नागपुर/कलमना: नागपुरी संतरे और उसके साथ स्थानीय रसीली मौसंबियों का कम उत्पादन होने के बावजूद पूरे देश में इसकी मांग के अनुरूप आपूर्ति की जा रही है. अक्टूबर से दिसंबर तक खट्टे-मीठे संतरों और रसीली मौसंबी के मौसम में सिर्फ कलमना मंडी से रोजाना एक करोड़ का व्यापार हो रहा है, जबकि उत्पादन अपेक्षा के अनुरूप कम है.
संतरों के व्यापारी आंध्र फ्रूट कंपनी के संचालक फारुख भाई और मौसंबी के व्यापारी हाजी मंजरुल हक़ के अनुसार साल में संतरे और मौसंबी के दो मौसम मिलते हैं. पहला मौसम जिसे अम्बिया बहार कहा जाता है, यह अक्टूबर से दिसंबर तक रहता है. और दूसरा मौसम को मिरग बहार कहा जाता है, जो जनवरी से मार्च तक रहता है.
इस मौसम में नागपुर जिले के काटोल,कोंढाली,कलमेश्वर,नरखेड़ और वरुड़ में बड़े पैमाने पर संतरे और मौसंबी की उपज होती है. वर्तमान मौसम में संतरे खासकर खट्टे-मीठे होते हैं और जनवरी से मार्च के मौसम में मीठे व रसीले संतरे और मौसंबी की पैदावार होती है.
दोनों ही सीजन के संतरे और मौसंमी बिहार, उत्तरप्रदेश के अलावा कलकत्ता व दिल्ली आदि शहरों में रोजाना ट्रकों से भेजे जा रहे हैं. इन दोनों फलों के उत्पादन करने वाले किसानों का रोजाना कलमना मंडी में माल आता है. रोज बोली लगती है, बोली के बाद प्रचलित परंपरा के अनुसार उन्हें नगदी भुगतान किया जाता है. वहीं दूसरी ओर इन फलों के व्यपारियों को उनके बाहरी खरीददार सप्ताह-१५ दिनों में भुगतान करते हैं.
फारुख भाई के अनुसार कलमना मंडी से इन दिनों कम उत्पादन के बावजूद रोजाना व्यापार एक करोड़ तक हो रहा है. मंडी से बाहरी राज्यों में २०००० से २८००० रुपए प्रति टन में फलों की गुणवत्तानुसार बिक्री जारी है. अमूमन एक ट्रक में ६०० बॉक्स संतरे या मौसंबी आते हैं, जिसकी अनुमानित कीमत पौने ४ से ४ लाख रुपए तक होती है. इस व्यापार में ५ दर्जन स्थानीय व्यापारी हैं, जिसमें अधिकांश बाहरी राज्यों में फलों को बेचने का व्यवसाय करते हैं.
इस मौसम के फलों का दिसंबर के आखिरी तक स्वाद लिया जा सकता है. फिर नए वर्ष के जनवरी से मार्च तक मीठे संतरों का मौसम होता है, जिसकी मांग देखते ही बनती है. उत्पादन अधिक हुआ तो कीमतें काफी घट जाती हैं.