Published On : Tue, May 4th, 2021

मंत्रौषधि सभी रोगों को मिटा सकती हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर : मंत्रौषधि सभी रोगों को मिटा सकती हैं यह उदबोधन व्याख्यान वाचस्पति दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

गुरुदेव ने धर्मसभा में कहा भाव काल में धर्म ध्यान करनेवाले साधु हो रहे हैं, रत्नत्रय से शुद्ध मुनिराज हैं. जो निष्कलंक, निर्दोष साधना करते हैं वह साधु लौकांतिक देव बनते हैं, निर्वाण को प्राप्त करते हैं. माता जिनवाणी करती हैं. कोरोना नहीं होता तो घर में वर्चुअल पूजन नहीं होता, लोग एकसाथ घर नहीं बैठते, शांतिधारा नहीं देखते. मंत्र, आराधना मंगलकारी हैं. जिन भक्ति आराधना दुखों से बचाएंगी, पुण्य को भरनेवाली हैं. निरंतर जिन साधना करते रहे. भक्तामर स्तोत्र का एक एक श्लोक मंगलकारी हैं, करते रहें.

गुरुओं का दर्शन अमृत संजीवनी बूटी हैं- आचार्यश्री सुंदरसागरजी
आचार्यश्री सुंदरसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा ने कहा गुरुओं का दर्शन अमृत संजीवनी बूटी हैं क्योकि कोरोना काल में आपको वर्चुअली गुरुओं के दर्शन घर बैठे हो रहे हैं. भगवान महावीर के शासन में हम चल रहे हैं, उनकी दिव्य देशना रसास्वादन कर रहे हैं. जिनवाणी, जिस वाणी को सुनकर लाखों लोग सम्यग दर्शन लाभ करते है, जिनवाणी सुनकर महाव्रती बन जाते हैं, जिस वाणी को सुनकर एक मुनि मोक्ष को प्राप्त कर लेता हैं. हमारे जैन धर्म में अनेक आचार्य हुए उसमें आचार्य कुंदकुंद स्वामी हैं. कुंदकुंद स्वामी ने अपनी आत्म साधना से, अपने साधना के बल पर, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, अष्टपाहुड ऐसे ग्रंथ लिखे पढ़ने से हमारे लिये आत्मा की चर्चा की, कुंदकुंद स्वामी के शास्त्रों को पढ़कर लगता हैं कही न कही भेद विज्ञान विद्यमान हैं. मोक्ष को पाने के लिए एक ही मार्ग हैं सम्यग दर्शन, सम्यग ज्ञान, सम्यग चारित्र, इसके बिना मोक्ष मिलनेवाला नहीं हैं. हमें मोक्ष प्राप्त करना है तो सम्यग दर्शन, सम्यग ज्ञान, सम्यग चारित्र की एकता आवश्यक हैं. तो ही हमारा मोक्षमार्ग प्रशस्त होगा. जिन शासन में जितने भी मुमुक्षु हो चाहे श्रावक, मुनि हो आग्नेय भगवान की आत्मा की प्राप्त करना उनका लक्ष्य हैं. मोक्ष दो मार्ग हैं उपासना मार्ग और वैराग्य मार्ग हैं.

उपासना का मार्ग श्रावक का मार्ग हैं. श्रावक उपासना करता हैं तो जानता हैं, उपासना किसकी करता हैं. सर्वज्ञ वीतरागी हितोपदेशी ऐसे केवली भगवंत, सिद्ध भगवंत ही मेरे लिए आते हैं. मैं थोड़ा पुण्य कमा लूं इसलिए श्रावक भक्ति करता हैं. पाप सर्वथा जो योग्य हैं, कोई भी व्यक्ति पाप नहीं चाहता और ना पाप करना चाहता हैं इसलिए प्रत्येक शास्त्र में पाप बताया हैं. पुण्य कर्म से उदय सुख कर्म पाते हैं. पूजा, गुरुओं की उपासना, साधुओं की सेवा करना, जिनवाणी का स्वाध्याय करना यह सब पुण्य हैं. हमारा उद्देश्य भगवान आत्मा की प्राप्ति करना हैं. पुण्य से मोक्ष मिलेगा ऐसी हमारी मान्यता हैं, पुण्य से रहित होकर मोक्ष मिलेगा. दूसरों की निंदा करना, दूसरों के बारे मे बुरा सोचना यह सब पाप हैं, अशुभ भावों में जाना पाप हैं. जिनेन्द्र भगवंत की पूजा करना, आचार्य भगवंत के उपदेश सुनना, स्वाध्याय करना और मुनिराजों की सेवा करना यह एक पुण्य हैं.

संयम पालन करना, देशभक्ति करना, सम्यग दर्शन प्राप्त करना यह सब पुण्य हैं. कोरोना ने पूरे विश्व में तबाही मचाई हैं, जिनेन्द्र भगवान का पूजन, आराधना, पुण्य पर्याय को देखकर जिनेन्द्र भगवान की भक्ति से आत्मा का मनोबल बढ़ेगा. कोरोना जैसे बीमारी से अपने आप सुरक्षित रख सकते हैं. मनोबल बढ़ाना हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना हैं तो जिनेन्द्र भगवान की आराधना करो, जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करने से, स्वाध्याय करने से, मुनिराजों की सेवा करने से बीमारी दूर होगी. हम घर में भाव पूजा करें, ध्यान करें, घर बैठे विधान, पूजा करें, घर बैठे स्वाध्याय करें क्योंकि हमारा मनोबल बढ़े. हमारी बुद्धि बढ़े, बुद्धि बढ़ते रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, मनोबल बढ़ेगा. हम अपने आत्म तत्त्वका चिंतन करें. जो आत्मा को पवित्र करे वह पुण्य, जो आत्मा को निर्मल करें वह पुण्य हैं. जो शुद्ध भाव, श्रद्धा से जिनेन्द्र भगवान की आराधना करेगा उसके पास कोरोना नहीं आयेंगा. धर्मसभा में जयकीर्ति मुनिराज उपस्थित थे. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया.