Published On : Thu, Nov 14th, 2019

न्यूनतम साझा कार्यक्रम की तैयारी

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– तीनों दल शासन का एक साझा एजेंडा तैयार कर रहे हैं जिसमें समान नागरिक संहिता और राम मंदिर जैसे विवादास्पद मुद्दों को अलग रखा जाएगा। कामकाज के इस दस्तावेज को ही आधार बनाते हुए शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस निकट भविष्य में नई सरकार बनाने के लिए एक साथ आ सकते हैं

नागपुर : महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कोशिशों में जुटे तीनों दल शासन का एक साझा एजेंडा तैयार कर रहे हैं जिसमें समान नागरिक संहिता और राम मंदिर जैसे विवादास्पद मुद्दों को अलग रखा जाएगा। कामकाज के इस दस्तावेज को ही आधार बनाते हुए शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस निकट भविष्य में नई सरकार बनाने के लिए एक साथ आ सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, सरकार गठन को लेकर चर्चा कर रहे तीनों दलों ने यह माना है कि एक साथ आने के क्रम में तीनों ने ही बलिदान किया है। शिवसेना ने केंद्र सरकार में एक कैबिनेट सीट गंवाने के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का साथ भी छोड़ा है बल्कि उसे कई नगर निकायों में अपनी मजबूत स्थिति भी गंवानी पड़ी है।

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बृहन्मुंबई नगर निगम में शिवसेना बहुमत में है लेकिन बदले हुए घटनाक्रम में अगर उसे राकांपा-कांग्रेस का साथ नहीं मिले तो भाजपा उसे आसानी से पीछे धकेल सकती है। कांग्रेस के एक नेता ने इसे स्वीकार करते हुए कहा, ‘नगर निगमों में अपनी स्थिति को मजबूत रखना सेना के लिए बड़ी समस्या है। उन्हें इसका तरीका निकालना होगा।’

राकांपा में दो धड़े दिखाई दे रहे थे लेकिन 11 नवंबर को पार्टी प्रमुख शरद पवार ने यह कहकर स्थिति साफ कर दी कि न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) नहीं तैयार होने तक वह नए गठजोड़ में नहीं शामिल होंगे। एक तरह से वह शिवसेना को सम्मानजनक विदाई का मौका दे रहे थे क्योंकि उन्हें यह लग गया था कि उनकी पार्टी में ही कई लोग संभावित गठजोड़ का हिस्सा बनने को लेकर सशंकित थे। उन लोगों को लगता है कि ऐसे गठजोड़ में शामिल होने से केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नाराज होगी और उन्हें प्रवर्तन निदेशालय एवं अन्य सरकारी एजेंसियों का कोपभाजन बनना पड़ेगा।

महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन को लेकर हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी भी शिवसेना के साथ समझौता करने में हिचक रही थीं। उन्होंने खुलकर कहा कि वह खुद को उन सिद्धांतों से दगाबाजी करते हुए देख रही हैं जिनके लिए जवाहरलाल नेहरु हमेशा खड़े रहे। एक कांग्रेस नेता तंज भरे लहजे में कहते हैं, ‘जब कार्यसमिति सदस्यों ने उनके चेहरे की तरफ देखा तो उन्होंने भी वही राग अलापना शुरू कर दिया। प्रिंस ऑफ वेल्स के समर्थकों ने भी कुछ मुद्दे उठाए।’ साफ है कि उनका इशारा राहुल गांधी की तरफ था।

कांग्रेस के भीतर दो गुट बन गए थे। विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वालों ने इतनी जल्दी एक और चुनाव लडऩे की अनिच्छा जताई जबकि के सी वेणुगोपाल और ए के एंटनी जैसे नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता का हवाला देते हुए कहा कि शिवसेना के साथ जाने पर कांग्रेस की वैचारिक शुद्धता प्रभावित होगी। इसके साथ ही संभावित सरकार में भागीदारी के तरीके पर भी समझौते किए गए हैं।

अभी तो यही लगता है कि शिवसेना और राकांपा ढाई-ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद बांटने पर सहमत हो जाएंगी जबकि कांग्रेस के पास पूरे पांच साल तक उप मुख्यमंत्री का पद रहेगा। जहां तक अहम मंत्रालयों के बंटवारे का सवाल है तो तीनों दलों के शीर्ष नेतृत्व की सहमति नहीं मिलने तक यह चर्चा जारी रहने के आसार हैं।

तमाम अगर-मगर के बीच तीनों राजनीतिक दल अपने गठजोड़ को मजबूती देने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। प्रयास यह हैं कि अगले छह महीनों में हम किसी भी वक्त सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं। लेकिन इसमें बहुत देर नहीं लगेगी।’ वहीं जयपुर में पिछले कुछ दिनों से रुके कांग्रेस विधायक मुंबई लौट आए हैं।

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