नागपूर- हम जो भी जानते है. जो भी समझते है. उसका समय समय पर अभ्यास करना जरुरी है नहीं तो सब कुछ तस्वीरों में सिमटकर रह जाएगा. बाबासाहेब को हम आदर से याद करते है. उनके बारे में बहोत कुछ कहा गया और बहोत कुछ लिखा गया. मैंने भी बहोत कुछ लिखा है. लेकिन मुझे जो समझमे आता है की आंबेडकर होने का क्या मतलब है. आंबेडकर होने का इतना ही मतलब है कि लाखों करोडो की भीड़ के सामने अकेले खड़े हो जाना.वे लगातार जानते रहे. जो जानते रहे वे आजमाते रहे. इसलिए वे डॉ आंबेडकर बन पाए. हमने डॉ. आंबेडकर को गवां दिया है. हम उन्हें जानते है लेकिन लेकिन उन्हें जानने का अभ्यास नहीं करते. हम उनका लिखा पढ़ते है. लेकिन लिखा आजमाने का अभ्यास नहीं करते.
हमारा मिडिया डरे हुए पत्रकारों का समूह बन गया है. हम सब आपको नहीं बचा रहे है. अपनी अपनी नौकरी बचा रहे है. जो अपनी नौकरी बचाने में लगा है आप उसके साथ अपना समय गवांना छोड़ दीजिये. जिस अखबार और टेलीविजन ने यह कहा था की वे आपको जगायेंगे उन्होंने आपको फंसा दिया है. इन अखबारों और टीवी के संपर्क में आने से आप कितना कमजोर हो गए है. जो सवाल नहीं करता उससे हम मुंह मोड़ ले. मीडिया के इस खतरे को समझना है. जो सविंधान ने हमें अधिकार दिए है.
वह टीवी चैनल रोज रात में आकर उसमे से बटवारा करता है. यह तीखा प्रहार एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार का. वे रविवार को सिविल लाइन स्थित वसंतराव देशपांडे सभागृह में स्थित राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले अभ्यासिका के स्कॉलरशिप वितरण कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के तौर पर बोल रहे थे. इस दौरान उन्होंने आगे कहा की मिडिया बांटता है कि कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही. इसकी कल्पना तो सविंधान में नहीं है. वह बांटने का काम रोज रात को खुलेआम कर रहा है. मीडिया ने समाज में ज्ञान की असमानता को और बड़ा किया. रविश ने आगे कहा कि मीडिया का काम है नई नई सुचनाएं आप तक पहुंचाए . आपको सवाल पूछने के लिए सक्षम करे. आपको टीवी चैनल बता रहे है की भटका रहे है. यह सोचिए. ढाई महीने तक चैनल मत देखिये . कुछ नहीं देखने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. एक डरा हुआ पत्रकार लोकतंत्र में मरा हुआ नागरिक पैदा करता है. हमारा मीडिया डरे हुए पत्रकारों गया है.
आईपीएस अधिकारी संदीप तामगाडगे के पिता स्मृतिशेष मधुकरराव तामगाडगे के नाम से स्कॉलरशिप शुरू की गई थी. हर साल गरीब लड़कियों को पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप दी जाती है. आज के कार्यक्रम में 50 लड़कियों को 10 हजार रुपए स्कॉलरशिप, प्रमाणपत्र और स्कुल बैग दी गई है. जिन बेटियों को माता पिता दोनों नहीं है. इस बार ऐसी बेटियों को यह स्कॉलरशिप दी गई है. इस मौके पर संदीप तामगाडगे ने कहा कि वे 17 सालों से नागालैंड में सर्विस कर रहे है. पिछले कुछ दिनों से देशभक्ति देश में काफी उफान पर है. उन्होंने एक उदाहरण दिया की एक बिज़नेसमैन ने उन्हें कहा की वे देशभक्त नहीं है. मैंने उनसे कहा की मेरे पिता आर्मी में थे, मैं सैनिक स्कुल में पढ़ा हु, और 17 सालों से मैं नागालैंड में ही नौकरी कर रहा हु और मैं देशभक्त नहीं हु. मैंने उनसे कहा की आप मुंबई में अपना बिज़नेस चलाते है. और आप हमें देशभक्ति सीखा रहे है. उन्होंने आगे कहा की पिछले 6 सालों से अभ्यासिका के माध्यम से वे और उनके सहयोगी यह कोशिश कर रहे है कि समाज में दायित्व निभाने के लिए पब्लिक सर्वेंट द्वारा एक छोटी से कोशिश हो.
इस कार्यक्रम में संदीप तामगाडगे की माता, प्रशांत रोकड़े समेत अभ्यासिका के पदाधिकारी मौजूद थे साथ ही इसके पुरे विदर्भ के अभ्यासिका के विद्यार्थी भी उपस्थित थे.