Published On : Fri, Feb 13th, 2015

यवतमाल : जिले के अनेक स्कूलों में नहीं है खेल का मैदान

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छात्रों का नहीं हो रहा शारीरिक विकास

यवतमाल। विद्यालय के अंदर विद्यार्थियों का बौद्धिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास होना आवश्यक है. इसीलिए शासनस्तर पर शालेय एवं क्रीड़ा विभाग को  एकत्रित किया गया है. और उसके लिए शासन वार्षिक करोड़ों रुपए अनुदान के  तौर पर खर्च करती है. शिक्षास्तर पर बौद्धिक, मानसिक एवं शारीरिक यह तीन  महत्वपूर्ण पहेलू माने जाते है. लेकिन आमतौर में यह देखने को मिलता है कि, शालेय स्तर पर छात्रों को केवल बौद्धिक विकास पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है तथा शारीरिक विकास को दुय्यम स्थान मिलता है और मानसिक विकास का तो कोई दर्जा ही प्राप्त नहीं है.

जिले के ऐसी अनेक शालेय है, जहां पर छात्रों को खेलने के लिए मैदान ही उपलब्ध नहीं है. खेल में शारीरिक शिक्षा के लिए मैदान और अन्य सुविधा न होने के कारण विद्यार्थियों का  शारीरिक विकास नहीं हों पा रहा है. खेल का मैदान तो दूर की बात है. एक  निकश में यह बात सामने आयी है कि राज्य एव जिले में ऐसी अनेक शालाए है जहां पर विद्यार्थियों के लिए शौचालय की भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. जिससे इन स्कूलों में अध्ययनरत विद्यार्थियों की शैक्षणिक गुणवत्ता पर विपरीत  परीणाम हों रहा है. गौरतलब है कि, शरीर और मन का विद्यार्थी जीवन में काफी महत्व है. जिले के कई स्कूलों में मैदान ना होने की वजह से विद्यार्थी खेल और शारीरिक दृष्टि से पिछड़े हुए नजर आ रहें है. जिसके कारण विद्यार्थियों का भविष्य अंधेरे में पड़ गया है. वहीं विद्यार्थियों का आत्मविश्वास भी कम होता जा रहा है. हालही में यवतमाल शहर की एक लड़की श्रद्धा मुंधडा ने खेल के मैदान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नेतृत्व करते हुए भारत को तीन सुवर्ण पदक प्रदान कराए है तो दूसरी ओर क्रीड़ागण नहीं होने की वजह से ग्रामीण छात्रों की प्रतिभा उजागर होने से वंचित रह जा रही है.

इसमें कुछ विद्यालय ऐसे भी है, जहां पर क्रीड़ागण तो है लेकिन खेल की सामग्री नहीं है और जहां सामग्री है वहां क्रीड़ागन नहीं है. हालाकि शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार हर स्कूल में शारीरिक शिक्षक की भर्ती होना लाजमी है. लेकिन अबतक इस पर अमल नहीं हो पाया है. जिसकी वजह से कभी कबार विषय शिक्षक को ही शारीरिक शिक्षक बनना पड़ता है. जिसका परीणाम विद्यार्थियों के अध्ययन प्रक्रिया पर होता है.

हर वर्ष शासन की ओर से क्रीड़ा महोत्सव के लिए लाखों-करोड़ों रुपए आते है. महोत्सव ही बड़े  धुमधाम से मनाया जाता है. लेकिन जिले की ऐसी अनेक स्कूलें है जो इस महोत्सव में शामिल नहीं होती और नाही इस महो सव में शामिल होने के लिए उन पर कोई प्रतिबंध होता है. जिसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है. एक ओर तो शासन विद्यार्थियों की सर्वांगीण विकास का दावा करती है तो दूसरी ओर विद्यार्थियों को शारीरिक रूप से कमजोर किया जा रहा है. इसका अर्थ शासन की करनी और कथनी में कितना अंतर है, यह बात साबितहो जाती है. ना इस ओर शालेय प्रशासन दें रहा है नाहीं क्रीड़ा प्रशासन. जिसका विरीत परीणाम विद्यार्थियों के शारीरिक विकास पर हों रहा है. इस ओर ध्यान देने की जरूतर है.

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