Published On : Fri, Dec 12th, 2014

आसगाँव : अनेक वर्षों से न्याय की आस में घुंटती परिचारिकाएँ!

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  • विधानमण्डल ध्यानाकर्षण
  • क्या मंत्री महोदय ध्यान देंगे?
  • विधानभवन के पास कर रही हैं ठिय्या आंदोलन
  • 1962 से अनेक परिचारिकाओं का जीवन मानधन पर
  • लोगों को स्वस्थ करने वाली खुद ‘लाचार-बीमार’

आसगाँव (भंडारा)। राज्य में सन् 1962 से सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केन्द्रों में अंशकालीन परिचारिकाओं के रूप में काम कर रही महिलाएँ न्याय की आस में दिनोदिन घुंट रही हैं. उस वक्त दूरसंचार, सड़कें व पर्याप्त सम्पर्क की असुविधाओं के बीच परिचारिकाएँ ग्रामीण दुर्गम क्षेत्रों में रात-दिन नागरिकों को अपनी स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करती आ रही हैं. अति दुर्गम व जंगली, पहाड़ी इलाकों में पैदल जाकर अपनी सेवाएं दी, परंतु सरकार की उदासीनता भरी नीति से उनकी समस्याएं आज भी वैसे ही हैं. उन्हीं दिनों से आज तक ये अपनी न्यायिक माँगों के लिए संघर्ष कर रही हैं, किंतु अब इन्हें दो जून की रोटी की जुगाड़ के लिए विभिन्न आर्थिक संकटों से गुजरना पड़ रहा है. इसी आस में 8 दिसम्बर से वे विधानभवन के निकट ठिय्या आंदोलन कर अपनी व्यथा सुना रही हैं.

उन्होंने बताया कि राज्य में कुल 10 हजार 434 पंजीकृत परिचारिकाएँ हैं. भंडारा, गोंदिया जिले में लगभग 450 परिचारिकाएँ हैं. इनमें से कइयों की मौत हो चुकी हैं. ये 1962 से 50 रुपये मासिक मानधन पर अगस्त 2008 तक 600 रुपए मानधान पर काम कर रही थीं. अगस्त 08 से उस समय के स्वास्थ्य मंत्री विमलताई मुंदड़ा ने परिचारिकाओं के मानधन में 300 रुपये की बढ़ोतरी की थी. उसके बाद 2010 में और 300 रुपये और बढ़ाया गया. आज 1200 रुपये मासिक मानधन मिल रहा है, परंतु अनेक दशकों से काम करने से इतनी राशि परिवार के भरण-पोषण नहीं किया जा सकता है. इसका आभास होते हुए भी सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर रही है, जो अन्यायपूर्ण है.

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ी-पुरुष समानता की दृष्टि से उस वक्त की महिलाएँ कम शिक्षित थी, कोई संगठन इन्हें आगे बढ़ा नहीं पायीं और जो कोई संगठन सामने आयी, वे उन्हें न्याय दिलाने की दिशा में पहल नहीं कर पायी. फलत: उन्हें आर्थिक नुकसान उठाते रहना पड़ा, और मानधन पर ही टिकी रहीं. इसलिए उनकी समस्याओं पर विधानमण्डल के सदनों में समस्या रख कर उन्हें पूर्णकालिक कार्यादेश देकर चतुर्थ श्रेणी का दर्जा दिया जाए, उसी आधार पर वेतन, भत्ते, सेवा शर्तें, वार्षिक वेतनवृद्धि, आकस्मित छुट्टियाँ, प्रॉविडेंट फंड, अंशदान व पेंशन लागू की जाए. महाराष्ट्र सेवा भर्ती के नियमों के अंतर्गत सेवा, तीन वर्ष के बाद पूर्णकालिक करने, औद्योगिक न्यायालय के आदेशानुसार सेवा नियमित कर उन्हें न्याय दिया जाए. ऐसी आशा विधानभवन पर ठिय्या आंदोलन कर रही परिचारिकाओं ने लगा रखी है.

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अब देखना यह है कि लोगों को अपनी सेवाएँ देकर स्वस्थ रखनेवाली इन कर्मठ परिचारिकाओं के प्रति मंत्रियों की कोई कृपा दृष्टि पड़ती है अथवा न्याय की आस में इन्हें परिवार सहित भुखमरी का दंश झेलने को मजबूर होना पड़ेगा?

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