Published On : Wed, Sep 26th, 2018

SC ने राज्यों को दिया एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने का अधिकार

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सुप्रीम कोर्ट ने आज सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है. फैसला सुनाते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही था, इसलिए इस पर फिर से विचार करना जरूरी नहीं है. यानी इस मामले को दोबारा 7 जजों की पीठ के पास भेजना जरूरी नहीं है.

फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये साफ है कि नागराज फैसले के मुताबिक डेटा चाहिए. लेकिन राहत के तौर पर राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करना जरूरी नहीं है. इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों की दलील स्वीकार की हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आंकड़े जारी करने के बाद राज्य सरकारें आरक्षण पर विचार कर सकती हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखकर नीति बना सकती हैं.

1. वर्गों का पिछड़ापन निर्धारण

2. नौकरी में उनके प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता

3. संविधान के अनुच्छेद 335 का अनुपालन

कोर्ट ने कहा कि पिछड़ेपन का निर्धारण राज्य सरकारों द्वारा एकत्र आंकड़ों के आधार पर तय किया जाएगा. बता दें कि नागराज बनाम संघ के फैसले के अनुसार प्रमोशन में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती. इस सीमा को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि ‘क्रीमी लेयर’ के सिद्धांत को सरकारी नौकरियों की पदोन्नती में एससी-एसटी आरक्षण में लागू नहीं किया जा सकता.

दरअसल, 2006 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने सरकारी नौकरियों में प्रमोशन पर आरक्षण को लेकर फैसला दिया था. उस वक्त कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इस तरह की व्यवस्था को सही ठहराया था.

हालांकि, 12 साल बाद भी न तो केंद्र और न राज्य सरकारों ने ये आंकड़े दिए. इसके बजाय कई राज्य सरकारों ने प्रमोशन में आरक्षण के कानून पास किए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ये कानून रद्द होते गए. एससी/एसटी संगठनों ने प्रमोशन में आरक्षण की मांग को लेकर 28 सितंबर को बड़े आंदोलन का ऐलान कर रखा है.

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