– विदर्भ का कोई भी जिला लें,वहां का रेत घाट पर स्थानीय नेताओं का एकतरफा राज देखने को मिलता हैं,फिर कोई भी पक्ष क्यों न हो.
नागपुर – मंत्री से लेकर विधायक तक, सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक, छोटे गांव के कार्यकर्ताओं से लेकर जिला स्तर के पदाधिकारी तक, कुछ अपवादों को छोड़कर, घाटों में पैसा कमाने का यह एक शानदार तरीका है। पूर्व में कार्यकर्ता नेताओं से ठेका मांगते थे तो नेता उनके लिए प्रशासन पर दबाव बनाकर उनका काम करने में रूचि रखते थे.
अब नेताओं ने तौर तरीका बदल लिया,किसी कार्यकर्ता ने काम माँगा तो उसे सबसे आसान रेती चोरी करने के लिए प्रेरित किया जाता हैं.यह व्यवसाय इतना फलफूल रहा कि रातों रात ‘रंक से राजा’ बनते कइयों को देखा गया हैं.इस व्यवसाय में नेताओं के आशीर्वाद से प्रशासन कमजोर है।
जिले के नदी किनारे के गांव के युवाओं ने लॉटरी जीती है.ये युवक ट्रैक्टर खरीदो, रेत की तस्करी करो और पैसा कमाओ,इस प्रणाली को अपनाकर अपना भरण-पोषण कर रहे हैं। अगर प्रशासन ने कार्रवाई की तो सम्बंधित नेतृत्वकर्ता से बात करवा देते है,जिससे पकड़ी गई ट्रैक्टर भी छूट जाती और जुर्माना भी माफ हो जाता,बस कमाई का एक तय हिस्सा नेतृत्वकर्ता नेता को ईमानदारी से पहुँचाना पड़ता। और जब चुनाव आता तो नेता का काम ईमानदारी से करना पड़ता।
नदी किनारे के गांवों में घर-घर ट्रैक्टर और मिनी ट्रक देखे जा सकते हैं। रात होते ही इन वाहनों की भीड़ शुरू हो गई। फिर रेत को बड़े पैमाने पर निकाला जाता है। अगर नागपुर की बात करें तो इस चोरी के सारे स्रोत तीन राजनेताओं के हाथ में हैं। इसी बात को लेकर तीनों के बीच विवाद हो गया।
उसी से घाटों का पता लगाने के लिए नाटक किए गए। चोरी को रोकने के तरीके के बारे में चैट खुले तौर पर मारे गए। वास्तव में, इस सर्वेक्षण का अंतर्निहित उद्देश्य साझा करना था। अंतत: मीडिया के माध्यम से चोरी का विषय गायब हो गया। अब अधिकारी इस तरह से कार्रवाई कर रहे हैं कि ऐसा नहीं हो रहा है.
रेत चोरी के इतिहास पर नजर डालें तो अगर राज्य में सरकार बदल जाती है तो इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हो जाती है. क्योंकि सत्ता में आने वाले नए लोग ही इसमें हिस्सा चाहते हैं। तब पुराने और विपक्षी राजनेता कुछ दया दिखाते हैं। अपने खुद के चोरी के क्षेत्रों को थोड़ा कम करें। यह सालों से चला आ रहा है। नागपुर ही नहीं हर जिले में यही हाल हैं.
हाल के वर्षों में, सरकार ने चोरी को रोकने के लिए कई नियम बनाए हैं। मोका ने घोषणा की। वास्तव में कुछ नहीं हुआ।क्यूंकि अगर कार्रवाई करनी है तो इसमें शामिल कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई होगी? फिर इसके समर्थक राजनेता ऐसा कैसे होने देंगे !
दूसरा घाट नीलामी पर एकाधिकार जमाया जाता हैं। यह हथकंडा विदर्भ में हर जिले में प्रचलित है। इन घाटों को निष्ठावान कार्यकर्ताओं को मिले इसके लिए नेताओं द्वारा बड़ा हस्तक्षेप किया जाता हैं.आजकल, नेटमंडली ‘ई’ निविदाओं को मैनेज कर रही हैं। मैनेज होने बाद खर्च/कमाई के हिसाब से इच्छुकों में घाटों का शेयर दे देते हैं.
यदि आप देखना चाहते हैं कि यह कैसा है, तो चंद्रपुर, यवतमाल पर एक नज़र डालें। नीलामी में घाट मिलने के बाद सभी निर्धारित सीमा से अधिक समय तक मनमाफिक क्षेत्र खोद कर रेत उत्खनन कर रहे हैं। बाजार में रेत देख अलग-अलग कीमत लगाई जाती है,रॉयल्टी वाली और बगैर रॉयल्टी वाली रेत उपलब्ध होती है,दोनों के कीमतों में फर्क अलग अलग होता हैं.
तीसरा हिस्सा अंतरराज्यीय रेत तस्करों का है। विदर्भ से सटे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र और तेलंगाना हैं। वहां से तस्कर राज्य की सीमा पर लगे घाटों पर गश्त करते हैं। वहां से रेत चोरी हो जाती है। हाल के दिनों में इन तस्करों ने संगठित रूप धारण कर लिया है। आज उसके करीब 26 गैंग सक्रिय हैं।
इन तस्करों ने प्रशासन को जेब में रख रखा हैं। प्रशासन के अड़ियल रवैय्ये के कारण रेत माफियाओं से सम्बंधित पिछले छह महीने में ऐसे 102 मामले सामने आए हैं। इन हमलों का मतलब यह नहीं है कि प्रशासन ईमानदार है। अक्सर जब रिश्वतखोरी की बातचीत विफल हो जाती है, तो अधिकारी हरकत में आ जाते हैं और हमले होते हैं। यह तथ्य है कि ऐसे मामलों में पकड़े गए 90% तस्करों के बारे में बताया जाता है। इसलिए इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। राजनेताओं से जुड़े चोर या कार्यकर्ता कभी पकड़े नहीं जाते।
अब सवाल यह है कि प्रशासनिक व्यवस्था क्या करती है ? जिलाधिकारी कार्यालय से लेकर जिला खनन अधिकारी कार्यालय के दिग्गज अधिकारी से लेकर कनिष्ठ कर्मी तक उक्त गोरखधंधे में शामिल हैं,इनकी सम्पत्तियां का अंकेक्षण करने पर इसका आभास हो जाएगा,क्यूंकि रेत व्यवसायी जिला प्रशासन को लेकर चलती हैं.
पिछले साल की बात करें तो यवतमाल और गोंदिया के जिला कलेक्टरों ने चोरी रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए हैं. इन प्रयासों को काफी सफलता मिली है।
विदर्भ में घाटों की संख्या 485 है। इनमें से 110 की ही नीलामी हुई।सीमित क्षेत्र उपलब्ध होने के कारण चोरी बड़े पैमाने में होती हैं.इस ज़बरदस्त चोरी से पर्यावरण को हुए नुकसान के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। इससे विदर्भ की कई नदियां रेत विहीन हो गई हैं। राजनेताओं को इसकी परवाह नहीं है।
बावजूद इसके उक्त व्यवसाय में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से शामिल नेता हर मंच पर पर्यावरण संरक्षण पर बोलते हुए देखे जाते हैं।तब लगता है कि क्या विडंबना हैं ?