– शैक्षणिक सत्र को शून्य सत्र घोषित करे.- अग्रवाल
नागपुर : विदर्भ पेरेंट्स असोसिएशन के अध्यक्ष संदीप अग्रवाल ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सरकार द्वारा स्कूल खोले जाने के निर्णय पर कड़ी निंदा की है। श्री अग्रवाल ने कहा की सरकार का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण और न्याय संगत नहीं है पालको की परेशानिओ की अनदेखी करते हुवे सरकार इस प्रकार का गलत निर्णय ले रही है। श्री अग्रवाल ने कहा की प्रदेश के बच्चे कोई टेस्टिंग किट नहीं है जिसपर प्रयोग कर के देखा जा रहा है।
श्री अग्रवाल ने कहा की ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ जब भी आप किसी को फोन लगाते हैं तो महानायक की धीर-गंभीर आवाज में यह मैसेज सुनने को मिलता है. लेकिन, स्कूलों को फिर से शुरू करने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से जो जल्दबाजी की जा रही है, उसे देखते हुए यह माँग करना अनुचित नहीं होगा कि जब तक दवाई नहीं, तब तक पढ़ाई नहीं.कई स्कूलों ने पालकों के नाम एकतरफा संदेश भेजा है, जिसमें उन्हें सिर्फ बच्चों को स्कूल भेजने पर अपनी सहमति देनी है असहमति देने का विकल्प ही नहीं था.
तो कुछ स्कूलों ने फॉर्म में साफ-साफ लिख दिया है कि अगर किसी बच्चे को कोविड-19 होता है तो इसमें स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. फिर यह किसकी जिम्मेदारी है? इस बात का उत्तर किसी के पास नहीं है.सुप्रीम कोर्ट कहती है कि जीवित रहोगे तभी तो त्यौहार मना पाओगे. यह बात पढ़ाई के संबंध में क्यों नहीं सोची जा रही. एक साल बच्चे अगर स्कूल नहीं जाएंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. जब जीवित रहेंगे तभी तो आगे पढ़ेंगे. एक तरह सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियां कोरोना की दूसरी-तीसरी लहर की चेतावनी दे रही हैं, दूसरी ओर पढ़ाई के नाम पर बच्चों को खतरे में डाला जा रहा है.बच्चे कोरोना संक्रमण के सबसे आसान शिकार होते हैं.
कई देशों में स्कूल शुरू करने के नकारात्मक परिणाम सामने आए हैं. जैसे फ्रांस में सितंबर में स्कूल खोले गए तो 70 हजार बच्चे इससे संक्रमित हो गए. ब्रिटेन में स्कूल खोलने के फैसले के खिलाफ अभिभावक बड़ी तादाद में सड़कों पर उतर आए.विदर्भ पैरेंट्स एसोसिएशन ने मांग की है की जब तक कोरोना वैक्सीन आ नहीं जाती तब तक स्कूल खोलने के फैसले का निषेध करते है और सभी पालकों-अभिभावकों का आह्वान करते है कि वे अपने बच्चों की सेहत और जान को जोखिम में न डालें और उन्हें स्कूल न भेजें.
विदर्भ पेरेंट्स एसोसिएशन की सरकार से अपील है कि वह इस शैक्षणिक सत्र को शून्य सत्र घोषित करे. 1969 में ऐसे ही एक संकट के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत इंदिरा गाँधी ने शून्य शैक्षणिक सत्र घोषित किया था.श्री अग्रवाल ने सरकार से मांग की है की वर्त्तमान महामारी को देखते हुवे शैक्षणिक वर्ष २०-२१ को जीरो ऐकडेमिक वर्ष घोषित किया जाये।