Published On : Tue, Mar 26th, 2019

प्रफुल पटेल ने आखिर चुनावी मैदान क्यों छोड़ा?

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डर तो सबको लगता है.. क्योंकि डर के आगे जीत है!

नागपुर: राष्ट्रवादी कांग्रेस में नंबर टू की हैसियत रखने वाले कद्दावर नेता प्रफुल पटेल ने आखिर गोंदिया-भंडारा लोकसभा सीट से कदम पीछे क्यों खींचे? और उन्होंने चुनावी दंगल में उतरने से इंकार क्यों किया? यह मुद्दा गोंदिया-भंडारा जिले के हर नुक्कड़ – चौराहे और टपरियों पर जनचर्चा का विषय बना हुआ है।

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राष्ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकर्ता पब्लिक को यह समझाते फिर रहे है कि, प्र्रफुल पटेल की राज्यसभा सदस्यता का कार्यकाल अभी डेढ़ वर्ष शेष है इसलिए उन्होंने नाना पंचबुद्धे के नाम पर मुहर लगायी।

वहीं प्रफुल पटेल ने 25 मार्च को मीडिया प्रतिनिधियों से बात करते कहा- दिल्ली में घोषणा बहुत हो रही है लेकिन उस विकास से गोंदिया-भंडारा अछूता है। इस मतर्र्बा लोगों ने परिवर्तन का मन बना लिया है। भारतीय जनता पार्टी को भी समझ में आ गया है कि, हार उनके दरवाजे पर खड़ी है। इसका फायदा हमारे उम्मीदवार नाना पंचबुद्धे को मिलेगा। दोनों जिलों की जनता को जो प्रफुल पटेल के प्रति विश्‍वास है कि, मैं यहां के विकास के लिए कार्यरित रहूँ, तो नाना पंचबुद्धे के माध्यम से हम इस क्षेत्र का विकास करेंगे और हमारे दोनों जिलों में जो ज्वलंत प्रश्‍न है, उनका समाधान करेंगे।
उल्लेखनीय है 2014 का चुनाव प्रफुल पटेल, भाजपा उम्मीदवार नाना पटोले के हाथों डेढ़ लाख वोटों से हारे जिसके बाद अब पब्लिक में यह भी कहा जा रहा है कि, कुनबी समाज के वोटरों की एकजुटता के वजह से ही उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया तथा कुनबी समाज के उम्मीदवार नाना पंचबुद्धे पर ही एनसीपी ने दांव खेला है?

वहीं कुछ लोग यह भी जनचर्चा कर रहे है कि, धनशक्ति के आधार पर प्रफुल पटेल चुनाव जीतते रहे है और उन्होंने जो धनबल का फार्मूला क्षेत्र में आजमाया था, वह 2014 में फ्लॉप हो गया इसलिए उन्होंने हाथ खींच लिए है और चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया?

अखबारों और खबरीया चैनलों में विशेष रूची रखने वाले कुछ बुद्धिजीवियों का यह भी कहना है कि, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के कार्यकाल दौरान एयर इंडिया की उड़ानों के लिए बॉयोमीट्रिक्स पैसेंजर इंडेटिफिकेशन सिस्टम के लिए जारी की गई निविदा और हुए तथाकथित टेंडर घोटाले एंव 2014 में कनाडा की ओंटारियो अदालत ने भारत में जन्मे कैंडियन व्यवसायी नजीर करगीर को एयर इंडिया के अधिकारियों और पटेल को 100 मिलीयन अमेरिकी डॉलर के रिश्‍वत देने का दोषी ठहराया था इस प्रकरण का खुलासा होने के बाद भारत सरकार के उड्डन मंत्रालय ने एक जांच कमेटी बिठाकर इस कथित लेनदेन की जांच शुरू की है। इस फाईल के उजागर होने और चुनाव में पोल खुलने के डर से उन्होंने चुनाव लड़ने से इंकार किया है।

बहरहाल मामला चाहे जो भी हो लेकिन आचार संहिता लागू होते ही इशारों-इशारों में चुनाव लड़ने के संकेत देकर अचानक आखिर में प्रफुल पटेल द्वारा लोकसभा चुनाव से किनारा करना यह पार्टी के लिहाज से शुभ संकेत नहीं है।

यहां, यह बताना भी जरूरी है कि, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने पहले सोलापुर में माढ़ा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, तत्पश्‍चात शरद पवार ने कहा- 14 बार चुनाव लड़ चुका हूं इसलिए मैंने महसुस किया कि, यह चुनाव न लड़ने का फैसला करने का सही समय है और पार्टी सोलापुर जि.प. के अध्यक्ष संजय शिंदे को इस सीट से प्रत्याक्षी बनाने पर विचार कर रही है, यह कहते हुए शरद पवार जैसे दिग्गज नेता ने भी फाइनली चुनावी दंगल से किनारा कर दिया।

बड़े नेताओं के चुनावी मैदान में न उतरने से गोंदिया-भंडारा जिले के राकापां कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट चुका है। कार्यकर्ता को प्रोत्साहन और उर्जा तब मिलती है जब कोई बड़ा नेता उनमें जोशो-खरोश जगाता है।

गोंदिया-भंडारा जिले के ग्रास रूट पर एनसीपी कैंडर के कमजोर होने तथा राकांपा के पास स्टार प्रचारकों का टोटा और नाना पटोले के बगैर इस बार के चुनाव में वैतरणी पार करने की चुनौती यह किसी बड़े पहाड़ को पार करने जैसी कार्यकर्ताओं को दिखायी पड़ रही है। देखना दिलचस्प होगा, ऊंट किस करवट बैठता है?


रवि आर्य

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