नागपुर: सरकारी लालफीताशाही का अनुभव अपने जीवन में कई लोग करते हैं। अक्सर व्यवस्था पर सवालिया निशान भी लगते हैं पर सरकारी महकमें सुधरने का नाम तक नहीं लेते। सरकार के तंत्र के गवाह बने एक शख्स की कहानी हम बता रहे हैं जो प्रशासन को उसकी गलती का सबूत दे रहा है। बावजूद इसके उसके द्वारा उठाए जा रहे सवाल का न ही जवाब दिया जा रहा है और न ही जायज प्रश्न पर किसी तरह की कार्रवाई ही की जा रही है।
शुक्रवार को जिलाधिकारी कार्यालय में नागपुर टुडे की टीम गोंदिया जिले का युवक लिखन छन्नीराम पारधी से मिली। जिलाधिकारी तक अपनी बात पहुँचाने की जद्दोजहद कर रहे लिखन को जब कुछ पत्रकार दिखे तो उसने उन्हें घेर लिया। हाथ में कागजों का पुलिंदा लिए वह बताने लगा कि किस तरह सरकार का सार्वजनिक आरोग्य विभाग लापरवाह हो चुका है। वह विभाग को उसकी गलती बता रहा है पर उसे सुनने वाला कोई भी नहीं।
दरअसल 22 जनवरी 2017 को शहर के दीक्षाभूमि मैदान में आरोग्य विभाग द्वारा ग्रुप डी के लिए परीक्षा ली गयी है। यह परीक्षा लिखन ने भी दी। उसे प्रश्न पत्रिका का 22 नम्बर का सेट मिला। यूँ तो सरकारी विभाग द्वारा नियुक्ति के लिए परीक्षा लिया जाना सामान्य बात है लेकिन इस परीक्षा से संबंधित जो दावे लिखन ने किये वो दिमाग को भन्ना देने वाले हैं।
उसका दावा है कि आरोग्य विभाग ने जो परीक्षा ली और बाद में उसकी जो उत्तरपुस्तिका जारी की उसमे प्रश्न के ग़लत जवाब को सही बताया गया है उसका दावा है कि 22 नंबर के सेट में प्रश्न क्रमांक 19, 33,39, 40,और 43 नम्बर का जो उत्तर बताया गया है वह गलत है। उसने जो हमें प्रश्नपत्रिका और उत्तरपत्रिका दी उसको मिलाने पर उसके दावे सही दिखाई दिए।
लिखन द्वारा जो दावे किये जा रहे है उसे समझने के लिए हमने जो जाँच की उसमे कुछ ऐसा दिखायी पड़ा
प्रश्नपत्रिका में 19 नम्बर का सवाल है ( प्रश्नमूलतः मराठी में है यहाँ उसका अनुवाद किया गया है ) निम्नलिखित में कौन सा प्रसिद्ध शहर महाराष्ट्र में नहीं है इसे पहचाने इस प्रश्न के साथ उत्तर के रूप में चार ऑप्शन दिए गए थे a) फ़िरोजपुर b) पुणे c) औरंगाबाद d ) नाशिक इस सावल का जो उत्तर पुस्तिका में जवाब दिया गया है उसमे ऑप्शन b को सही बताया गया है यानि की आरोग्य विभाग के अनुसार पुणे शहर महाराष्ट्र राज्य में नहीं आता है। इसी तरह उत्तर पुस्तिका में अन्य प्रश्नों का जवाब भी गलत दिया गया है। अब मान लीजिये की अगर पेपर की जाँच कंप्यूटर के माध्यम से अगर इसी हिसाब से की जाती है तो राज्य सामान्यज्ञान की जानकारी रखने वाले परीक्षार्थी की मेहनत पर तो पानी फिर गया। हाल में प्रश्नपत्रिका और उत्तर पुस्तिका कंप्यूटराइस्ड ही होती है सही जवाब कंप्यूटर में फिक्स कर दिए जाते हैं और कम्प्यूटर के माध्यम से ही उत्तरपुस्तिका की जाँच होती है।
बहरहाल आरोग्य विभाग की लापरवाही पर विभाग का ध्यान आकर्षित करने के लिए लिखन छन्नीराम पारधी ने भरसक प्रयास किये। वह आरोग्य विभाग के नागपुर में बैठने वाले उपयुक्त से मिला। जब वहां सुनवाई नहीं हुई तो जिले के सुप्रीम अधिकारी ( जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिले के सभी विभागों के सुप्रीम अधिकारी होते है ) उनकी दहलीज पर पहुँचा। कलेक्टर साहब ने उसे निवासी जिलाधिकारी से मिलने को कहा। वह उनके पास भी गया पर इस मामले के संबंध में अपनी जिम्मेदारी न होने की बात कहते हुए उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया। वैसे नागपुर जिलाधिकारी कार्यालय तेजतर्रार प्रशासन के लिए जाना जाता है इसकी बानगी आप को विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर देखने को मिल सकती है जिसमे अविनाश पांडेय और राजेन्द्र मुलक अब भी जनप्रतिनधि हैं।
ख़ैर नागपुर टुडे लिखन छन्नीराम पारधी के दावो को सही नहीं ठहरा रहा है पर अगर उसका दावा सही है तो यह सीधा मामला असंवेदनशीलता का है उससे बड़ा सामूहिक लापरवाही का क्योंकि एक शख्स की मेहनत, दूसरों की लापरवाही की वजह से दांव पर लग गई है और भुक्तभोगी खुद प्रशासन को गलती का एहसास करा रहा है लेकिन प्रशासन अपने कान पर जूं रेंगने ही नहीं दे रही है। क्या होगा लिखन पारधी और उन जैसे मेहनतकश किंतु प्रशासन की गलतियों और लापरवाही के शिकार युवाओं का? जवाब है किसी के पास?