२०१८ का बकाया भुगतान तो २०१५ के बकाया पर सधी चुप्पी ,मनपा वित्त विभाग का अजब-गजब कारोबार
नागपुर मनपा में पूर्णकालीन लेखा व वित्त विभाग प्रमुख न होने से मनपा की आर्थिक स्थिति काफी चरमरा गई हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह विभाग में ऊपर से लेकर नीचे तक अनुभवहीनों को प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपा जाना बताया जा रहा है.
ज्ञात हो कि मनपा की आय का प्रमुख स्त्रोत संपत्ति और जल कर माना जाता है. लेकिन इस ओर प्रशासन का पूरी ख़बरदारी के साथ ध्यान न दिए जाने से पिछले एक दशक से तय वार्षिक बजट का आधा भी वसूली नहीं हो पा रही है. तो दूसरी ओर नगरसेवकों, पदाधिकारियों, जनता और प्रशासन की पहल पर किए जा रहे विकासकार्यों का तय समय पर बिल न तैयार किए जाने से ठेकेदारों को भूखों मरने की नौबत आ गई है.
संपत्ति कर और जल कर विभाग में ऊपर से लेकर जोन कार्यालय के निचले अधिकारी-कर्मचारियों तक पिछले ५ वर्षों से एक ही पद पर जमे हैं. जिससे मनपा के उम्मीद के अनुरूप कर वसूली नहीं हो पा रही है. उक्त विभागों में ५ वर्ष से अधिक समय से विराजमान अधिकारियो-कर्मियों का अन्य विभागों में या फिर अंतर्गत तबादला किया गया तो इस वर्ष कर संकलन में बढ़ोतरी देखी जा सकती है. आज भी हर एक ज़ोन में ऐसे हज़ारों की संख्या में संपत्ति धारक हैं, जिन्होंने आज तक कोई कर नहीं भरा है. इन तक सम्पत्तिकर विभाग पहुंचा ही नहीं.
दूसरी ओर मनपा की निधि से विकासकार्य करने वाले ठेकेदारों को पिछले कुछ वर्षों से कनिष्ठ अभियंता स्तर से परेशान किया जा रहा है. कई ठेकेदारों के बिल आज भी नहीं बनाए गए.
ठेकेदारों का साफ़ साफ़ कहना है कि वित्त विभाग में बिल का भुगतान पाने के लिए जेबें ढीली करनी पड़ती हैं. कुछ विशेष लोगों का छोड़ दिया जाए तो बिना जेब ढीली किए एक भी फाइल का भुगतान नहीं होता.
मनपा वित्त विभाग में आधा दर्जन से अधिक बाहरी अधिकारी अनावश्यक तैनात हैं. इन्हें लोकल समझ नहीं होने से ठेकेदारों और नगरसेवकों को काफी अड़चनें हो रही हैं. मनपा की आमसभा में पिछले दिनों ऐसे अधिकारियों को उनके मूल जगह पर भेजने के विषय पर आम सहमति बनी थी, लेकिन इस ओर कोई ठोस क़दम नहीं उठाए गए.
मनपा के वित्त विभाग में ठेकेदारों को प्रभारी अधिकारी काफी परेशान करते हैं. और जब ठेकेदार वर्ग नाराज हो जाता है तो अपने बचाव में वित्त विभाग के अधिकारी मनपा आयुक्त से मिलने का निर्देश देते हैं. मनपा के ठेकेदारों ने मनपा प्रशासन अंतर्गत विभागों के प्रमुखों के निर्देश पर मौखिक रूप से इमरजेंसी काम करते रहे हैं. बाद में फाइल, कोटेशन, टेंडर निकलता रहा. यहां तक कि साल भर बाद बिल बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती रही. लेकिन न मनपा और न ही जनता को हलाकान नहीं होने दिया.
इसके लिए ठेकेदार बैंक के अलावा व्यवक्तिगत उधारी (ब्याज पर ) लेकर मनपा का हित साधते रहे. लेकिन जब से मनपा में बाहरी अधिकारियों का जमावड़ा बढ़ा तो ठेकेदारों की परेशानियां भी बढ़नी शुरू हो गई. अब देखना यह है कि मनपा आयुक्त से मिलने कितने ठेकेदार वर्ग पहुंचते हैं और उनसे गुहार लगाते हैं. इसके बाद आयुक्त का जवाब उनकी कार्यप्रणाली की रुपरेखा तय करेगा.