Published On : Tue, Sep 28th, 2021

पूर्वजों की उपासना का पर्व है पितृ पक्ष

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नागपुर – अपने पूर्वजों की उपासना का पर्व है पितृ पक्ष का सनातन हिन्दू धर्म मे इसका बडा ही महत्व बतलाया गया है। यह पितृ पक्ष मंगलवार 21 सितंबर से शुरु है जो 6 अक्तूबर को पितरों के पूजन तर्पण अर्पण परिमार्जन और समर्पण के साथ संपन्न होगा। धर्मशास्त्रों के पितृ पक्ष का महत्व बतलाते दें कि जिन पूर्वजों ने हमे परदादा-परदादी और उनसे दादा-दादी तथा नाना-नानी-माता-पिता दिया और उनसे हम और बहन-भाईयों सहित कुटुंब जनों की प्राप्ति हूई।इतना ही नही हमे उन पूर्वजों की वंशावली की वजह से ही धर्मपत्नी और उनसे संतानों की प्राप्ति हूई।पूर्वजों की वजह से ही हमे सभी नाते रिश्तेदार, इष्ट गुरुदेव कुलगुरु ज्ञानार्जन देने वाले श्रीगुरुजनों और संत महात्माओं तथा ज्ञानी वैज्ञानिकों की प्राप्ति हूई।जिन्होने हमे विधा-धन वैभव सुख सम्पन्नता एवं संसार के सभी सुख सुविधाओं का खजाना दिया तथा वंश परंमपरागत संतान के रुप मे उत्तराधिकारियों की प्राप्ति भी हूई है।

फिर हम इस आस्था-विश्वास-निष्ठा के साथ अपने पूर्वजों की उपासना क्यों न करें। पितृ पक्ष मे कौओं को भोजन कराने का विधान है।इसके अलावा भोजन के पूर्व गायों को भोजन तथा भोजन पश्चात कुत्तों को भी भोजन कराने का भी विधान है।इतना ही नहीं भिखारियों को भोजन चडियों और अन्य पक्षियों को दाने खिलाने,नदी तालाबों में जलचरों को आंटे की लोईयां डालने और चींटियों को तिल-गुड -खोब्राकिस खिलाना चाहिए।

हालांकि इस महान पर्व मे अन्य धार्मिक, मांगलिक कार्य नहीं किये जाते।हालांकि बाजारों में खरीदारी पर भी इसका असर पड़ता है।इस वर्ष 6 अक्टूबर को पितृ मोक्ष है। मनुष्य के पास वर्तमान य आने वाले भविष्य जो भी उन्नति प्रगति से उपलब्ध है या उपलब्ध होने वाला है उसका श्रेय पूर्वजों को जाता है।
इस दौरान लोग अपने अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते है। दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए अनुष्ठान किए जाते है। पितरों के तर्पण से पितृदेव प्रसन्न होते हैं। गया बिहार स्थित श्रीबाबा गंगा नाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष पंडित आशुतोष त्रिवेदी के मुताबिक जिस तिथि को व्यक्ति का निधन होता है उसी तिथि को उसका श्राद्ध करने की परंपरा है। श्राद्ध करने से पितृ दोष तथा मातृ दोष शांत होते है। पूर्वजों की कृपा मनुष्य पर हमेशा बनी रहती है।

बताया जाता है कि पूर्वजों को श्रद्धा निवेदन करने वाला पितृपक्ष के दौरान किसी नई वस्तु की खरीदारी व गृह प्रवेश समेत अन्य मांगलिक कार्य धार्मिक अनुष्ठान करना शुभ नहीं रहेगा। विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध पर्व, पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व है। नई पीढ़ी में पूर्वजों के प्रति आस्था के जागरण का पर्व है। पूर्वजों की पुण्य स्मृति का पर्व है। पितृ पक्ष समापन होने के बाद अश्विन नवरात्रि प्रारंभ होगी तब बाजार मे रौनक लौटेगी।