देश की राजनीती विगत कुछ वर्षो से काफी ज्यादा सोशल मीडिया से निर्णायक स्वरूप में प्रभावित हो रही है.सोशल मीडिया ने लोगो में राजनीति एवं राजनेताओ को लेकर नई चेतना , जागरूकता जगाई है. मतदाताओ में लगभग ४० % की भागीदारी युवाओ की है. युवा वर्ग सोशल मीडया से पूरी तरह जुड़ा हुआ है. राजनितिक दल इंटरनेट व सोशल मीडिया का उपयोग युवाओ में पार्टियों के एजेंडे और राजनेताओंके के प्रचार के लिए करते है. २०१४ के चुनाव में सोशल मीडिया का उपयोग राजनैतिक दलों में ‘ रणभूमि ‘ की तरह किया गया है और आने वाले २०१९ चुनाव में फिरसे निर्णायक भूमिका में सोशल मीडिया अपना किरदार निभाएगा .
२०१४ के चुनाव में सोशल मीडिया के उपयोग में माहिर श्री नरेंद्र मोदी एवं उनकी यंत्रणा ने कांग्रेस को करारी हार दी. उन्होंने अपने पर्सनल आईडी से किये गिव ट्वीट , ‘ नमो ‘ एप द्वारा एवं फेसबुक से अपने एजेंडे को सुदूर गांवो में तक पहुंचाया . छोटे से छोटे गांव में भी उनका ” होलोग्राम ” वाला चित्र परिचित था . जबकि राहुल गांधी ने २०१५ में अपना ट्विटर अकाउंट खोला है . विपक्ष ने सोशल मीडिया उपयोग और महत्व को जाना है परन्तु आज भी श्री नरेंद्र मोदी के फेसबुक पर तक़रीबन ४३ करोड़ फोलोवर है और ट्विटर पर ४५ करोड़ से अधिक लोगों से संपर्क है. इसी वजह से वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय राजनेता के तौर पर जाने जाते है.जबकि राहुल गांधी के ट्विटर से केवल ८ . १ करोड़ और फेसबुक पर २ . २ करोड़ लोग जुड़े है.
वर्तमान में हमारे देश में तक़रीबन ४५ करोड़ स्मार्टफोन उपभोक्ता है, जबकि पिछले चुनाव में २०१४ में १५ .५ करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन था . यह आकड़ा काउंटर पॉइंट सर्वे द्वारा पता चला है. यह आकड़ा अमेरिका की इंटरनेट जनसँख्या के बराबर है. हमारे देश में करीब ९० करोड़ मतदाता होने जा रहे है. जिसमे से करीब आधी जनसँख्या स्मार्टफोन का उपयोग कर रही है. हमारे देश में ३० करोड़ लोग फेसबुक व लगभग २० करोड़ लोग व्हाट्सप्प आदि समान्तर आप्लिकेशन्स का उपयोग करते है. जो कि किसी भी देश की इंटरनेट जनसँख्या से अधिक है.
सोशल मीडिया विश्लेषक व डाटा जानकार अगले चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे इसमें कोई दो रे नहीं है . सोशल मीडिया के दुरूपयोग करने की संभावना भी अधिक है.इससे धार्मिक या सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का काम किया जा सकता है.हमारे देश में कई धरम व समुदाय के लोग रहते है,ऐसे में सोशल मीडिया का दुरूपयोग घातक सिद्ध हो सकता है. पिछले वर्ष अफवाह व झूठी खबरों की वजह से देश में ३० लोगों को जान गवानी पड़ी, इससे कई अफवाह बच्चों के अपहरण को लेकर थी.व्हाट्सप्प और कई समान्तर एप्लीकेशन में सैकड़ो उपभोक्ता एक साथ सन्देश, विचारों, फोटो को भेज सकते है. जबकि अफवाह को रोकने के लिए अब तक कोई विशेष नोडल एजेंसी नियुक्त नहीं की गई है. व्हाट्सप्प ने कई देशो में एक बार में एक साथ मेसेज भेजने की सिमा को २० तय किया है. जबकि भारत में ५ है जबकि व्हाट्सप्प के सिवा कई और समान्तर सोशल मीडिया ऍप है जिनसे यह किया जा सकता है . ब्राजील में चुनाव के दौरान हजारों सोशल मीडिया अकाउंट को बंद कर दिया गया था. लेकिन सॉइल मीडिया के अन्य साधन जैसे टेलग्राम अब भी प्रचार के लिए उपलब्ध है.
