Published On : Thu, May 10th, 2018

नए आयुक्त का मनपा सफर, कठिन है डगर

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virendra singh nmc nagpur

नागपुर: नागपुर मनपा इस दिनों समन्वय का असंतुलन खोने के कारण कठिनाई के दौर से गुजर रही है. स्थानीय बनाम बाहरी व नए बनाम पुराने अनुभवी के साथ सक्षम बनाम असक्षम की भिन्नता पाट तमाशबीन बना दिया गया. इस वातावरण में नए आयुक्त को अपनी गुणवत्ता सिद्ध करने के लिए मछली की भांति धारा के विपरीत सफर तय करना होगा. या फिर वर्तमान स्थिति के समक्ष नतमस्तक होने की नौबत आ सकती है.

शिष्टाचार का नहीं हुआ पालन
जब-जब मनपा में नए आयुक्त कामकाज संभालते हैं, उसी दिन उनकी सर्वप्रथम नगर के प्रथम नागरिक से औपचारिक मुलाकात की परंपरा चली आ रही है. क्यूंकि नए आयुक्त की किसी मनपा में पहली ‘पोस्टिंग’ हुई,इसलिए उन्हें इस परंपरा का अनुभव नहीं था और इसलिए भी वे आजतक इस प्रथा का निर्वाह नहीं कर पाए. जबकि मनपा में नए आयुक्त के अधीनस्त अधिकारियों को उक्त परंपरा भली-भांति जानकारी होने के कारण उन्होंने नए आयुक्त के ध्यान में न लाना चर्चा का विषय बना हुआ है. इसके पूर्व मनपायुक्त अश्विन मुद्गल ने पहले ही दिन शाम को महापौर नंदा जिचकर और स्थाई समिति सभापति संदीप जाधव से मुलाकत कर शहर व मनपा संबंधी औपचारिक चर्चा की थी.

विभाग निहाय नियमित औचक दौरे की नितांत आवश्यकता
नए मनपायुक्त ने पदभार ग्रहण करने के बाद २-३ दिन पूर्व नए प्रशासकीय इमारत में स्थित मनपा के विभिन्न विभागों का सुबह-सुबह औचक निरिक्षण किया. खामियां तो मिली लेकिन इसे भी कर्मियों और अधिकारियों ने एक परंपरा का हिस्सा कहकर टाल गए. जबकि मनपा मुख्यालय और मुख्यालय के बहार जोनल कार्यालयों में सिद्दत और मज़बूरी से कॉन्ट्रेक्ट और अस्थाई कर्मी ही काम कर रहे हैं. यह कहा जाये कि मनपा का कार्यभार इन्हीं के भरोसे चल रहा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. वहीं दूसरी ओर स्थाई कर्मी और अधिकारी सिर्फ बकाया और वेतन सह सुविधा वृद्धि,लाभप्रद पद पर तैनातगी के लिए मनपा और उसके बाहर टहलते नज़र आ जाएंगे. ४० से ५०%कर्मी मूल विभाग से अन्य विभाग में तैनात हैं और पहुँच रखने वाले अधिकारी या तो वर्षों से लाभप्रद पद या फिर अनेक विभागों के मुखिया हैं. इस परिस्थिति को सुधारने के लिए नए आयुक्त को कड़े कदम उठाने होंगे.

अनुभवी हाथ पर हाथ धरे बैठे,पीएमसी काट रही मजे
मनपा में ऐसा नहीं की अनुभवी-सक्षम अधिकारी नहीं की मनपा में कद्र नहीं, प्रशासन-सत्तापक्ष के मनमाफिक न चलने वालों को न तो पदोन्नति और न ही उसके गुणवत्ता के अनुसार उन्हें जिम्मेदारियां दी जाती है. जिन्हें जिम्मेदारियां दी जाती हैं वे अनुभवहीन और असक्षम होने से उम्मीदों पर खरा नहीं उतरते. इस वजह से मनपा में या मनपा के बाहर उनके पालक ऐसो को संरक्षण देकर मामूली से मामूली प्रकल्पों के लिए ‘पीएमसी’ की नियुक्ति पर सालाना लाखों में खर्च करती हैं.

सभागृह की घोषणाओं पर गंभीरता नहीं
पिछले कुछ सालों से मनपा की आम या खास सभाओं में महत्वपूर्ण दर महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए.इसके बाद जिसे कभी गंभीरता से नहीं लिया गया. नतीजा मनपा सभागृह के कामकाज पर आम नगरसेवकों का विश्वास डगमगाने लगा. पिछले सभा में घोषणा हुई थी कि फलाने तिथि को विशेष सभा ली जाएंगी. जब उक्त तिथि को २-३ दिन शेष रह गया और विशेष सभा हेतु कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी तो विपक्ष नेता ने पत्र लिख जानना चाहा कि क्या हुआ तेरा वादा…

मनपा मुख्यालय में अजीब सा सन्नाटा
मनपा मुख्यालय में बाहर डेढ़ दशक पूर्व हुआ करती थी. तब का वातावरण जज्बाती हुआ करता था. भीड़ रोजाना असीमित रहती थी,कामकाज समाधानकारक थे. पिछले एक दशक से अधिक समय से वातावरण कमर्शियल होने से मनपा में सन्नाटा छा गया. चुनिंदा के हाथों चुनिंदा के कामकाज होने से वीरानी छाई हुई है. अमूमन सभी बैठक दर बैठक आते और जाते हैं. इसलिए प्रशासन पर सत्तापक्ष या विपक्ष के जनप्रतिनिधियों की पकड़ कमजोर पड़ गई.

पत्र नहीं मौखिक आदेशों को तहरिज अधिकारी
हॉटमिक्स जैसे विभाग के कार्यकारी अभियंता के अनुसार चुनिंदा पदाधिकारियों के मौखिक आदेशों का बिना अगला-पिछला देखे मांग पूरी कर मनपा नियमावली को चुना लगा रहे और करदाताओं की जायज मांग पर कानून और नियमावली दिखा रहे. यह भी कहते है कि आयुक्त या महापौर मौखिक कह देंगे तो कुछ भी कर जाएंगे। लेकिन उनके ही पत्रों को तहरिज नहीं देंगे.

उल्लेखनीय यह हैं कि नए आयुक्त ने मनपा की लैंड और विकास कार्यों के लिए सोशल ऑडिट करवाने पर जोर देने से मनपा और शहर का फायदा हो सकता है. साथ ही मनायुक्त ने मनपा मुख्यालय परिसर में पुरानी इमारत के कक्षों का भी सूक्षम मुआयना करना समय की मांग बतलाई जा रही है.