Published On : Fri, Jun 4th, 2021

शहर में बने 500 बेड का स्थाई अत्याधुनिक “बच्चों का अस्पताल”

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– एंप्रेस मिल की जमीन हो उपलब्ध,जिले में है 15 लाख बच्चे,मध्य भारत में नही है बच्चो का स्वतंत्र अस्पताल,डॉ. प्रवीण डबली ने की मांग

नागपुर: कोरोना महामारी के साथ हमारे शहर में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव व उससे होने वाली परेशानी से हम अच्छी तरह रूबरू हो चुके है। शहर में सरकारी अस्पताल मौजूद है लेकिन बच्चों के लिए स्थाई व अत्याधुनिक अस्पताल की जरूरत आज महसूस की जा रही है। शहर की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए शहर में करीब 500 बेट का अत्याधुनिक व स्थाई सभी सुविधाओं से सुसज्जित बच्चों का अस्पताल बनाया जाना चाहिए। जो देश का सबसे बड़ा अस्पताल होगा। यैसी मांग जीरो माइल फाउंडेशन के सदस्य डॉ. प्रवीण डबली ने शहर के सांसद नितिन गडकरी, पालकमंत्री डॉ. नितिन राऊत, शहर के महापौर दयाशंकर तिवारी से की है।

डॉ. प्रवीण डबली ने कहा कि शहर की जनसंख्या वर्तमान में करीब 46 लाख से ऊपर हो चुकी है 2011 में यही जनसंख्या 24 लाख के करीब थी। इसमें बच्चों की जनसंख्या को यदि हम देखें तो 2011 में (0 से 6 वर्ष) बच्चे 2,57,438 तथा लड़कियां( 0 से 6 वर्ष) 2,39,649 इतनी थी। यही जनसंख्या अब 2021 में करीब डबल हो चुकी होगी । साथ ही ग्रामीण में ताजे आंकड़ों को देखें तो बच्चे (0 से18 वर्ष) 5 लाख 73 हजार 294 है। शहर व ग्रामीण मिलाकर यह आंकड़ा 15 लाख से ऊपर जाता है। जिसे देखते हुए शहर में स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाना आज समय की जरूरत बनी है।

डॉ. डबली ने कहा कि शहर में मेडिकल, मेयो, डागा तथा एम्स अस्पताल मौजूद है लेकिन इन अस्पतालों में बच्चों के लिए मात्र 1 या 2 वार्ड ही उपलब्ध है। डागा अस्पताल में सिर्फ नवजात शिशुओं की ही व्यवस्था है। जो वर्तमान जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम है। शहर में करीब 300 से अधिक बालरोग विशेषज्ञ है।

ज्ञात हो की मध्य भारत में अत्याधुनिक व सभी स्वास्थ्य सुविधाओं से सुसज्जित बच्चो का अस्पताल नही है। नागपुर में स्वास्थ्य सुविधाएं लेने राज्य के ही नहीं तो मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के भी मरीज नागपुर आते है। सभी को निजी अस्पतालों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। जो आम जनता के लिए महंगा साबित होता है।

उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी की दूसरी लाट को देखते हुए गणितीय आंकड़ों के आधार पर विशेषज्ञों ने तीसरी लाट का अंदेशा जताया है। जिसका सीधा असर बच्चो पर पड़ने की बात कही है। जिसे देखते हुए शहर में स्थित सरकारी अस्पताल में 200 बेड की अस्थाई व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए है। उसी तरह ग्रामीण क्षेत्र में भी सभी तहसील में 50 बेड की अस्थाई व्यवस्था की जा रही है। जिसमे करोड़ों रुपए का खर्च आने की बात कही गई है।
प्राप्त आकड़ो के आधार पर इस पूरी व्यवस्था में 50 लाख रुपए हर तहसील में खर्च होंगे। कुल 6 करोड़ 54 लाख जा खर्च प्रस्तावित है। यह व्यवस्था भी राष्ट्रीय आरोग्य मिशन व जिला प्रशासन मिलकर कर रहा है।

ज्ञात हो की 100 वर्ष पूर्व भी महामारी आई थी तब शहर मात्र 3 किलोमीटर के दायरे में था। आज उसकी परिधि बढ़कर 50 किलोमीटर तक हो गई है। एंप्रेस मिल व मॉडल मिल की ख्याति से शहर का बाजार सूती कपड़ो का केंद्र बना। 1952-53 में वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल की शुरुआत हुई। आज शहर में मेडिकल, मेयो, डागा अस्पताल व अब एम्स जैसे सरकारी अस्पताल है। साथ ही निजी अस्पताल बड़े पैमाने पर बने है। लेकिन इन सब में बच्चो के लिए सीमित व्यवस्था है। आज शहर में बच्चो का स्वतंत्र सुसज्जित अस्पताल की जरूरत है। वर्तमान में एंप्रेस मिल बंद हो चुकी है। उसकी जगह पर मध्य भारत का अत्याधुनिक बच्चो का अस्पताल बनाया जा सकता है। इस अस्पताल हेतु सांसद व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा प्रयत्न करने पर राष्ट्रीय आरोग्य मिशन, मनपा व राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से भारत के मध्य में यह देश का 500 बेड का सबसे बड़ा बच्चो का अस्पताल शहर में साकार हो सकता है।

डॉ. डबली ने बताया कि छत्तीसगढ़ की राजधानी में भी बच्चो का हार्ट का अस्पताल बनाया गया है। जहा सभी बच्चो का हार्ट का ऑपरेशन किया जाता गई। बताते है की इस अस्पताल में कैश काउंटर ही नही है। उसी तरह बच्चो का अस्पताल इंदौर, बंगलोर, मुंबई में स्थित है।

एंप्रेस मिल की जमीन पर बने अस्पताल
डॉ. प्रवीण डबली ने कहा कि कभी नागपुर की शान व पहचान हुआ करती थी एंप्रेस मिल। लेकिन आज उसका अस्तित्व नहीं रहा। शहर में उसी ऐतिहासिक जगह पर देश का सबसे बड़ा 500 बेड का अत्याधुनिक बच्चो का अस्पताल बनाकर उस जगह को ‘मिल का पत्थर’ स्थापित करे। वैसे भी सांसद व केंद्रीय मंत्री गड़करीजी कहते है जो कही नही एसी सारी व्यवस्था वे नागपुर में लाना चाहते है। यह सपना तभी संभव हो सकेगा जब सांसद, विधायक, महापौर, राज्य के मंत्री इस बात को संजीदगी से ले। भविष्य में इसी तरह बीमारियों का हमला मानव जाति पर होता रहेगा ऐसी ही स्थिति बनती जा रही है। इस हेतु हमें तैयार रहना है। ताकि ‘प्यास लगने पर कुआं खोदने’ की जरूरत न पड़े।