Published On : Mon, Aug 13th, 2018

हरित चिंतन : विज्ञापनवालों की कीलों से पेड़ लहूलुहान

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नागपुर: सावन के सीजन में शहर की सडकों के किनारे हरे भरे पेड़ आँखों को सुकून पहुँचाते हैं. लेकिन इन पेड़ों के तनों को ध्यान से देखने पर समझ आता है कि यह विज्ञापनों के फलकों को टाँगने के लिए ठोंकी गई कीलों की वेदना से बेज़ार हैं.

जड़ों के आस पास डांबर और सीमेंट की सडकों समेत प्रदूषण की मार तो यह पेड़ झेल ही रहे हैं, लेकिन कील ठोंकने की इस मनोवृत्ति से घायल भी हो रहे हैं. विज्ञापनकर्ताओं के निशानें में ये पेड़ सबसे आसानी और पहले आते हैं.


इस पर रोक लगाने के लिये अदालत से निर्देश भी दिए जा चुके हैं लेकिन प्रशासन इस पर नकेल कसने में नाकाम पड़ता दिखाई दे रहा है. इन बेज़ुबान पेड़ों की असहनीय पीड़ा को हम भले ही नज़रअंदाज़ कर जाते होंगे लेकिन एक सुधिजन नागरिक अविनाश गोवर्धन ने इस दर्द को तस्वीरों के माध्यम से बयां कर नागरिकों में जागरुकता लाने की कोशिश की.

नागपुर टुडे को अविनाश द्वारा भेजी गई ई-मेल के जरिए तस्वीरों को साझा किया गया. इसके साथ नागरिकों से पेड़ों को कोई भी चीज़ टाँगने के लिए उसके तनों में कीलें ठोकने से रोकने की अपील की गई है. उन्होंने बताया कि ऐसा करने से पेड़ की छाल के ठीक नीचे कैम्बियम होता है जहां से पेड़ की कोशिकाएँ तेज़ी से विकसित होती हैं जिससे पेड़ बड़े होते हैं. इन कीलों से पेड़ का फ्लोएम तक क्षतिग्रस्त हो सकता है जो पेड़ को पोषण पहुंचाने का माध्यम है. पेड़ों में कीलें ठोंकने को उन्होंने ट्री प्रिवेंशन एक्ट के तहत अपराध करार दिया. साथ ही पेड़ों पर विज्ञापन करना सार्वजनिक स्थलों पर मुफ़्त में विज्ञापन के के तहत आता है जो नियमों के ख़िलाफ है.

लिहाजा न केवल गोवर्धन बल्कि नागपुर टुडे का भी यही मत है कि पेड़ों में कीलें ठोंकने की रोकथाम के लिए कोई ठोस और कड़े नियमों को लागू करने जरूरत है.