Published On : Wed, Feb 6th, 2019

राज्य में सिकुड़ती शिवसेना समाप्ति की ओर !

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– पिछले १० साल से संगठनात्मक उत्थान नहीं,सेंध लगाती जा रही भाजपा

नागपुर: एक दौर था जब शिवसेना प्रमुख बालासाहेब के हाथ में शिवसेना की कमान थी,तब शिवसैनिकों में शिवसेना प्रमुख के इशारे पर कुछ भी करने का नशा था.आज शिवसेना प्रमुख सिमित हो गए और सेना के नेता अधिकार विहीन हो गए.कट्टर शिवसैनिक तीतर-बितर हो गए या फिर जोश ढीला पड़ गया.नतीजा शिवसेना का राज्य में भविष्य खरा नहीं दिख रहा,जिस कदर भाजपा सेना के मांद में सेंध लगाते फिर रही,समय रहते सेना हरकत में नहीं तो अगले कुछ चुनावों के अंत तक राज्य में मनसे की तर्ज पर निपट जाएंगी।

पिछले १० वर्षों में शिवसेना ने संगठन और राज्य के कोने कोने में पैर फ़ैलाने की कोशिश नहीं की.उनका ध्यान मुंबई और आसपास के जिलों तक केंद्रित रहा.नतीजा राज्य के अधिकांश जिलों में शिवसेना नाम मात्र की रह गई.

१८ सांसद रबर स्टंप हो गए

पहली मर्तबा शिवसेना के इतने बड़े पैमाने में सांसद चुन कर आये.लगभग डेढ़ दर्जन सांसद के भरोसे शिवसेना ने राज्य में गई-गली में पैठ बना लेनी चाहिए थी,लेकिन कुछ उल्लेखनीय नहीं कर पाए,पिछले साढ़े ४ साल सिर्फ भाजपा को भपकी देते गुजार दी.

सेंध लगा दी भाजपा ने

युति के दौरान दोनों पक्षों में तय हुआ था कि भाजपा मुंबई तो सेना विदर्भ में सिमित रहेंगी लेकिन भाजपा ने धीरे-धीरे मुंबई और आसपास के जिलों में गहरी पैठ बना ली,आज बराबरी से ज्यादा पर सेना से सौदेबाजी को आमादा हैं.वही दूसरी ओर सेना विदर्भ में गंभीरता नहीं दिखाई इसलिए विदर्भ में सेना के सांसद भाजपा से युति चाहते क्यूंकि सेना विदर्भ में न के बराबर हैं.

कट्टर शिवसैनिक चाहते हैं पक्ष बढ़ाना

शिवसैनिकों का मानना हैं कि सेना को भाजपा की शर्ते मानने के बजाय सेना को लोकसभा चुनाव स्वतंत्र लड़ना चाहिए।इससे पक्ष का जितना भी उम्मीदवार जीत दर्ज करें उससे संतुष्ट होना चाहिए,साथ ही साथ पक्ष का जनाधार,शिवसैनिकों में जोश बढ़ेंगी।इसका बड़ा फायदा आगामी विधानसभा चुनाव में निश्चित होंगा।विधानसभा चुनाव की कमियां स्थानीय निकाय चुनाव में पूरी हो जाएंगी।

सेना का राजनैतिक सलाहकार बदलना समय की मांग

राज्य में कभी सेना अग्रणी पक्ष हुआ करती थी आज चौथे क्रमांक पर पहुँच चुकी हैं.ऐसी स्थिति में पक्ष के राजनैतिक सलाहकारों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही.पक्ष के उज्जवल भविष्य के लिए सेना प्रमुख को कठोर निर्णय लेने का वक़्त आ चूका हैं.इस क्रम में सर्व प्रथम सेना ने अपना राजनैतिक सलाहकार बदलना चाहिए और साथ ही साथ शिवसेना के दिग्गज नेताओं को पूर्ण अधिकार देकर जिले जिले में तैनात करना चाहिए।

नागपुर जिले में सेना समाप्ति की ओर

लगभग डेढ़ दशक पूर्व नागपुर जिले में शिवसेना जागृत थी.जिले का संपर्क प्रमुख ताकतवर था,उनके मेहनत से सुबोध मोहिते सांसद बाद में केंद्रीय मंत्री बना,इसके अलावा सेना को नागपुर जिले से आशीष जैस्वाल के रूप में विधायक मिला। बढ़ते सेना को रोकने के लिए भाजपा ने पहले संपर्क प्रमुख को निपटाया फिर मोहिते व जैस्वाल को आगोश में किया।

इसके बाद बाहरी शेखर सावरबांधें के हाथ में शहर की कमान आते ही शहर से शिवसेना को समाप्ति की कगार पर पहुंचा दिया।इसके बाद सतीश हरड़े ने रहा-सहा कसर पूरी कर दी ,ले देकर सेना के नाम पर शहर में २ नगरसेवक हैं,जो कि अपने दम पर टिके है,जिन्हें पक्ष तवज्जों नहीं देता।

दूसरी ओर नागपुर जिले में सेना जाधव व जैस्वाल के मध्य विचरण किया करती थी,पिछले लोकसभा चुनाव में दोनों के विरोध के मध्य भाजपा के सहयोग से तुमाने सांसद बन गया। अब सेना राज्य में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ी तो यह भी सीट निपट जाएंगी।

जिले में तथाकथित शेष शिवसैनिक,पदाधिकारी कार्यकर्ताओं को मोहताज हैं,न जिले और न ही शहर में पूर्ण कार्यकारिणी हैं.जिला संपर्क प्रमुख भी ५ वर्ष में ५ दफे बदल चूका हैं.ऐसे लोकसभा या विधानसभा लड़ने लायक सेना के पास खुद का एक भी उम्मीदवार नहीं,ऐसी सूरत में चुनावी जंग में स्वतंत्र रूप से कूदने के लिए बाहरी सक्षम उम्मीदवारों पर आश्रित होना पड़ेंगा।जो सक्रियता दिखा रहे वे असल में भाजपा भक्त कहे जा रहे हैं.