नागपुर:राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज टेक्निकल एंड एजुकेशन सोसाइटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए नागपुर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने औद्योगिक न्यायालय और श्रम न्यायालय द्वारा कर्मचारियों की सेवा बहाली के पक्ष में दिए गए आदेशों को खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मस्टर रोल से नाम हटाना, कर्मचारियों द्वारा बार-बार सूचना देने के बावजूद नौकरी पर वापस न लौटने की स्थिति में सेवा समाप्ति नहीं माना जा सकता।
मामले का विवरण:
वर्ष 1991 से 1993 के बीच सहायक रसोइया, क्लर्क, लेखाकार, पुस्तकालयाध्यक्ष और केयरटेकर पदों पर नियुक्त कर्मचारियों ने अगस्त 1993 में कुछ मांगों को लेकर हड़ताल नोटिस दिया था। इसके बाद वे सेवा में वापस नहीं लौटे, जबकि संस्था ने उन्हें कई बार पत्र लिखकर लौटने का अनुरोध किया। 1 जून 1994 को संस्था ने अंतिम पत्र जारी कर चेतावनी दी कि यदि कर्मचारी नहीं लौटे तो इसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति माना जाएगा। बावजूद इसके कर्मचारी नहीं लौटे और संस्था ने मस्टर रोल से उनके नाम हटा दिए।
न्यायिक प्रक्रिया:
कर्मचारियों ने सेवा समाप्ति को चुनौती देते हुए श्रम आयुक्त और औद्योगिक न्यायालय में शिकायत की। श्रम न्यायालय ने इसे अनुचित श्रम व्यवहार मानते हुए कर्मचारियों की सेवा बहाली और 50% बकाया वेतन देने का आदेश दिया। इसके विरुद्ध संस्था ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
हाई कोर्ट का निर्णय:
हाई कोर्ट ने 27 सितंबर 2016, 26 नवंबर 2018 (औद्योगिक न्यायालय) और 3 दिसंबर 2010, 12 जनवरी 2015 (श्रम न्यायालय) के आदेशों को खारिज करते हुए माना कि संस्था ने मस्टर रोल से नाम हटाने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया और बार-बार सूचना दी, बावजूद इसके कर्मचारी सेवा में नहीं लौटे। ऐसे में यह सेवा समाप्ति नहीं बल्कि स्वैच्छिक निवृत्ति मानी जाएगी।
निचली अदालतों की गलत व्याख्या:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेवा समाप्ति की प्रक्रिया अधिनियम की धाराओं के तहत होनी चाहिए, लेकिन इस मामले में कर्मचारी स्वयं सेवा से अनुपस्थित रहे, जिससे संस्था दोषी नहीं मानी जा सकती।
यह निर्णय अन्य संस्थाओं के लिए भी एक मार्गदर्शन के रूप में देखा जा रहा है, जहाँ कर्मचारियों द्वारा बिना सूचना सेवा से लंबी अनुपस्थिति पर उचित कार्रवाई की जा सकती है।