Published On : Fri, Dec 26th, 2025
By Nagpur Today Nagpur News

शीशे के घर में बैठकर पत्थर: नवनीत राणा के बयान ने छेड़ी जनसंख्या बनाम राजनीति की नई बहस

नवनीत राणा का बयान, सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया और राजनीतिक आत्मघात
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राजनीति में शब्द कभी-कभी पत्थर बन जाते हैं। और जब पत्थर उछाले जाते हैं, तो लौटकर शीशे के घरों को भी तोड़ते हैं। भाजपा की पूर्व सांसद नवनीत राणा के हालिया बयान के बाद जो कुछ हुआ, वह इसी सच्चाई का उदाहरण है।

अमरावती में दिए गए बयान में नवनीत राणा ने जनसंख्या, धर्म और राष्ट्रीय सुरक्षा को एक ही धागे में पिरोते हुए हिंदुओं से “तीन-चार बच्चे पैदा करने” की अपील की। उन्होंने एक मौलाना के “चार पत्नियों और 19 बच्चों” वाले कथित बयान का हवाला देते हुए यह तर्क दिया कि “हिंदुस्तान को पाकिस्तान बनाए जाने की साजिश” के जवाब में हिंदुओं को जनसंख्या बढ़ानी चाहिए।

यहीं से विवाद की चिंगारी भड़की।

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इस बयान को लेकर देशभर में राजनीतिक और सामाजिक आलोचना शुरू हुई। अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष प्यारे खान ने इसे समाज में तनाव पैदा करने वाला बताते हुए कहा कि भाजपा विकास की राजनीति का दावा करती है और ऐसे बयानों की जरूरत नहीं है। इसके बाद नवनीत राणा ने सफाई देते हुए कहा कि “मैं कितने बच्चे पैदा करूं, यह मेरा निजी मामला है” और यह कि उनकी टिप्पणी बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को लेकर थी।

लेकिन तब तक बात बयान से आगे निकल चुकी थी।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया आई—और दुर्भाग्यवश, उसमें कई जगह मर्यादा भी टूटी। कुछ लोगों ने उन्हीं के शब्दों को पलटकर नवनीत राणा और उनके पति को निशाना बनाना शुरू कर दिया। Nagpur Today स्पष्ट रूप से कहता है: किसी भी महिला की गरिमा पर हमला, निजी जीवन पर तंज या अपमान—किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है। असहमति का अर्थ अपमान नहीं होता।

लेकिन एक कड़वा सच भी है।

जब आप सार्वजनिक मंच से महिलाओं के शरीर, प्रजनन और परिवार नियोजन पर “राष्ट्रीय कर्तव्य” का भाषण देते हैं, तो प्रतिक्रिया निजी दायरे तक खिसक सकती है। राजनीति में यह नया नहीं है—इसे ही कहते हैं शीशे के घर में बैठकर पत्थर फेंकना

सवाल यह नहीं है कि सोशल मीडिया ट्रोलिंग सही है या गलत—वह गलत है।

सवाल यह है कि क्या तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे बयान दिए ही जाने चाहिए थे?

जनसंख्या के तथ्य: डर बनाम हकीकत

भारत की जनसंख्या को लेकर डर की राजनीति दशकों से होती रही है, लेकिन आंकड़े कहीं ज्यादा संयमित तस्वीर दिखाते हैं।

  • जनगणना 2011 के अनुसार,
    • हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार गिरावट आई है।
    • मुस्लिम समुदाय की वृद्धि दर हिंदुओं से अधिक रही है, लेकिन वह भी तेज़ी से घट रही है
  • कुल प्रजनन दर (TFR) के मामले में
    • हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच का अंतर पिछले 30 वर्षों में काफी कम हुआ है
  • आज भारत के अधिकांश राज्यों—चाहे बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक—में
    शिक्षा, शहरीकरण और आर्थिक स्थिति ही परिवार के आकार को तय कर रही है, धर्म नहीं।

सीधी बात: जनसंख्या का मुद्दा नीति और विकास से जुड़ा है, न कि धार्मिक होड़ से।

निष्कर्ष

नवनीत राणा का ताजा स्पष्टीकरण यह दिखाता है कि बयान के बाद पैदा हुई प्रतिक्रिया ने उन्हें भी असहज किया। यह स्वाभाविक है। लेकिन राजनीति में जिम्मेदारी बयान देने से पहले आती है, बाद की सफाई से नहीं।

महिलाओं के शरीर को राजनीतिक हथियार बनाना—चाहे वह किसी भी पक्ष से हो—गलत है।

और समाज को धार्मिक डर दिखाकर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना, उससे भी बड़ा खतरा।

राजनीति अगर विकास का दावा करती है, तो उसे शब्दों में भी वही परिपक्वता दिखानी होगी।

वरना पत्थर लौटकर आएंगे—और शीशा सबसे पहले टूटेगा।

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