Published On : Thu, Sep 6th, 2018

प्रन्यास घोटाला मामले में अदालत को सौंपी बंद लिफ़ाफ़े में न्या. गिलानी ने रिपोर्ट

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Nagpur Bench of Bombay High Court

नागपुर: प्रन्यास की ओर से कुछ चुनिंदा राजनीतिक हस्तियों एवं उनकी संस्थाओं को भूमि का आवंटन किया गया था. नियमों और कानून को ताक पर रखकर भूमि का आवंटन होने का आरोप लगाते हुए शहर के एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में खबरों की शृंखला चलाई गई थी. इन खबरों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता अनिल वाड़पल्लीवार ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी.

याचिका पर बुधवार को सुनवाई के दौरान न्यायाधीश भूषण धर्माधिकारी और न्यायाधीश मुरलीधर गिरटकर के समक्ष बंद लिफाफे में तत्कालीन न्यायाधीश गिलानी की एक सदस्यीय समिति की ओर से जांच रिपोर्ट सौंपी गई. हालांकि पेश की गई रिपोर्ट का अदालत की ओर से अवलोकन तो किया गया, लेकिन किसी भी तरह का खुलासा किए बिना इसे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास सुरक्षित रखने के आदेश जारी कर दिए. अदालत मित्र के रूप में अधि. आनंद परचुरे ने पैरवी की.

आवंटन में कई अनियमितताओं की संभावना
बुधवार को हाईकोर्ट को पेश की गई रिपोर्ट की जानकारी भले ही अन्य वादी और प्रतिवादियों को न दी गई हो, लेकिन विशेष रूप से राजनीतिक दबाव के कारण हुए 85 आवंटनों के मामले में कई तरह की अनियमितताएं होने की संभावना जताई जा रही है. विशेषत: जांच के दौरान न्या. गिलानी की ओर से प्रत्येक मामले पर सघन जांच की गई, जिसके बाद रिपोर्ट तैयार की गई.

बुधवार को सुनवाई के दौरान भले ही न्या. गिलानी की ओर से किसी भी तरह का मानधन लेने से इंकार किया गया हो, लेकिन अदालत ने इसके लिए उन्हें क्या मानधन दिया जाए, इस संदर्भ में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने के निर्देश देते हुए सुनवाई स्थगित कर दी.

प्रन्यास ने अधिकारियों को दिया नोटिस
एक ओर जहां हाईकोर्ट में न्या. गिलानी की जांच रिपोर्ट पेश की गई, वहीं दूसरी ओर प्रन्यास प्रशासन की ओर से कार्यकारी अधिकारी एम.एच. हेडाऊ, वी.आर. त्रिवेदी, आर.के. पिंपले, ए.एस. देशभ्रतार, एस.के. बापट, एस.बी. झाडे, पी.एम. भांडारकर के अलावा कार्यकारी अभियंता ए.के. गौर, एस.यू. देव, डी.एम. सोनवने और डी.आर. गौर को भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया.

इनके अलावा पी.एस. रघुटे, बी.टी. डोंगरे, सी.एफ. दहीकर, आर.एन. समर्थ और आर.एम. खापरे, एम.बी. गाणार, सुदाम वालोंद्रे और जे.बी. लोणारे जैसे निचले स्तर के कर्मचारियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी कर उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न की जाए, इसका जवाब मांगा गया है. बताया जाता है कि गत 2 दशकों से मुख्य पदों पर रहे अन्य 25 से अधिक अधिकारियों को भी इसी तरह नोटिस जारी होने की संभावना है.