Published On : Wed, Aug 29th, 2018

शील का सीधा आत्मा से नाता है-आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर: शील का सीधा आत्मा से नाता है यह उदबोधन तीर्थंकर कैसे बने सोलहकारण व्याख्यान माला के तीसरे दिन बुधवार को इतवारी शहीद चौक स्थित श्री. पार्श्वप्रभु दिगंबर सैतवाल जैन मंदिर संस्था के बाहुबली भवन मे किया. गुरुदेव ने निष्कलंक शील भावना पर संबोधित करते हुए कहा शील क्या है चार लाइन से उन्होंने कहा-शील हमें हमारा स्वभाव बताता है।शील का सीधा आत्मा से नाता है।भारत में शील बचपन से निभाया जाता है।शील वह पारसमणि है जिससे आत्मा परमात्मा बन जाता है।आचार्य श्री ने इसका विश्लेषण करते हुए कहा कि शील मर्यादा का पालन करना आत्मा का स्वभाव है।

संसार का प्रत्येक घटक, धरती का कण-कण जब तक अपनी-अपनी मर्यादा में रहता है तब तक वह सबके लिए अच्छा लगता है।रेल अपनी पटरी पर चलते हुए ही अपने गंतव्य तक पँहुचती है और पटरी से उतरते ही एक्सीडेंट हो जाता है।हवा, पानी, अग्नि और धरती जब-जब अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं वहीं प्रलय आ जाता है।अच्छे फल, फूल, वनस्पति सबका मन मोह लेते हैं।

सडते ही बदसूरत बेकार हो जाते हैं,फिर वो कचरे में जाते हैं या शराब बनकर तबाही मचाते हैं।ऐसे ही कोई भी स्त्री या पुरुष अपनी मर्यादा में ही अच्छे लगते हैं।अच्छे ही नहीं लगते बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान बनकर पूजें जाते हैं।एकमात्र शील का पालन करने से श्री रामचंद्र जी व सीता माता का आज सभी श्रद्धा से नाम लेते हैं और शील को छोडने के कारण आज तक रावण का दहन हो रहा है।यह भारत ऋषि-मुनियों,साधू-संतों, त्यागियों का देश है।

यहाँ आज भी त्याग की पूजा होती है।किसी ने हाथी से पूँछा कि हे गजेन्द्र!तुम अपनी लम्बी सूँड से इस धरती पर हमेशा क्या खोजते फिरते हो?हाथी ने कहा कि यह धरती बहुत पावन है।यहाँ अनादि काल से अनंतों ऋषि मुनियों ने कठोर तप साधना करते हुए अपनी आत्मा को परमात्मा बनाया है।उनके चरणों की रजकण भी बडे भाग्य से मिलती है।जिसे उनकी चरणरज मिल जाती है वह भी पावन बन जाता है सो मैं उन्हीं पगरज को खोज रहा हूँ।

आचार्य श्री ने भगवान श्री पूज्य पाद आचार्य के इष्टोपदेश ग्रंथ का श्लोक सुनाते हुए कहा कि जो अभी शील व्रतों का पालन करेगा वही आगामी पाँचवें-छठे काल के दुःखों से बचेगा*। *इनके अलावा जो तनिक भी व्रत नियमों का पालन नहीं करते हैं वे आगे पंचम व छठे काल के महादुखों को साक्षात भोगते हुए आगे नरकादिगति के अति भयानक कष्टों को सागरों पर्यंत सहन करेंगे।

इसलिये अश्लीलता को छोड़कर शील अपनाइये। शील, सच्चरित्र की नींव पर उन्नत और सुदृढ भारत का निर्माण कीजिये क्योंकि
शील ही भारत का गौरव रहा है।शील के लिए चित्तौड़गढ़ में तीन बार बडे पैमाने पर जौहर हुए*।जिसे आज भी गौरव से गाया जाता है “कूद पडी थीं यहाँ हजारों पद्मिनियाँ अंगारों पर” ।

इस देश की वीर बाला ,वीरांगना झांसी की रानी ने पहले मर्दानी बनकर आजादी की लडाई लडी और लडते-लडते जब हारने की नौबत आई तो अपने प्राण देकर अपने शील की रक्षा की।इस प्रकार शील ही भारत माता को दुनिया का सिरमौर बनाता है।

आईए हम भी शील को अपनायें और अपने देश की गरिमा को निरंतर आगे बढायें धर्मसभा मे दीप प्रज्ज्वलन विजय कापसे, वैजयंती कापसे, वर्षा मोपकर, प्रशांत मानेकर, सुनंदा मानेकर, सतीश गडेकर ने किया. गुरुदेव का चरण प्रक्षालन विजय कापसे, वैजयंती कापसे, वर्षा मोपकर, प्रशांत मानेकर ने किया. मंगलाचरण नीता जैन पेंढारी ने किया. जिनवाणी भेट विजय कापसे, रविन्द्र पळसापुरे, सतीश गडेकर, वर्षा मोपकर, पन्नालाल खेड़कर, अक्षय गहाणकरी अमरावती ने दी. प्रश्नमंच के विजेताओं को शैलेष मोपकर द्वारा पुरस्कृत किया गया. धर्मसभा का संचालन दिलीप राखे ने किया.

गुप्तिनंदीजी जिनवाणी चैनल पर आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव के नागपुर मे हुए वचनामृतों का प्रसारण प्रतिदिन दोपहर 3 बजे से 3:20 तक जिनवाणी चैनल हो रहा है. सभी धर्मप्रियजनों से लाभ लेने की अपील चातुर्मास समिति के सदस्य सुधीर सिनगारे ने की है.