Published On : Thu, Jun 27th, 2019

मराठा आरक्षण पर फैसला, बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा सरकार को आरक्षण देने का अधिकार

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नागपुर: संवैधानिक रूप से 50 प्रतिशत आरक्षण सीमित है, लेकिन इसे असाधारण परिस्थितियों में बदला जा सकता है. सरकार को आरक्षण देने का अधिकार है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैसला दिया है कि सरकार को आरक्षण देने का अधिकार है. इसके साथ ही आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि मराठा समुदाय सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है और मराठा समुदाय में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण मान्य हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट की जज भारती डोंगरे और रंजीत मोर ने मराठा समुदाय को यह महत्वपूर्ण निर्णय देने से मराठा समाज को बड़ा दिलासा मिला है.

राज्य सरकार ने अस्तित्व में लाया हुआ मराठा आरक्षण कानून वैध होकर आरक्षण का प्रतिशत 12 से 13 प्रतिशत रखना होगा. यह उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है. राज्य के मराठा समाज को नौकरी और शिक्षा में आरक्षण देनेवाला कानून सविंधान के ढांचे में बताकर मराठा आरक्षण पर रोक लगाने की याचिका कोर्ट ने खारिज की है. असाधारण स्थिति में समाज के पिछड़ापन सिद्ध होने के बाद योग्य आरक्षण देने का सरकार को अधिकार है. इसमें केंद्र सरकार ने 14 अगस्त 2018 को सविंधान संशोधन में कोई रोक नहीं है. ऐसा कोर्ट ने स्पष्ट किया है.

राज्य के मराठा समाज को सरकारी नौकरियां और शैक्षणिक प्रवेश में 16 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय के विरोध और समर्थन में किए गए जनहित याचिका पर 6 फरवरी से लगभग हरदिन अंतिम सुनावनी लेने के बाद मुंबई हाईकोर्ट ने 26 मार्च को इस याचिका पर अपना निर्णय रोककर रखा था. इसके बाद मई महीने की छुट्टियों में मराठा आरक्षण की याचिका पर सुनावनी नहीं हो सकी. इसपर हाईकोर्ट ने आज अंतिम फैसला सुनाते हुए यह निर्णय दिया. रिजल्ट के समय कोर्ट रूम में और बाहर काफी भीड़ थी.

मराठा समाज को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून राज्य सरकार ने 30 नवंबर 2018 को बनाया. उसके बाद उसको चुनौती देनेवाली जनहित याचिका जयश्री पाटील, संजीत शुक्ला, उदय भोपले ने डाली थी. तो वहीं वैभव कदम, अजिनाथ कदम, अखिल भारतीय मराठा महासंघ और इनके साथ ही अनेकों ने इस कानून के समर्थन में याचिका लगाई थी. इन सभी याचिका पर बेंच ने एकत्रित अंतिम सुनावनी लेकर 26 मार्च को पूरी थी.
मराठा समाज की कुल लोकसंख्या राज्य की कुल लोकसंख्या के 32 प्रतिशत है. यह सरकार का दावा गलत है और राज्य पिछड़ा प्रवर्ग आयोग ने गलत विश्लेषण करते हुए हुए मराठा समाज को पिछड़ा बताने का दावा संजीत शुक्ला की ओर से अॅड. प्रदीप संचेती ने कोर्ट में किया था.