरे-धीरे सोलापुर के डॉक्टरों के साथ राज्य भर के डॉक्टर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। इस बीच मुंबई के सायन अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ गाली-गलौज और अभद्रता की घटना हुई। एक बच्चे की हालत नाजुक थी, लेकिन हड़ताल की वजह से डॉक्टरों ने तय तरीके से इलाज करने से मना कर दिया था। मरीज के परिजनों द्वारा महिला डॉक्टर से हुए दुर्व्यवहार की शिकायत पुलिस थाने में बड़ी मुश्किल से दर्ज हुई।
हड़ताली डॉक्टरों का कहना है कि अब तक न जाने कितने ही डॉक्टरों के साथ मारपीट और अभद्रता की वारदात हो चुकी है, लेकिन आरोपियों पर अदालत के आश्वासन के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। यदि आरोपियों पर कार्रवाई होती तो सोलापुर, ठाणे और मुंबई में इस तरह की घटनाएं ही न होती। हालाँकि राज्य सरकार ने हड़ताली डॉक्टरों पर जरुर कार्रवाई करनी शुरु कर दी है और कनिष्ठ डॉक्टरों से सायन हॉस्टल जबरन खाली करा लिया गया है।
आइएमए सख्त
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने महाराष्ट्र के हड़ताली सरकारी डॉक्टरों के साथ मजबूती से खड़े होने के निर्देश अपने सदस्यों को दिए हैं। आइएमए का कहना है कि वे मार्ड की हड़ताल का समर्थन करते हैं, आखिर हम भी इंसान हैं और दुर्व्यवहार से बचाव और जान की अमान हमें भी तो चाहिए।
नागपुर टुडे ने नागपुर के कुछ निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों से बात की।
डॉ. अविनाश पोफली
डॉ. अविनाश पोफली : मैं हड़ताल पर हूँ। अपने साथियों के साथ चर्चा कर आगामी कार्ययोजना पर विचार किया जाएगा।
डॉ. दिलीप धांडे
डॉ. दिलीप धांडे : मैं हमेशा कोशिश करता हूँ कि मरीज के इलाज में उनके परिजनों पर ज्यादा आर्थिक भार न आने पाए, यदि मरीज की हालत ऐसी होती है कि इलाज के बावजूद उसे बचाया न जा सके तो मैं पहले ही उनके परिजनों को बता देता हूँ, फिर भी मरीज की मौत हो जाये तो ये परिजन अस्पताल में सिर्फ इसलिए तोड़फोड़ करते हैं कि उन्हें बिल न देना पड़े। मीडिया ही असल में मरीजों को इस तरह की हरकत करने के लिए उकसाता है।
डॉ. राजेश स्वर्णकार
डॉ. राजेश स्वर्णकार : मैंने भी हड़ताल का समर्थन करते हुए अपनी ओपीडी बाहरी मरीजों के लिए बंद कर दी है, हालाँकि जो मरीज अस्पताल में भर्ती हैं, उनका इलाज जारी है, यदि कोई मरीज बहुत ही नाजुक अवस्था में लाया जाता है और तुरंत उपचार से उसे बचाया जा सकता है तो मैं जरुर उसके इलाज के बारे में सोचूंगा, लेकिन उससे किसी तरह की फीस नहीं लूँगा, क्योंकि हड़ताल पर हूँ।
डॉ. निकुंज पवार
डॉ. निकुंज पवार : मैं डॉक्टरों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा के खिलाफ हूँ और मांग करता हूँ की ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, हालाँकि मैं भी हड़ताल पर हूँ, लेकिन गंभीर रोग से पीड़ित कोई मरीज मेरी संज्ञान में आएगा तो मैं उसकी जान बचाने की पूरी कोशिश करुंगा क्योंकि यह मेरा फ़र्ज़ है।
उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टरों के लिए बनाये गए कानूनी प्रावधान का उल्लेख किया, कहा, ‘ऑस्ट्रेलिया के अस्पतालों में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है, “आप डॉक्टरों पर आक्रोश जताइए और फिर मजे से जेल में 14 साल बिताइए।”
Dr. Uday Bodhankar
डॉ. उदय बोधनकर : मैं भी हड़ताल पर हूँ। क्यों न रहूँ? महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर डॉक्टर मरीज के परिजनों के गुस्से का शिकार होते हैं, उन सभी के खिलाफ अपराध भी दर्ज होता है लेकिन पूरे राज्य में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है कि जहाँ डॉक्टर पर हमला करने वाले पर कोई कार्रवाई हुई हो!
मुख्यमंत्री की अपील को मार्ड ने किया ख़ारिज
राज्य के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने सरकारी अस्पतालों में 11 सौ सुरक्षा रक्षकों (सिक्योरिटी गॉर्ड) की तैनाती का भरोसा हड़ताली डॉक्टरों को दिलाते हुए अविलम्ब हड़ताल ख़त्म करने और काम पर लौटने की गुजारिश की, लेकिन मार्ड ने मुख्यमंत्री की गुजारिश को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि इस तरह के आश्वासन कई बार पहले भी दिए गए हैं, लेकिन सरकार आश्वासन देने के सिवाय कुछ नहीं करती है।
कार्रवाई के बाद ही हड़ताल खत्म करने पर विचार किया जाएगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने भी महाराष्ट्र के सरकारी एवं गैर-सरकारी डॉक्टरों से हड़ताल खत्म करने की अपील की है। उनकी अपील पर मार्ड की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।