Published On : Thu, Nov 14th, 2019

लाइब्रेरी विकास के लिए सरकार एंव निजी संस्थान द्वारा विशेष ध्यान देने की जरूरत

Advertisement

राष्ट्रिय पुस्तकालय सप्ताह विशेष- डाॅ. प्रितम भि. गेडाम

नागपुर– पुस्तके मानवी जीवन का अभिन्न अंग है वह जीवन के हर पल मे यह साथ निभाती है। पुस्तकालय आज के युग मे बहुत उन्नत हुए है घर बैठे इंटरनेट द्वारा एक क्लिक पर पुस्तके, नियतकालिकाए, हस्तलिखीत व दुर्लभ ग्रंथ अन्य दस्तावेज उपलब्ध होते है इस सेवा मे सबसे महत्वपुर्ण रोल पुस्तकालयाध्यक्ष का है जिसके द्वारा यह जरूरी सेवाएं प्राप्त होती है। पुस्तकालयो का स्वरूप लगातर बदल रहा है उसी रूप मे पुस्तकालयाध्यक्ष की भूमिका भी बदल रही है, आज यांत्रीकी, डिजीटल व व्हर्चुअल पुस्तकालयो का दौर है इसीलिए पाठको तक उन्नत सेवाएं प्रदान करने की जिम्मेदारी भी पुस्तकालयाध्यक्ष की बढ गयी है। हर वर्ष 14-20 नवंबर को पुरे देश मे “राष्ट्रिय पुस्तकालय सप्ताह” के रूप मे मनाया जाता है।

पुस्तकालयो मे कर्मचारीयो की भारी कमी
समाज मे शैक्षणिक, व्यावसायीक, सार्वजनीक, विशेष विषय संबंधित जैसे अनेक पुस्तकालय मौजूद है लेकीन इनमे से कुछ प्रतिशत ही पुस्तकालय अपने ध्येय व उद्देश को सही ढंग से पुरा कर पाते है अर्थात देश मे पुस्तकालय विज्ञान के पितामह डाॅ. एस. आर. रंगनाथन द्वारा निर्देशित पुस्तकालय पांच नियम का अनुसरण पुस्तकालय मे अनिवार्य है फिर भी क्या उन नियमो का पालन सही ढंग से हो रहा है? पाठको तक पुस्तके पहुचाना है लेकिन प्रत्येक पुस्तक को पाठक तक पहुचाना भी जरूरी है आज भी अधिकतर पुस्तकालयो मे अमुल्य ज्ञान के भंडार साहित्य-सामग्री धुल खाती हुई नजर आती है। आज के आधुनिक युग मे पुस्तकालयो का महत्व काफी बढ गया है पारंपारीक पुस्तकालयो से लेकर आज के व्हर्चुअल पुस्तकालयो तक का सफर तय हुआ है।

कुछ बडे-बडे शहरो की बात छोड दे तो अन्य जगहो पर देश के 90 प्रतिशत से ज्यादा पुस्तकालय अभी भी अद्यावत तकनिकी विकास से कोसो दूर है पुस्तकालयो के विकास मे कर्मचारीयो की कमी सबसे बडा रोडा और उसमे भी कुशल कर्मचारी। बडी संख्या मे विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, सार्वजनीक पुस्तकालयो मे पुस्तकालयाध्यक्ष व संबंधित कर्मचारीयो के पद रिक्त पडे है। हर साल पुस्तकालय विभाग से बडी संख्या मे कर्मचारी निवृत्त हो रहे है।

सरकारी स्कूलो मे भी बडी तादाद मे पुस्तकालय विभाग के सालो से पद खाली पडे है। स्थानिक प्रशासन द्वारा संचालीत पुस्तकालयो की भी ऐसी ही स्थिती है देश के कुछ राज्यो मे भरती होती है लेकिन कई-कई राज्यो मे तो सदिया गुजर गई लेकिन पुस्तकालय कर्मचारी भरती पर ध्यान नही दिया गया। अधिकतर पुस्तकालय तो कंत्राटी पद्धती या चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारीयो के भरोसे चल रही है तो फिर किस प्रकार यहा डाॅ. एस. आर. रंगनाथन द्वारा दर्शाये गये फाईव लाॅ का पालन किया जाता होगा? कैसे गुणवत्तापुर्ण शिक्षा को बढावा मिलेगा? दुर्गम स्थानो की परिस्थिती तो और भी खराब है। केंद्रिय विद्यालय, नवोदय विद्यालयो की तरह सभी राज्यो ने भी हर वर्ष स्कुलो मे पुस्तकालय कर्मचारी भरती करवानी चाहीए।