चुनाव के समय व्यक्तिगत मानसिकता को समझके राजनैतिक नियोजन करने का उदय – “ सायकोमेट्रिक्स प्रोफाइलिंग “
वर्तमान समय में कई पार्टिया मतदाताओ के “ साइकोमेट्रिक प्रोफाइल “ या ” मनोवैज्ञानिक सोच ” का डाटा तैयार करने का प्रयास कर सकती है . इस प्रोफाइल का इस्तेमाल करके मतदाताओ की जरुरत , मानसिक अवस्था के हिसाब से चुनावी एजेंडा तैयार किया जा सकता है. फिल्ड पर काम करने वाले पार्टी के कार्यकर्ता मतदाताओ के सीधे संपर्क में रहते है एवं सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करते हुए पार्टी और मतदाताओ के सीधे संपर्क में बनाते है . पार्टी और मतदाताओ में तारतम्य बनाने में भी उनकी अहम् भूमिका होती है. ऐसा माना जा रहा है कि भविष्य में चुनाव प्रचार में खर्च में कमी आएगी , क्योंकि सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार , प्रसार को बढ़ावा मिलेगा . इसके लिए अब बैनर, लाउडस्पीकर , सभाये नहीं, बल्कि लैपटॉप,स्मार्टफोन और असीमित सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का इस्तेमाल होगा .
चुनावी प्रचार मुख्यत मतदताओंके डाटा की संख्या, उनके विचार या जरूरते , पसंद इत्यादि पर निर्भर करता है. रैली कहा निकालनी है ? वोटरों को कैसे लुभाना है ? उनकी मूल जरूरते क्या है ? जनमानस की मानसिकता वर्तमान में किस विषय पे केंद्रित है ? इत्यादि का विशेष संकलन , अध्यन करके चुनावी अभियान चलाया जा सकता है . कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थान मुख्यतः दो काम करती है. सोशल मीडिया द्वारा सामाजिक समूह एवं व्यक्तिगत जानकारिया निकालना व इन जानकारी से चुनावी संदेशो,एजेंडो को तैयार करना . हर व्यक्ति की जानकारी सोशल मीडिया के रैंडम ब्रोउसिंग से निकलती है. इसमें यूजर का इतिहास,पता, दोस्त , संपर्क , पसंद – नापसंद यहाँ तक की आपने बैटरी कब चार्ज की थी और कितनी बार करते है इसका भी पता निकाला जा सकता है , जिस से हमारी स्मार्टफोन या लैपटॉप इस्तेमाल के मानक को समझा जाता है . इस डाटा से यूजर की संभावित व्यक्तिगत व्यवहार पता लगाया जाता है . यूजर की निकटतम मानसिकता का काफी हद तक सही अंदाज इस विवरण से लगाया जाता है .
जैसे की वर्तमान में आप क्या खरीदेंगे, भावनात्मक स्थिति,यूजर कितना भरोसेमंद है आदि. ” साइकोमेट्रिक प्रोफाइलिंग ” यह मनोविज्ञान की शाखा है . जिसमें व्यक्ति का व्यक्तितत्व, सोच व् कार्यक्षमता को पहचाना जाता है . कह सकते है यह किसी व्यक्ति का बगैर किसी वैज्ञानिक परिक्षण व सवाल पूछे उसके व्यक्तितत्व के बारे में निष्कर्ष निकालना है. ” साइकोमेट्रिक प्रोफाइलिंग ” से किसी भी व्यक्ति के बारे में विस्तीर्ण जानकारी निकाली जा सकती है. उसके व्यक्तितत्व जानने के लिए इंस्टाग्राम फोटो, ट्विटर प्रोफाइल , फेसबुक पोस्ट्स आदि. अलग अलग तरीको से व्यक्तितत्व के बारे में जाना जा सकता है. कई सर्च इंजन के माध्यम से किसी यूजर की छोटी छोटी वर्तमान जानकारी लेकर व्यक्तिगत ब्योरे का पता निकाला जा सकता है और इसके बाद उसे कैसे , कौनसे मैसेज भेजना है यह तय किया जाता है .
