शिक्षा को अब तक समाज का सबसे पवित्र और मूल्याधारित क्षेत्र माना जाता रहा है। लेकिन नागपुर सहित संपूर्ण विदर्भ क्षेत्र में जो खुलासा सामने आया है, वह इस विश्वास को झकझोर कर रख देता है। इंजीनियरिंग की CAP Round प्रक्रिया के दौरान कुछ एजेंट्स मराठी भाषी छात्रों को ‘हिंदी माइनॉरिटी’ के रूप में दिखाकर उन्हें विशेष कोटे में प्रवेश दिला रहे हैं। यह घोटाला एक संगठित रैकेट के रूप में वर्षों से काम कर रहा है और हाल ही में नागपुर टुडे की विशेष जांच में इसका पर्दाफाश हुआ है।
यह सिर्फ घोटाला नहीं, सुनियोजित साजिश है
यह कोई छोटा-मोटा फर्जीवाड़ा नहीं है। इसके पीछे करोड़ों की डोनेशन डीलिंग, फर्जी प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल, कुछ शैक्षणिक संस्थाओं की मिलीभगत और संबंधित प्रशासन की चुप्पी शामिल है। और सबसे दुखद पहलू यह है कि इसका सीधा नुकसान ईमानदारी से पढ़ने वाले मेहनती और गरीब छात्रों को हो रहा है।
कैसे होता है यह खेल?
इस रैकेट की कार्यप्रणाली बेहद संगठित और सुनियोजित है।
- जिन छात्रों के CET स्कोर कम होते हैं, उनके लिए एजेंट Leaving Certificate (स्कूल छोड़ने का प्रमाणपत्र) में मातृभाषा ‘मराठी’ को बदलकर ‘हिंदी’ दर्ज करवाते हैं।
- जहां मातृभाषा का उल्लेख नहीं होता, वहां Proforma “O” नामक फर्जी प्रमाणपत्र जोड़कर छात्र को ‘हिंदी भाषी अल्पसंख्यक’ बताया जाता है।
- इसके लिए स्कूलों की नकली मुहरें, झूठे हस्ताक्षर और कभी-कभी शिक्षा विभाग के कुछ लापरवाह अधिकारियों का मौन समर्थन भी मिलता है।
शासन व्यवस्था इस पूरे खेल को होते हुए भी मूकदर्शक बनी हुई है।
नागपुर में एजेंटों का एक्टिव नेटवर्क
नंदनवन, अंबाझरी, वर्धा रोड, सिविल लाइन्स, दिघोरी, सक्करदरा, त्रिमूर्ति नगर आदि इलाकों में एजेंटों के कार्यालय अत्यंत भव्य हैं — एसी ऑफिस, रिसेप्शनिस्ट, स्टाफ और महंगी गाड़ियाँ (Mercedes, BMW, Jeep) इनकी शान को दर्शाते हैं।
कुछ एजेंट तो “पैकेज डील” में काम करते हैं — CET स्कोर के हिसाब से डोनेशन की रकम तय होती है।
कोट्यवधी की कमाई, हर साल सैकड़ों फर्जी प्रवेश
इस रैकेट के जरिए हर साल सैकड़ों छात्रों को अल्पसंख्यक कोटे से दाखिला दिलाया जाता है। इस प्रक्रिया से एजेंटों की कमाई करोड़ों में पहुंच चुकी है।
प्रशासन मौन, छात्र मौन…!
CET Cell, शिक्षा संचालनालय या संबंधित सरकारी तंत्रों ने अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।
कई कॉलेजों द्वारा भी जानबूझकर इस प्रक्रिया पर आंखें मूंद लेने की संभावना जताई जा रही है।
परिणामस्वरूप, योग्य, मेहनती और निर्धन छात्रों को उनके हक की सीट नहीं मिल पा रही है — उनके सपनों पर पानी फिर रहा है।
नागपुर टुडे के पास पुख्ता सबूत
इस प्रकरण से जुड़े छात्रों, एजेंटों और कॉलेजों की सूची नागपुर टुडे को प्राप्त हो चुकी है। लेकिन किसी भी छात्र के भविष्य को खतरे में न डालते हुए, फिलहाल यह जानकारी गोपनीय रखी गई है।
अब भी नहीं जागा प्रशासन तो…?
शिक्षाविदों, पालक संघों और छात्र संगठनों ने इस पूरे घोटाले की तात्कालिक और सख्त जांच की मांग की है।
सरकार को अब रट्टा मारकर रोते छात्रों की आंखों के आँसू देखने बंद कर, इन एजेंटों पर कठोरतम कार्रवाई करनी चाहिए।
बनावट प्रमाणपत्रों की जड़ तक पहुँचकर इस शिक्षा माफिया का समूल नाश करना आवश्यक है।
यह केवल अनियमितता नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के भविष्य पर हमला है
जब शिक्षा जैसे निःस्वार्थ क्षेत्र में भी पैसे से सीटें खरीदी जाने लगें, तो समाज कितना भी डिजिटल या स्मार्ट बन जाए — वह भीतर से सड़ा हुआ ही रहेगा।
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