पुस्तकालय सुचना विज्ञान क्षेत्र मे बढती बेरोजगारी चिंताजनक
देश मे पुस्तकालयो की खस्ता हालत के लिए कुशल कर्मचारीयो की कमी तो बडी समस्या तो है लेकीन पर्याप्त मात्रा मे इस क्षेत्र मे खाली पडे पदो पर नियुक्ती ना होने के कारण देश के युवाओ को बेरोजगारी की मार झेलनी पड रही है। पुस्तकालय शास्त्र एक प्रोफेशनल कोर्स होने के बावजूद भी पुस्तकालय के एक-एक पद हेतु भी सेकडो की संख्या मे आवेदन आते है एक ओर हम आधुनिक व सुचना के युग मे विश्वस्तरीय शिक्षाप्रणाली की ओर अग्रसर होने के लिए प्रयत्नशिल है

और दूसरी ओर शिक्षा का आधार अर्थात पुस्तकालयो मे ये गंभीर समस्या नजर आती है। ऐसा नही की देश मे पुस्तकालय विज्ञान मे उच्चशिक्षीत तज्ञ कुशल मनुष्यबल की कमी है बल्कि उल्टे उच्चशिक्षीत युवावर्ग मे बेरोजगारी समय के साथ चिंताजनक रूप मे बढ रही है। देश के कई-कई राज्यो की तो ऐसी स्थिती है की देहाडी मजदूर से भी कम वेतन पर पुस्तकालय कर्मचारी कार्य करने को मजबूर है ऐसे मे देश की शिक्षाव्यवस्था कैसे सुदृढ होगी? विदेशो मे पुस्तकालयो के क्षेत्र मे उल्लेखनीय प्रगती हुई है हर ओर व्हर्चुअल पुस्तकालयो का नेटवर्क फैला हुआ है एंवम पुस्तकालय सेवा मे प्रतीव्यक्ती पाठक पर अधिक मात्रा मे निधी खर्च किया जाता है उस मुकाबले हम अत्यधिक पिछडे हुए है उदाहरण के लिए देखा जाए तो अमेरीका के मुकाबले हम पुस्तकालय मे प्रतीव्यक्ती सेवा के लिए 1 प्रतिशत निधी भी खर्च नही करते है। सरकार एंवम संस्थाओ ने इस गंभीरता को जल्दी समझना अत्यावश्यक है।

पुस्तकालयो का महत्व समझना अत्यावश्यक
पुस्तकालय ज्ञान का केंद्र होता है और गुणवत्तापुर्ण मनुष्यबल व शिक्षीत समाज के निमार्ण मे पुस्तकालय की महत्वपुर्ण भूमिका होती है। आज देश के बहुत सी जगह पर ऐसे पुस्तकालय देखने को मिल जायेंगे जो उचित रखरखाव व निधी की कमी से दम तोड रहे है और वहा की अमूल्य धरोहर नष्ट हो रही है। निधी की कमी, जनजागृती की कमी, संस्थापको व प्रशासकीय अधिकारीयो द्वारा उपेक्षा, उचीत प्रबंधन की कमी, उच्चशिक्षीत तज्ञ कर्मचारीयो की कमी व अन्य कारणो से आज भी हमारे देश मे पुस्तकालय की स्थिती संतोषजनक नही है। आज वास्तवीक रूप से देखा जाए तो पुस्तकालय संपन्न तरीके से समाज के विकास मे भागीदार होने चाहिए। हमारे यहा के पुस्तकालय विश्वस्तर के अनुसंधान केंद्र के रूप मे विकसीत होने चाहीए। समाज मे सभी ओर यांत्रीक पुस्तकालय, डिजीटल व्र्हचुअल पुस्तकालय होने चाहीए अर्थात पुस्तकालय मे आॅनलाईन सेवा, नवनवीन यांत्रीकी संसाधन, उच्चशिक्षीत कर्मचारी, कौशल्य प्रशिक्षण, योग्य प्रबंधन, उचित बजट, सरकार की भागीदारी व अन्य बातो से पुस्तकालय का विकास विश्वस्तरीय रूप मे सफल होगा। विकास के नाम पर लिपापोती नही होनी चाहीए। हर जिले व नगर मे अत्याधुनिक पुस्तकालयो की स्थापना होनी चाहिए। हर गांव, हर सरकारी दफ्तर, विभागो, निजी संस्थानो मे पुस्तकालय बनने चाहीए। बच्चो को बचपन से ही पुस्तकालय के उपयोग व सहभागीता के प्रति लगाव हो इसके लिए उचित कार्यप्रणाली होनी चाहीए। सरकार ने पुस्तकालय भरती पर विशेष ध्यान केंद्रित करना चाहीए साथ ही पर्याप्त निधी की भी आवश्यकता पुर्ती जरूरी है।

पुस्तकालय हमेशा अग्रसर होनेवाला केंद्र है और इसमे लगातार बढौतरी होनी ही चाहीए। एक विषयतज्ञ व्यक्ति ही अपने विभाग का कार्य सुचारू रूप से कर सकता है औ उचित सेवाएं प्रदान कर सकता है तो पुस्तकालयो से संबंधित समस्याओ को दुर कर देंगे तब ये ही सभी समस्याएं गुणो मे बदलकर पुस्तकालयो को प्रगतीपथ पर ले जायेंगे और देश के विकास मे अहम रोल निभायेंगे।