Published On : Wed, Jul 26th, 2017

नीतीश का इस्तीफ़ा, हत्या के आरोपी नीतीश, वैकल्पिक सरकार की तैयारी !

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Nitish Kumar
नीतीश के इस्तीफे से उठते सवाल:

1.क्या नीतीश भाजपा के समर्थन से वैकल्पिक सरकार बनायेंगे?
2.क्या लालू का राजद अन्य से जरुरी समर्थन जुटा सरकार गठन कर सकता है?
3.क्या महागठबंधन बरकरार रखते हुए नीतीश की जगह नया नेता चुना जा सकता है?
4.क्या बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाया जायेगा?

पहले जवाब पहली संभावना पर।
अगर नीतीश भाजपा का समर्थन लेते हैं या साथ में सरकार बनाते हैं,तो उनकी स्वच्छ छवि पर सवालिया निशान लग जायेंगे।उनकी छवि एक सत्तालोलुप,अवसरवादी,अविश्वसनीय,कमजोर नेता की बन जाएगी।

सवाल पूछे जाएंगे कि जिस नरेन्द्र मोदी और भाजपा को सांप्रदायिक बताते हुए नीतीश ने भाजपा से पिंड छुड़ा लिया था वह भाजपा अब धर्मनिरपेक्ष कैसे बन गई?पूछा जाएगा कि उन्होंने भाजपा के”कांग्रेस-मुक्त भारत” अभियान के मुकाबले “संघ-मुक्त भारत” का जो अभियान छेड़ा था, उसका क्या होगा?पूछा जाएगा कि जिस मोदी-शाह ने उनके DNA पर सवाल उठाये थे उनके साथ गलबहियां कैसे?पूछा जाएगा कि जिस नरेंद्र मोदी के आगे परोसी थाली को उन्होंने वापस ले लिया था, उसी थाली में अब मोदी के साथ भोजन करेंगे?पूछा जाएगा कि जब उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप में एक सजायाफ्ता लालू यादव के साथ गठबंधन किया, साथ में सरकार बनाई तब उन्हें लालू-परिवार के भ्रष्टाचार के विषय में जानकारी नहीं थी जो अब भ्रष्टाचार की बातें कर रहे हैं? इसी तरह के अन्य अनेक असहज़ सवालों का सामना नीतीश को करना पड़ेगा।

अब जवाब दूसरी संभावना पर।
लालू तोड़फोड़ कर विधानसभा में आवश्यक बहुमत जुटा लेंगे, इसमें संदेह है।कांग्रेस साथ में है।लेकिन बहुमत के लिये उन्हें जदयू के घर में सेंध लगानी होगी। फिलहाल ये संभव नहीं दिखता।वैसे, इस तथ्य के आलोक में कि वर्तमान स्थिति में कोई भी चुनाव नहीं चाहता, कुछ भी असंभव नहीं। और अब तो लालू ये खुलासा कर सबसे बड़ा विस्फोट कर बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है कि नीतीश कुमार हत्या के आरोपी हैं और2009 में पटना के निकट बाढ़ की अदालत ने मामले में संज्ञान भी ले लिया है।मामले में नीतीश को फांसी तक की सजा हो सकती है।लालू के अनुसार, नीतीश का ये हत्या वाला गुनाह भ्रष्टाचार के किसी कथित गुनाह से कहीं अधिक गंभीर है।लालू ने ये चिन्हित करने की कोशिश की कि “सुशासन बाबू” कोई दूध के धुले नहीं हैं।तो क्या नीतीश अपनी इस संभावित परेशानी का आभास हो जाने के कारण इस्तीफे का हथकंडा अपना मैदान छोड़ भागे ?इसे एक सिरे से नकार नहीं जा सकता।

इस खुलासे के बाद जदयू खेमे की बेचैनी का अंदाजा लगाना कठिन नहीं।नीतीश की नई विकृत छवि महागठबंधन के लिए नए द्वार भी खोल सकती है।

जहां तक राष्ट्रपति शासन की संभावना का सवाल है,मैं बता चुका हूं कि अभी कोई भी चुनाव नहीं चाहेगा।भाजपा ये साफ-साफ बोल भी चुकी है। ऐसे में तय है कि सभी दल वैकल्पिक सरकार की संभावना तलाशेंगे।औऱ ऐसी कोई भी संभावना बगैर लालू यादव, अर्थात राष्ट्रीय जनता दल के सहयोग के संभव नहीं है।

—एस. एन. विनोद की कलम से