Published On : Sun, Jul 30th, 2017

ये बगावत है! गिरफ्तार करो महबूबा को!!

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“तुम किसी विचार की हत्या नहीं कर सकते!..तुम किसी विचार को जेल में नहीं डाल सकते!!”

ये शब्द स्कूली लेखन प्रतियोगिता में किसी विद्यार्थी द्वारा आलेख में प्रयुक्त दार्शनिक शब्द नहीं हैं।ये शब्द हैं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के, जो उन्होंने घाटी में सक्रिय अलगाववादियों की गिरफ्तारी पर केंद्र सरकार को चेतावनी स्वरुप इस्तेमाल किए हैं।शब्दों में निहित धमकी ही नहीं, बगावत के सुर को भी साफ-साफ महसूस किया जा सकता है।हाँ, ये खुली धमकी है, बगावत है!

महबूबा ने बग़ावती लहजे में केंद्र को दो टूक कह दिया कि वे किसी को नियंत्रण रेखा सीमा(LOC)-पार व्यापार और श्रीनगर-मुजफ्फराबाद संपर्क मार्ग बंद करने की अनुमति नहीं देंगी।मालूम हो कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी(NIA)ने LOC पार व्यापार बंद करने की अनुशंसा की है।इसी संदर्भ में महबूबा ये धमकी देने से भी नहीं चूकीं कि यदि कश्मीर के विशेषधिकार के साथ छेड़छाड़ की गई तो फिर तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं रहेगा।

ये खुली बगावत है!चूंकि ये धमकी अलगाववादियों के खिलाफ की जा रही कड़ी कार्रवाई के बाद आई है, स्पष्ट है कि महबूबा की अलगाववादियों के साथ सांठगांठ है।ऐसे में सवाल कि महबूबा की पीडीपी के साथ भाजपा कश्मीर में भागीदार क्यों?सरकार बर्खास्त कर राज्यपाल शासन क्यों नहीं लागू किया गया?और,ये कि देशद्रोही महबूबा अबतक गिरफ्तार क्यों नहीं की गईं?क्यों मौन है केंद्र सरकार?

एक समय था जब उमर अब्दुल्ला के दादा, फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख़ अब्दुल्ला के प.जवाहरलाल नेहरू के साथ रिश्तों को ले कर क्या-क्या नहीं कहे गये थे!भद्दी-भद्दी बातें तक कही गई थीं।कहा जा रहा था कि उन रिश्तों के आलोक में नेहरू कभी भी शेख़ अब्दुल्ला के खिलाफ नहीं जा सकते।लेकिन जब बात देश की अखंडता की आई,सार्वभौमिकता की सुरक्षा की आई अविचलित नेहरू, गद्दार-देशद्रोही शेख़ अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर जेल भेजने में नहीं हिचके।आज अगर जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है, तो नेहरू का वह निडर निर्णय एक बड़ा कारण रहा है।

अब देश जानना चाहता है कि जब महबूबा मुफ्ती गद्दार शेख़ अब्दुल्ला के मार्ग पर चलती दिख रही हैं, तब उन्हें शेख़ की गति क्यों नहीं दी जा रही?कयों मौन है केंद्र सरकार?क्या हिचक-डर है केंद्र को?

संवेदनशील घाटी की नाज़ुक स्थिति को देखते हुए कड़े कदम उठाने ही होंगे!

और विलंब नहीं!प्रिय प्रधानमंत्री जी, इसके पूर्व कि कश्मीर हाथों से निकल जाए,सुप्तावस्था से निकलें, जागें, कारगर कार्रवाई करें!

….​एस एन विनोद  ​