मनपा की कड़की से बिदके ठेकेदार, नहीं ले रहे नया ठेका
नागपुर: चुंगी बंद होने के बाद से नागपुर मनपा की वित्तीय हालत बिगड़ी हुई है. कई साल गुज़रने पर भी यह सुधरने का नाम नहीं ले रही है.
वर्ष २०१८-१९ के बजट के हिसाब से अमूमन सारी राशि विकासकार्यों के लिए वितरित हो चुकी है. परंतु विकासकार्य शुरू होने से मामला ‘आसमान से गिरा,खजूर पर अटका’ जैसा हो चला है.
मनपा के छोटे बड़े मिलाकर तकरीबन २५० के आसपास ठेकेदार हैं. जिन्हें मार्च २०१८ के पहले का आज तक पूरा भुगतान नहीं किया गया. जिसे पाने के लिए डेढ़ माह का तीव्र अनशन के साथ विधानसभा में सवाल भी उठ चुका है. लेकिन प्रशासन और सत्तापक्ष के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है. जब तक ठेकेदार संगठन पर सत्तापक्ष के साथ वार्ड अधिकारियों-कार्यकारी अभियंताओं का साथ था तब तक ठेकेदार वर्ग मजे में थे.
वहीं कड़की के कारण ठेकेदारों की अदायगी का मामला विधानसभा के मानसून सत्र अधिवेशन में उठने से ठेकेदारों को उनके ही हाल पर छोड़ दिया गया. इस क्रम में विशेष निधि के तहत काम करने वाले ठेकेदार ही मजे में हैं. दीपावली में बड़े गाजे-बाजे के साथ बकाया भुगतान का ४०% देने की घोषणा की गई थी. लेकिन वित्त विभाग में बाहरी बनाम लोकल अधिकारियों के भिड़ंत से पदाधिकारियों की घोषणा पर पानी फिर गया.
अब तक ठेकेदार वर्ग वर्तमान आर्थिक वर्ष में जारी हुए सामान्य ठेकों पर रुचि नहीं दिखा रहे. वहीं विशेष निधि वाले ठेके हाथों-हाथ उठ रहे हैं. जिसकी वजह से लाखों के ठेके ३ से ४ बार ‘रिकॉल’ हो रहे हैं. फिर भी ठेकेदार वर्ग लेने के इच्छुक नज़र नहीं आ रहे, जबकि तीसरी या चौथी बार ‘एस्टिमेट रेट’ में ठेके देने को प्रशासन राजी हैं.
उधर ऑनलाइन टेंडर में एक बार ‘रिकॉल’ के बाद पुनः ‘रिकॉल’ न करने के बजाय टेंडर ‘ओपन’ करने सम्बन्धी राज्य सरकार ने पिछले माह एक अध्यादेश जारी किया था. फिर भी मनपा रीकॉल पद्धति छोड़ते नजर नहीं आ रही है.
उल्लेखनीय यह है कि शहर में केंद्र और राज्य सरकार के मार्फ़त इतने विकासकार्य शुरू हैं कि शहरवासियों को आवाजाही में अड़चन महसूस हो रही है. दूसरी ओर नगरसेवक वर्ग अपने प्रभाग में मूलभूत काम नहीं कर पा रहे हैं. क्यूंकि ठेकेदार ठेका नहीं ले रहे.प्रभाग की जनता की मांग पूरी करने में खरी न उतरने से वे आगामी चुनाव में जनता/मतदाता का सामना करने में अभी से ही ‘बैकफुट’ पर नज़र आ रहे हैं.
कोटेशन के काम बिक रहे
मनपा में ढाई लाख तक के काम कोटेशन के तहत किए जाते हैं. ऐसे टुकड़ों में काम से ठेकेदारों को काफी बड़ा हिस्सा मुनाफा होता हैं. इसकी जानकारी नगरसेवकों और प्रशासन के संबंधितों को हैं. घाघ नगरसेवक और पदाधिकारी बड़े-बड़े कामों को टुकड़ों -टुकड़ों में कर टेंडर की बजाय कोटेशन के जरिए करवाने में ज्यादा रुचि रखते हैं. ढाई से तीन लाख के ठेके में कमोबेश आधे-आधे का फायदा होता है. काम के बाद बचे आधे को बाँटने के बाद ५०००० से ७५०००० रुपए का शुद्ध मुनाफा हो जाता है. आज कल कई पदाधिकारी कोटेशन के हिसाब से नगरसेवकों को प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश देने के साथ खुद के परिचित/परिजनों को ठेकेदार बनाकर काम भी करवा रहे हैं. कुछेक जो ठेकेदार नहीं, उनके इलाके के कोटेशन वाले प्रस्ताव को नगरसेवक या उसके रिश्तेदार खरीदने के लिए ५०००० की बोली बोल रहे हैं, अर्थात ऐसे कामों की गुणवत्ता पर चिंतन करना समय की मांग है