Published On : Tue, Aug 2nd, 2016

चुनावी आहट सुन्न, शुरू हो गए व्यक्तिगत हमले

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नजदीक आ रहे मनपा चुनाव के मद्देनज़र पक्ष-विपक्ष कर रहे वार

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नागपुर
: जैसे-जैसे मनपा चुनावी समर नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे राजनीति में रोजाना परिवर्तन देखा जा रहा है। फ़िलहाल जनहितार्थ मुद्दों पर बहस-जंग छिड़ने के बजाय व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू है। ऐसा ही नजारा विगत सप्ताह मनपा पक्ष-विपक्ष नगरसेवकों के दरम्यान देखा गया।

विपक्ष के एक वजनदार पार्षद ने सालों से सत्तापक्ष के एक पार्षद के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से दहन घाट के लकड़ी घोटाले का मुद्दा उछाल रहे थे। लेकिन सत्तापक्ष के मजबूत समर्थन के कारण विपक्ष के पार्षद को कोई सफलता नहीं मिली। बार-बार मिल रही असफलता से काफी निराश हो गए थे। लेकिन हमेशा कहते थे कि उनके पास घोटाले की पक्की सबूत है।

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विगत माह नए उपमहापौर ने उक्त विपक्षी पार्षद से पुरानी राजनैतिक रंजिश के तहत उन्हें परेशान करने के लिए उनके एकदम करीबी मित्र की अस्पतालों से निकलने वाले कचरे को नष्ट कर पुनः उपयोग करने हेतु मिक्सचर बनाने वाली कंपनी (भांडेवाड़ी स्थित) पर अचानक छापा मारा लेकिन शत-प्रतिशत असफलता मिली। न जानकारी मिली और न ही घोटाले जैसा कुछ हाथ लगा।

जुलाई माह के आमसभा में उपमहापौर के कहने पर सत्तापक्ष के उक्त पार्षद (विपक्ष के पार्षद ने जिन पर लकड़ी घोटाले का आरोप लगाया था) ने उपमहापौर द्वारा मारे गए छापे के संदर्भ में मनपा प्रशासन के स्वास्थ्य विभाग प्रमुख से कई सवाल किये। जैसे कंपनी किसकी?, कंपनी ने जब ठेके लिए थे तब कंपनी के निदेशक कौन-कौन थे ? और अब कौन-कौन निदेशक है ? आदि।

जवाब देते हुए स्वास्थ्य विभाग प्रमुख ने जानकारी दी कि जब उक्त कंपनी ने ठेका लिया था तब एक दंपत्ति निदेशक थे। लेकिन कुछ वर्षो पूर्व वे कंपनी से अलग हो गए। आज जो निदेशक है, वे सभी सत्तापक्ष से जुड़े लोग है।
उक्त दंपत्ति का प्रत्यक्ष संबंध विपक्ष के उक्त पार्षद से है। इस दम्पति का नाम अकारण मनपा में चर्चा होने से विपक्ष के पार्षद छुब्ध हो गए। वही उपमहापौर और लकड़ी घोटाले में अप्रत्यक्ष रूप से लिप्त सत्तापक्ष का पार्षद को निराशा हाथ लगी। इस सत्तापक्ष के पार्षद को सबक सिखाने लिए विपक्ष के उक्त पार्षद जो कि विपक्षी सबसे बड़े दल के अध्यक्ष है।

उन्होंने सत्तापक्ष उक्त पार्षद का एक और घोटाला सार्वजानिक कर दिया। वह यह कि सत्तापक्ष के इस पार्षद ने जितने भी चुनाव जीते या जिसको भी जितवाए वह सभी बोगस मतदाता के आधार पर। इस सत्तापक्ष के पार्षद ने हजारों बोगस मतदाता बनाये। जो कि नागपुर ग्रामीण के मूल रहवासी है। और सिर्फ चुनाव के दौरान मतदान करने आते है। यह जानकारी विपक्ष के उक्त पार्षद को वर्षो से थी। लेकिन अब तक प्रत्यक्ष तौर पर व्यक्तिगत हमले से बच रहे थे। लेकिन जब उनके हमदम पर अकारण हमला हुआ तो सत्तापक्ष के उक्त पार्षद का दूसरा बड़ा घोटाला खोल विभागीय आयुक्त से जांच सह दोषी पर कार्रवाई की मांग की।

व्यक्तिगत द्वंद्व के तहत चल रहे पक्ष-विपक्ष के वार पर सभी पक्ष व राजनीति में रूचि रखने वाले इंतज़ाररत है कि अब अगला वार कौन और क्या करता है.

वैसे बता दे कि पहले तीनों एक ही दल के थे। इनमे से दो की टिकट काटने से दोनों निर्दलीय चुनाव लड़ जीते। जिनमें से एक चुनाव जीतते ही सत्तापक्ष में समां गया। तो दूसरा सत्तापक्ष का सहयोगी बन गया। विगत सप्ताह सत्तापक्ष के प्रमुख दल की शहर कार्यकारिणी बनी। तो इनका पदाधिकारी में नाम दिखा। यानि ये भी सत्तापक्ष के अंततः सदस्य बन गए। शुरुआत में जुड़ने वाले को सत्तापक्ष ने विगत माह उपमहापौर बनाया। तो इन्होंने अधिकार के साथ अपने पुराने पक्ष के प्रतिद्वंदी से बदला लेने के उद्देश्य से असफल प्रयास किये।

अगर यही आलम रहा तो विपक्षी दल पुनः विपक्ष में ही नज़र आएंगी। यह कड़वा सत्य है कि मनपा में विपक्षी प्रमुख दल को आज तक उनके ही नेता-कार्यकर्ताओं ने हार का मुख दिखाया। वरना जब भी एक रहे इन्हें सिर्फ सफलता ही मिली।

उल्लेखनीय यह है कि समय रहते राजनीति में व्यक्तिगत हमले नहीं रुके तो इसका असर पक्ष की गरिमा पर पड़ना लाजमी है।

– राजीव रंजन कुशवाहा

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