नागपुर – मार्च 2022 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा अधिवक्ता सतीश उके के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद, उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर आपराधिक रिट याचिकाएं दायर की थीं। इनमें पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए भी याचिका शामिल थी। हाई कोर्ट ने याचिका क्रमांक 819/2023, 222/24 और 223/24 पर एक साथ सुनवाई की।
याचिकाओं में यह मांग की गई थी कि ऐसे पुलिस अधिकारियों के कामकाज की निगरानी के लिए एक प्रभावी तंत्र होना चाहिए, जो ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र में पहले से ही एक तंत्र सक्रिय है – महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम के तहत गठित शिकायत निवारण प्राधिकरण, जो पुलिस अत्याचारों से संबंधित आम जनता की शिकायतों पर गौर करता है।
हाई कोर्ट ने दिए निर्देश
सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि ऐसे पुलिस अधिकारियों की निगरानी दो तरीकों से की जा सकती है —
न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत कार्रवाई।
अनुशासनात्मक अथवा सक्षम प्राधिकारी यदि संतुष्ट हो, तो विभागीय कार्रवाई।
सालिसिटर जनरल देशपांडे ने दलील दी कि याचिकाकर्ता द्वारा की गई सहायक प्रार्थनाओं पर मुख्य प्रार्थना का निवारण होने के बाद भी सुनवाई की जा सकती है, लेकिन उन्होंने अन्य मुद्दों पर जवाबी तैयारी के लिए समय मांगा।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया
अधिवक्ता सतीश उके ने आपराधिक रिट याचिका क्रमांक 819/2023 में किए गए संशोधित प्रार्थनाओं की ओर कोर्ट का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि इन संशोधनों पर किसी भी प्रतिवादी ने आपत्ति नहीं की है, इसलिए कोर्ट उपरोक्त सीमा में याचिका को स्वीकृत कर सकता है।
उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ द्वारा क्रिमिनल ओ.पी. (एमडी) संख्या 4326/2015 (जी. थिरुमुरुगन बनाम राज्य) में दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए राहत दिए जाने की मांग की। इस पर अधिवक्ता देशपांडे और वरिष्ठ अधिवक्ता चौहान ने आश्वासन दिया कि वे इस निर्णय की प्रति रिकॉर्ड पर लाकर कोर्ट की समीक्षा हेतु प्रस्तुत करेंगे।