नागपुरमहल क्षेत्र में हुए दंगे के बाद देशद्रोह के आरोपी युसुफ शेख की गिरफ्तारी के साथ-साथ उनके परिजनों को नगर निगम (मनपा) द्वारा अवैध निर्माण का हवाला देते हुए तोड़ू कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी। इसे चुनौती देते हुए युसुफ के पिता अब्दुल हफीज शेख लाल की ओर से और अन्य पक्षों की ओर से भी याचिकाएं दाखिल की गईं। गुरुवार को इन सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई हुई, जिसमें हाई कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई तक स्थगन देते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। इससे फिलहाल तोड़फोड़ की कार्रवाई पर रोक जारी रहेगी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अश्विन इंगोले और मनपा की ओर से अधिवक्ता जैमीनी कासट ने पैरवी की। इस बीच अधिवक्ता अरविंद वाघमारे की ओर से मध्यस्थ याचिका भी दाखिल की गई, जिसमें मनपा की कार्रवाई को अवैध बताया गया।
मध्यस्थ अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला
मध्यस्थ अर्जी में अधिवक्ता वाघमारे ने तर्क दिया कि 24 मार्च 2025 को हाई कोर्ट के आदेश में जिस इमारत को तोड़ने की बात की गई, उसके लिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, किसी भी तोड़फोड़ से पहले जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाना आवश्यक है, जो निर्माण की वैधता की जांच करे। लेकिन इस मामले में यह स्पष्ट नहीं है कि कोई नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है या नहीं। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना मानी जा सकती है।
निर्माण की अनुमति पहले ही दी गई थी – याचिकाकर्ता का पक्ष
अधिवक्ता अश्विन इंगोले ने बताया कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2002 में धंतोली जोन के सहायक आयुक्त से निर्माण की विधिवत अनुमति प्राप्त की थी। उसी आधार पर घर का निर्माण कार्य हुआ और याचिकाकर्ता वहीं निवास कर रहे हैं। इसके बावजूद 22 मार्च 2025 को महाराष्ट्र स्लम एरिया (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 के तहत नोटिस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि निर्माण कार्य बिना अनुमति के किया गया है। नोटिस में 24 घंटे के भीतर स्वयं निर्माण तोड़ने के आदेश दिए गए थे।
हाई कोर्ट की अंतरिम राहत से अब तक यथास्थिति बनी रहेगी और किसी प्रकार की तोड़फोड़ नहीं की जा सकेगी, जब तक अगली सुनवाई नहीं होती।