Published On : Tue, Oct 30th, 2018

अयोध्या पर 25 साल पहले कांग्रेस सरकार लाई थी अध्यादेश, BJP थी विरोध में

Advertisement

कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने की मांग जोर पकड़ रही है. मोदी सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है. लेकिन कांग्रेस कह रही है कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए. हालांकि 25 साल पहले कांग्रेस सरकार अयोध्या मसले पर अध्यादेश लाई थी जिसे अयोध्या अधिनियम के नाम से जाना गया. तब भाजपा ने इसका विरोध किया था.

विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में बीजेपी के समर्थन से चल रहे राम मंदिर आंदोलन के परिणामस्वरूप 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. इसके एक साल बाद जनवरी 1993 में यह अध्यादेश लाया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 7 जनवरी 1993 को इसे मंजूरी दी थी. इसके तहत विवादित परिसर की कुछ जमीन का सरकार की तरफ से अधिग्रहण किया जाना था. राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने इस बिल को मंजूरी के लिए लोकसभा में रखा. पास होने के बाद इसे अयोध्या अधिनियम के नाम से जाना गया.

Gold Rate
20 dec 2025
Gold 24 KT ₹ 1,32,200/-
Gold 22 KT ₹ 1,22,900 /-
Silver/Kg ₹ 2,03,400/-
Platinum ₹ 60,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

क्या कहा था गृहमंत्री ने
बिल पेश करते समय तत्कालीन गृहमंत्री चव्हाण ने कहा था, “देश के लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की भावना को बनाए रखना जरूरी है.” ठीक यही तर्क बीजेपी और आरएसएस के नेता भी दे रहे हैं. अयोध्या अधिनियम विवादित ढांचे और इसके पास की जमीन को अधिग्रहित करने के लिए लाया गया था. नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि के साथ इसके चारों तरफ 60.70 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी. इसे लेकर कांग्रेस सरकार की योजना अयोध्या में एक राम मंदिर, एक मस्जिद, लाइब्रेरी, म्यूजियम और अन्य सुविधाओं के निर्माण की थी.

बीजेपी ने अयोध्या अधिनियम का किया था विरोध
हालांकि अयोध्या अधिनियम से राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ नहीं हो पाया. बीजेपी ने नरसिम्हा राव सरकार के इस कदम का पुरजोर विरोध किया था. बीजेपी के तत्कालीन उपाध्यक्ष एसएस भंडारी ने इस कानून को पक्षपातपूर्ण, तुच्छ और प्रतिकूल बताते हुए खारिज कर दिया था. बीजेपी के साथ मुस्लिम संगठनों ने भी इस कानून का विरोध किया था.

सुप्रीम कोर्ट से राय भी मांगी थी कांग्रेस सरकार ने
नरसिम्हा राव सरकार ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से भी इस मसले पर सलाह मांगी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राय देने से मना कर दिया था. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या राम जन्भूमि बाबरी मस्जिद के विवादित जगह पर कोई हिंदू मंदिर या कोई हिंदू ढांचा था. 5 जजों (जस्टिस एमएन वेंकटचलैया, जेएस वर्मा, जीएन रे, एएम अहमदी और एसपी भरूचा) की खंडपीठ ने इन सवालों पर विचार किया था लेकिन कोई जवाब नहीं दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या एक्ट 1994 की व्याख्या की थी. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर विवादित जगह के जमीन संबंधी मालिकाना हक (टाइटल सूट) से संबधित कानून पर स्टे लगा दिया था. कोर्ट ने कहा था कि जब तक इसका निपटारा किसी कोर्ट में नहीं हो जाता तब तक इसे लागू नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अधिग्रहित जमीन पर एक राम मंदिर, एक मस्जिद एक लाइब्रेरी और दूसरी सुविधाओं का इंतजाम करने की बात का समर्थन किया था लेकिन यह भी कहा था कि यह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है. इस तरह अयोध्या एक्ट व्यर्थ हो गया.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तय किया था जमीन का मालिकाना हक
16 साल बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमीन के मालिकाना हक के बारे में फैसला दिया. कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को 3 हिस्सों में बांटा. राम लला (विराजमान), निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड. इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर दी गईं. उसी की लगातार सुनवाई 29 अक्टूबर से होनी थी.

सुनवाई अब अगले साल
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले कि खिलाफ होने वाली सुनवाई को 2019 तक टालकर यह संदेश दे दिया है कि उसे कोई जल्दी नहीं है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कर दिया है कि एक नई बेंच तय करेगी कि सुनवाई की तारीख क्या रखी जाए.

कानून बनाने की मांग, विपक्षी कर रहे विरोध
आरएसएस का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला नहीं दे सकता तो मोदी सरकार को कानून बनाकर राम मंदिर के निर्माण में आ रही रुकावटों को दूर करना चाहिए. विश्व हिंदू परिषद का साफ कहना है कि हिंदुओं में इतना धैर्य नहीं बचा है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करें. बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी और केंद्र में मंत्री गिरिराज सिंह ने मांग की है कि राम मंदिर निर्माण के लिए जल्द से जल्द अध्यादेश लाया जाए. वहीं कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों का कहना है कि सरकार को सु्प्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए. इस बीच केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि लोग चाहते हैं कि जमीन के मालिकाना हक (टाइटल सूट) से जुड़ी याचिका का जल्द से जल्द निपटारा हो. उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में पूरा भरोसा है.

GET YOUR OWN WEBSITE
FOR ₹9,999
Domain & Hosting FREE for 1 Year
No Hidden Charges
Advertisement
Advertisement