” बिग फाइव ” संकल्पना ” OCEAN ” मनोवैज्ञानिक विशेषता गुणांकन
साइकोमेट्रिक्स से यूजर के व्यक्तितत्व का एक चित्र या ग्राफ बनाया जा सकता है. जिसे मनोवैज्ञानिक गुण या ” सायकोलॉजिकल ट्रेट ” कहा जाता है. मनोवैज्ञानसे ने मानव व्यवहार को पांच श्रेणी में नापा जाता है जिसे ” बिग फाइव ” कहते है . ” O = Openness ” ( खुलापन – याने हम किसी भी नए संकल्पना से कितने स्वीकाराहय है ? ), ” C = Conscientiousness ” ( पूर्णतावादी – याने हम कितने Perfectionist है ? ) , ” E = Extroversion ” ( सामाजिकता – याने हम किस हद तक सामाजिक सक्रीय है ? ) , ” A = Agreeableness ” ( याने हम कितने विचारशील और मदतगार है ? ) और ” N = Neuroticism ” ( मनो विक्षुब्धता – याने हम कितनी जल्दी नाराज या विचलित होते है. ) यह पांच तत्व किसी व्यक्ति की वर्तमान आवश्कयता , नाराजी , ख़ुशी या भय को दर्शाते है. पहले इन पांच तत्वों की जानकारी निकालने बहोत सारे प्रश्न पूछें जाते थे, जो की अब सोशल मीडिया इस्तेमाल के विश्लेषण की वजह से आसान हो गया है.
व्यक्तिगत जानकारियां निकालना हो सकता है बेहद खतरनाक हो सकता है . सोशल मीडिया से किसी यूजर की व्यक्तिगत जानकारी निकालना उसके व्यवहार को जानकर उसे अपने हेतु के लिए उपयोग करना सोशल मीडिया मार्केटिंग है. यह व्यवसायिक व राजनैतिक दोनों हो सकती है. अगर कंपनी आपके व्यवहार से जान जाती है की आप उनका मॉल या उत्पाद खरीदेंगे या नहीं , वर्तमान ऑनलाइन खोज से आपकी जरूरते समझी जा सकती है और वैसे ही उत्पादन आपके समक्ष प्रस्तुत किये जाते है . ऐसे व्यव्हार से किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत या सामाजिक जिंदगी में गंभीर दखल अंदाजी हो सकती है .
पंचायत से लोकसभा चुनाव तक सोशल मीडिया का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है. किसी भी राजनेता या पार्टी की छवि को सुधारने उसे ” ब्रांड ” बनाने में सोशल मीडिया विधायक सहायक है. किसी भी राजनेता द्वारा दिए गए वादों को पूरा करने की या अगले वादोंके बारे में जानकारी सोशल मीडिया द्वारा आम लोगों तक पहुंचाके उस राजनेता या पार्टी के लिए विश्वास बढ़ाया जा सकता है.पार्टी संघटनात्मक तौर से भले ही उतनी सुढृढ़ न हो, लेकिन सोशल मीडया में प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने पर वह विश्व में अच्छी पार्टी के तौर पर पहुंचाई जा सकती है.
किसी भी राजनैतक दल की जित की सम्भावना उसके सोशल मीडिया फोलोवर की संख्या या उनके द्वारा दिए गए प्रतिसाद से लगाया जा सकता है. सोशल मीडिया पे सभी राजनैतिक पार्टिया, पंचायत से लेकर चुनाव लड़ने वाले उमेदवारो का सक्रिय एवं सच्चा ब्यौरा होना चाहिए. इसे वर्तमान में उम्मीदवार के योग्यता का आधार माना जा सकता है.इससे लोगों को सही पार्टी व नेता चुनने में सहायता मिलेगी. सोशल मीडिया के फोलोवर , उसमे दी गई राय से उमेदवार के कार्य को घर बैठे जाना जा सकेगा. उमेदवार भी अपनी योजनाए लोगों तक पुरजोर सकरात्मक तरीके से पंहुचा सकेंगे . सोशल मीडया पर बढ़ता विश्वास, एक ही बार में कई पार्टियों व राजनेताओ की जानकारी मिलने से युवा एक सही विकल्प को आसानी से चुन सकेंगे. ऐसी व्यवस्था को हम मतदाताओ के लिए “ स्वर्णिम काल “ कह सकते है. इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है की २०१९ का चुनाव की हार जीत में “ सोशल मीडिया “ की निर्णायक भूमिका होगी . जिसे स्मार्टफोन, लैपटॉप इत्यादि साइबरस्पेस उपकरणों की मदद ले कर पूरा किया जाएगा. जिसमे वैयक्तिक मानदर्शिता विज्ञान का विधायक इस्तेमाल तय है .
