Published On : Mon, Nov 29th, 2021
nagpurhindinews | By Nagpur Today Nagpur News

एमएलसी चुनाव: भाजपा उम्मीदवार बावनकुले की राह के रोड़े

Advertisement

आगामी 10 दिसम्बर को स्थानीय निकाय निर्वाचन क्षेत्र से होने वाले विधान परिषद के लिए चुनाव में पूर्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले की उम्मीदवारी को लेकर कतिपय अटकलें लगाई जा रही हैं. इन अटकलों को तब बल मिला जब मतदाता पार्षदों के विभिन्न गुट गोवा और अन्य स्थानों की यात्रा पर प्रस्थान कर गए हैं. कहा जा रहा है कि पार्षदों को प्रतिकूल रूप से ‘प्रभावित’ करने की संभावित साजिश से बचने के लिए उन्हें बाहर भेजा गया है, लेकिन पार्टी और अन्य जानकार सूत्रों की मानें, तो यह एक सामान्य प्रक्रिया है. इसमें गुटबाजी का कोई तत्व मौजूद नहीं है. बावनकुले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, दोनों की पसंद हैं. ऐसे में गडकरी-फडणवीस के कथित गुटों के कारण किसी भितरघात की आशंका बेमानी है.

महापौर दयाशंकर तिवारी ने ऐसी किसी संभावना से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि पार्षदों की यात्रा एक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत हुई है. इसका एमएलसी चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है. तिवारी ने, तो यहां तक कह डाला कि विपक्ष चाहे, तो हम उसे भी इस यात्रा में शामिल कर लेंगे. पार्टी के अन्य नेताओं का भी कहना है कि पार्टी के 60 पार्षदों में से कोई भी ‘क्रास वोटिंग’ नहीं करेगा. पार्टी पूरी तरह एकजुट है और बावनकुले की जीत तय है.

बावजूद इसके कतिपय राजनीतिक विश्लेषक चुनाव परिणाम को लेकर सशंकित हैं. इनके अनुसार भाजपा में व्याप्त अंदरूनी कलह से परिणाम प्रतिकूल रूप में प्रभावित हो सकता है. उल्लेखनीय है कि भाजपा ने नगरसेवकों के कार्यकाल की समीक्षा बैठक के बाद संकेत दिया था कि करीब 50 प्रतिशत वर्तमान नगरसेवक-नगरसेविकाओं की जगह नए चेहरों को टिकट दिया जाएगा. इस कारण आशंका जताई जा रही है कि कहीं कथित निष्क्रिय पार्षदों पर विपक्षी डोरे न डाल दें. चूंकि राज्य में भाजपा सत्ता में नहीं है, उन्हें ऐसा लगता है कि सत्तारूढ़ महाविकास आघाड़ी के घटक दल अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर ऐसे पार्षदों को अपने पाले में करने की कोशिश कर सकते हैं. इसीलिए ऐसी यात्राओं पर पार्षदों को बाहर भेज दिया गया.

दूसरी ओर बावनकुले को टिकट दिए जाने से वर्तमान में भाजपा विधायक, एक शहर और एक ग्रामीण के खफा हैं. उन्हें डर है कि अगर बावनकुले जीत गए और भाजपा पुन: सत्ता में आई, तो उनके मंत्री बनने का मौका खत्म हो जाएगा. इसलिए भाजपा के नगरसेवक और जिले के दो विधायक बावनकुले के विरोध में सक्रिय हैं. भाजपा के शीर्ष नेता इस बिंदु पर सतर्क दिख रहे हैं. कहा, तो यहां तक जा रहा है कि फडणवीस की इच्छा नगरसेवक विक्की कुकरेजा को टिकट दिलाने की थी, लेकिन कांग्रेस द्वारा छोटू भोयर को मैदान में उतारे जाने की हवा लगने के कारण वह बावनकुले की उम्मीदवारी के पक्ष में तैयार हो गए. बावनकुले की उम्मीदवारी से भाजपा विधायक कृष्णा खोपड़े और समीर मेघे अपने राजनीतिक अस्तित्व को लेकर चिंतित हो गए, बताए जा रहे हैं.

याद रहे, कांग्रेस उम्मीदवार छोटू भोयर भाजपा नेतृत्व से काफी दिनों से खफा थे. इसी बीच एमएलसी का चुनाव आ गया. इस चुनाव में बगावत की पटकथा लगभग तीन माह पहले लिखी गई थी. भोयर को जिले के एक मंत्री ने दिल्ली ले जाकर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से मुलाकात कराकर टिकट दिलवाने का ठोस आश्वासन दिया था. इस रणनीति के पीछे मकसद यह था कि संबंधित कांग्रेसी मंत्री को कोई अन्य राजनीतिक रूप से मजबूत नेता नहीं चाहिए था. जैसे कि राजेंद्र मुलक. इस रणनीति को सफल बनाने के लिए कांग्रेस टिकट की घोषणा तक स्थानीय कांग्रेसी नेता सिर्फ और सिर्फ उम्मीदवार चयन के नाम पर मंथन का नाटक कर समय व्यतीत करते रहे.

विधान परिषद चुनाव के लिए नामांकन करने के एक दिन पूर्व तय रणनीति के अनुसार छोटू भोयर ने कांग्रेस में प्रवेश किया. प्रवेश कार्यक्रम में उपस्थित सभी नेताओं ने भोयर को उम्मीदवारी देने और उन्हें जिताने के लिए कांग्रेसी मंत्री सुनील केदार को जिम्मेदारी सौंपी थी. बाद में भोयर ने भी स्वीकार किया कि वे केदार के कारण ही कांग्रेस में आए हैं. उल्लेखनीय है कि चुनाव में भोयर को अगर आर्थिक मदद की जरूरत पड़ी, तो पहले ही मामा मदद का आश्वासन दे चुके हैं. इस बिंदु पर भोयर को कोई परेशानी नहीं है.
राजीव रंजन कुशवाहा