नागपुर: मनपा प्रशासन आये दिन खुद की पीठ थपथपा के संपूर्ण शहर को स्वच्छ रखने का दावा करती है। लेकिन मनपा मुख्यालय की पुरानी इमारत का मुआयना करने से प्रशासन के दावे की पोल खुल जाती है। मनपा प्रशासन ने शहर साफ़-सफाई का ठेका एक निजी ठेकेदार कनक रिसोर्सेज को सौंप अपना पल्ला पहले ही कुछ वर्षों पूर्व झाड़ चुकी है।इस ठेकेदार कंपनी के पास ठेके के नियम-शर्तो के हिसाब से उतने कर्मी और पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और न ही इस कंपनी ने इस दिशा में कोई प्रयास किए हैं.
मनपा स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारी सह विभाग के कर्मचारियों का इस मामले में बड़ा ही ढीला रवैया है। मनपा स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत एवज़दार पर जिस हिसाब से खर्च किया जा रहा,उस हिसाब से शहर चकाचक नज़र आना चाहिए। परंतु मनपा स्वास्थ्य विभाग और मनपा प्रशासन सहित कनक रिसोर्स ठेकेदार कंपनी सिर्फ प्रभावी क्षेत्र एवं लोगो के इलाके में सक्रियता दिखाती है,शेष कर्मी सभी ज़ोन के जमादार के भरोसे मुफ्त का वेतन उठा रहे है। 10 जोन के जमादार और मनपा मुख्यालय में तैनात उनके आका वरिष्ठ अधिकारियों की मांग पूरी दर माह कर ऐश कर रहे है।ठेकेदार कंपनी कनक रिसोर्स तो मनपा मुख्यालय के चुनिंदा की ही सुनते,शेष की शिकायत को हवा में उड़ा कर अपने दमखम का परिचय दे रहे है।वही पदाधिकारी भी इस मामले में चुप्पी साधे कनक और स्वास्थ्य विभाग के अस्थाई-स्थाई निकम्मो को हवा दे रहे है।
मनपा मुख्यालय की पुरानी इमारत का तल और पहली मंजिल का कोना-कोना पिक दान बना हुआ है,शहर को नारंगी करने का एक ओर धुन सवार तो दूसरी और मनपा कर्मी व अन्य मनपा इमारत को लाल-लाल करने पर तुले है।कुछ कक्ष छोड़ दिए जाये तो शेष जगह बदबूदार वातावरण बना हुआ है। छत की जाने वाली सीधी स्मोकिंग ज़ोन में तब्दील हो गया है। पहली मंजिल और छत कबाड़खाना का रूप ले चुका है। पहली मंजिल का बरामदा की टाइल्स उखड़ी हुई,जो की चलने में अड़चन पैदा कर रही है।
ऐसा नहीं है कि उक्त हालात से कोई खाकी-खादी को जानकारी नहीं,बावजूद इसके लंबी चुप्पी समझ से परे है। ऐसा लगता है इनको स्वच्छ वातावरण के नाम पर सिर्फ प्रसिद्धि और पुरुस्कार चाहिए।गमगीन मुद्दा यह भी है कि मनपा मुख्यालय परिसर में जितने भी शौचालय आदि है किसी में भी न हाथ धोने के लिए साबुन या हैंडवाश है,फिर आसानी से समझा जा सकता है कि शौच क्रिया निपटने के बाद किस सूरत में उपयोगकर्ता शौचालय से बिना हाथ धोये बाहर निकलता होंगा।
– राजीव रंजन कुशवाहा