Published On : Thu, Apr 29th, 2021

यमदूत नहीं, देवदूत बने- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर : कोई भी यमदूत नहीं, देवदूत बने यह उदबोधन प्रज्ञायोगी दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरूदेव ने विश्व शांति ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

गुरुदेव ने कहा घर-घर मंदिर हो गए हैं, जिस घर में सुबह सुबह फिल्मी गाने देखे जाते थे उस घर में भगवान की शांतिधारा देखी जाती हैं और की जाती हैं. जीवन में बुरे दिन आएंगे, और निकल जाएंगे. आज का समय ईर्षा को छोड़ने का हैं और किसी के काम से प्रेरणा लेने का हैं. दूसरों की सफलता स्वीकार नहीं करोंगे तो वहीं आपकी ईर्षा बनेंगी और सफलता स्वीकार कर लेते हैं तो वह प्रेरणा बन जायेगी. सदभावनाओं को लेकर हम चलते रहें, निरंतर जनकल्याण के लिए जुड़ते रहें. किसी के साथ अत्याचार ना करें, किराना व्यापारी हैं तो किसी का अत्याचार, शोषण ना करें. मेडिकल दुकानवाले हैं तो जितना वाजवी हैं उतना लेवे. यमदूत ना बने, देवदूत बनें. अहिंसा के पुजारी बनें. किस्मत में हैं तो तुम्हारा कहीं न जायेगा, किस्मत नहीं हैं तो कुछ नहीं मिलेगा. अन्याय, दुराचार, अत्याचार छोड़े. सभी अपने कर्तव्य का पालन करें. डॉक्टर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें. दवा के साथ दुवा भी काम कर रही हैं.

हमें डरने की नहीं, संभलने की आवश्यकता हैं-आचार्यश्री सौभाग्यसागरजी
आचार्यश्री सौभाग्यसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा में कहा हम अपने संस्कृति को छोड़कर, दूसरी क्रियाओं को अपनाया यह उसी का परिणाम हैं जो कि आज हम सभी लोग उस आपदा से बच नहीं पा रहे हैं. हमारे महारत्न, सरस्वती पुत्र इस महामारी के चपेट में आये हैं, ऋषि भी इस चपेट में हैं इसका कारण अव्यवस्था हैं. श्रावक विवेक से मुनियों की सेवा करे,वैयावृत्ति करें, आज यह समस्या साधुओं पर आ रही हैं. कई साधु इसकी चपेट में आकर समाधि हुई हैं. हमको एकजुट होकर, एक झंडे के नीचे आकर, बैठकर हम प्रभु की उपासना करें. प्रभु की भक्ति करेंगे.

तब तक हम ऐसी आपदाओं से सुरक्षित नहीं रह सकते. जब जब महामारी आई, तब तब गुरु भक्ति के द्वारा, गुरुओं की उपासना से, मंत्रों द्वारा, पूजन विधान के द्वारा यह महामारी खत्म हुई हैं. एकमात्र अहिंसामयी जो उपासना करता है वह भक्ति हैं, वही विश्व को सुरक्षित कर सकती हैं. जहां जिस जगह पर अहिंसा का वातावरण शुद्ध हुआ हैं. यहा अर्हंत भक्ति, गुरु भक्ति जहां जहां हो रही हैं इसका प्रभाव नहीं पड़ता. दवा के साथ दुवा जरूरी हैं, जब तक गुरुओं का आशीर्वाद नहीं होगा, तब तक दवा भी काम नहीं करेगी. इस महामारी से बचने के लिए जो सरकार का आदेश दिया जा रहा हैं उसका पालन करें. घर में बैठकर पंचपरमेष्ठी का ध्यान, महामृत्युंजय का जाप करते हैं इस मंत्र के प्रभाव से घर में वाइरस प्रवेश नहीं करेगा. वाइरस को दूर करने के लिए नीम के पत्ते को गर्म पानी में धोकर, पत्थर से पीस कर छोटी छोटी गोलियां बना कर अगर सुबह शाम लेते हैं तो यह वाइरस शरीर में प्रभाव नहीं करेगा. नीम पत्तियों की गोली लेते हैं तो वाइरस शरीर से निकल जायेगा.

आज हम गुरुओं की बात नहीं मानते. डॉक्टरों की दवाई के साथ, गुरुओं की बताई दवाई लेनी चाहिए. कोरोना महामारी से नागरिक भयभीत हो चुके हैं. हम घबरा जाते हैं, तनाव रखते हैं, हमें डरने की आवश्यकता नहीं हैं. आज हमें संभलने की आवश्यकता हैं. हम संभलते नहीं लेकिन डर जाते हैं. जिस घर में सुबह भगवान का नाम लिया जाता था आज उस घर में गाने बजते हैं इसी का परिणाम हैं आज हम भगवान से दूर हैं. पंथों के विवाद में ना पड़े. पंथ से पथिक बने. पंथ विवाद मंदिर से दूर रखना हैं. अनादि परंपरा, शाश्वत परंपरा आज भी जीवित हैं. महामारी के शांति के लिए आचार्य भगवंत गुप्तिनंदीजी ने अपने प्रयास से, आशीर्वाद से ऑनलाइन के माध्यम से भक्तों तक उदबोधन पहुंचा रहे हैं, सभी साधुसंतों को जोड़ने क्रम सराहनीय हैं. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया.