नागपुर: इससे पहले हमने देखा कि कैसे ‘मेयो’ अस्पताल में पेयजल के लिए मरीज एवं उनके परिजनों को यहां-वहां भटकना पड़ता है. अब अस्पताल के प्रसाधनकक्ष ( टॉयलेट्स ) तथा अन्य सुविधाओं के बारे में जानते हैं.
‘नागपुर टुडे टीम’ बुधवार को मेयो अस्पताल के सर्जिकल वार्ड में पहुंची और पाया कि वहां स्वच्छता की ‘साफ़’ अनदेखी हो रही है. सम्पूर्ण वार्ड का मुआयना करने के बावजूद वहां एक भी सफाई कर्मचारी के दर्शन नहीं हुए. पूछताछ करने पर पता चला कि वेतन वक्त पर न मिलने से कर्मचारी काम छोड़ देते हैं. हाल ही में ३ माह का वेतन बकाया होने के कारण २ लोगों ने काम छोड़ दिया.
इस वजह से अस्थिरोग (ऑर्थोपेडिक) कान-नाक-गला (ईएनटी) एवं आग से क्षतिग्रस्त (बर्न) मरीज विभाग के प्रसाधनकक्ष बेहद गंदे और अस्वच्छ हालत में हैं. कहीं पानी जमा हुआ है तो कहीं बेसिन का पाइप निकला हुआ है. कहीं पान-तम्बाकू की पिचकारी और कहीं फैली हुई धूल और गन्दगी का दृश्य था. आश्चर्य की बात है कि लगभग सभी मंजिलों के प्रसाधनकक्षों में ताले जड़े हुए थे. अपवाद छोड़ दें, तो सर्जिकल वार्ड के सभी महिला प्रसाधनकक्ष भी बंद थे. इस कारण ‘राईट टू पी’ के लिए महिला मरीज एवं उनके परिजन (महिला) खोजबीन में जुटे थे. ईएनटी विभाग के बाहर रुके एक मरीज के रिश्तेदार ने बताया कि डॉक्टर, मरीज और उनके साथ रुके लोग सभी इस विभाग के भीतर वाले प्रसाधनकक्ष का प्रयोग करते हैं.
इसी प्रकार आग से क्षतिग्रस्त मरीज विभाग (बर्न) को छोड़कर बाकी किसी विभाग के बाहर एयर कूलर नहीं है. मरीजों के परिजनों को चिलचिलाती धूप में फैन की गरम हवा सेंकने के अलावा कोई और चारा नहीं है. इलाज की खातिर कई लोग महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके से और कुछ तो समीप के राज्य से भी आते हैं. तथा ये सब हॉस्पिटल परिसर में ही बसेरा करते हैं. इस कारण इन सभी को भरी गर्मियों में असुविधा का सामना करना पड़ रहा है. सर्जिकल वार्ड में लिफ्ट की भी समस्या है. बिल्डिंग के केवल एक हिस्से की 2 लिफ्ट शुरू है. लेकिन हृदयस्थल में दिव्यांग तथा वृद्ध मरीजों को लाने-ले जाने के लिए प्रयोग की जाने वाली ‘स्ट्रेचर लिफ्ट’ बंद है.
सर्जिकल वार्ड के हर विभाग से कूड़ा उठाने के लिए तथा इमरजन्सी में मरीजों को उनके विभाग तक छोड़ने हेतु 3 बैटरी रिक्शा (ई-रिक्शा) की सुविधा उपलब्ध है. किन्तु इनमें से एक का टायर पंक्चर होने से रिक्शा बंद पड़ा था. इस बारे में सबसे निचली मंजिल पर तैनात ‘एमएसएफ’ के सुरक्षाकर्मी को छेड़ने पर, उसने दो टूक जवाब देते हुए वह रिक्शा आज सुबह ही ख़राब होने की बात कही.
एक तरफ जहां सरकार ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का नारा देकर हाइटेक प्रचार में जुटी है, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री के गृहनगर में शीर्ष सरकारी अस्पताल (मेयो) की यह दशा है। मरीजों को अच्छी सुविधाएं मुहैय्या कराने के नाम पर बस लुभाया जा रहा है. इलाज की सख्त जरूरत, उससे मरीज और उनके परिजनों में आयी बेबसी और ख़ामोशी अस्पताल प्रबंधन एवं कर्मचारियों के लिए बोनस की तरह है. स्वच्छ भारत की तरह ‘साफ़, सुविधापूर्ण एवं मरीज के प्रतिबद्ध अस्पताल’ के लिए मिशन चलाने की जरूरत क्या कभी अस्पताल प्रबंधन और सरकार को महसूस होगी ?
—Swapnil Bhogekar