Published On : Fri, May 7th, 2021

पोल-खोल अभियान जारी रखने वाले कर्मी के खिलाफ प्रबंधन एकजुट

Advertisement

– नागपुर विश्वविद्यालय की कर्मचारी सोसाइटी में धांधली,सजायाफ्ता कर्मियों को शह दे रहा तमाम प्रबंधन

नागपुर – राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय कई दशक से विवादों में रहा,नियमित धांधलियां/ग़ैरकृत होती रहती हैं,लेकिन आजतक किसी भी प्रबंधन ने इसे समाप्त करने की कोशिश नहीं की,लगे तो चुप्पी साध उन्हें शह देने जरूर लगे.दूसरी ओर विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग का जागरूक कर्मी राजेश खानोरकर आयेदिन विश्वविद्यालय प्रबंधन की खामियां निकाल उसे दुरुस्त करने की मांग कर रहे तो विश्वविद्यालय प्रबंधन उसके खिलाफ लामबंद होकर उसे नौकरी से बर्खास्त करने की जीतोड़ कोशिश कर रहे.उक्त घटनाक्रम से ऐसा महसूस हो रहा कि पतसंस्था की पुरानी और वर्त्तमान कार्यकारिणी में कोई फर्क नहीं।

Gold Rate
13 May 2025
Gold 24 KT 94,300/-
Gold 22 KT 87,700/-
Silver/Kg 97,300/-
Platinum 44,000/-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

हालांकि किसी मामले में खानोरकर 48 घंटे पुलिस हिरासत और 12 दिन जेल में रहे,इस आधार पर प्रबंधन ने कई दफे उसके खिलाफ कार्रवाई कर चुकी हैं,फ़िलहाल उसे निलंबित कर दिया गया और विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश के लिए बिना अनुमति प्रवेश नहीं दिया जाता।क्यूंकि 180 दिन में प्रबंधन उस पर कोई आरोप सिद्ध नहीं कर पाई,इसलिए उसे 100% वेतन देने का आदेश जारी होने के बाद भी आजतक सिर्फ 50% मासिक वेतन दिया जा रहा.इससे क्षुब्ध होकर खानोरकर प्रबंधन के खिलाफ न्यायालय की शरण में हैं,प्रबंधन उसे केस वापिस लेने बाद नौकरी पर पुनः लेने का दबाव बना रहा.

37 लाख की अनियमितता,21 लाख वसूली का आदेश
खानोरकर की शिकायत पर DDR ने पतसंस्था की ऑडिट संलग्न ऑडिटर(दुबे) से करवाई तो विश्वविद्यालय की कर्मचारियों की पतसंस्था में वर्ष 2015-16 में 37 लाख रूपए की धांधली होने का मामला प्रकाश में आया.जिसके बाद विश्वविद्यालय प्रबंधन के हस्तक्षेप बाद DDR कार्यालय से संलग्न दूसरे ऑडिटर(ताजणे) ने उसे 20.59 लाख की धांधली बताया।जिसकी वसूली के लिए तत्कालीन पदाधिकारियों को दोषी ठहराया गया.इस हिसाब से प्रत्येक पदाधिकारियों से 1.58 लाख रूपए वसूली का प्रस्ताव दिया था.इस प्रकरण में जिला उपनिबंधक कडु के आदेश की अवमानना उपनिबंधक पांडे ने की,ऐसा आरोप जागरूक कर्मियों ने लगाया।

आदेश यह भी दिया गया था कि जब तक उक्त राशि पदाधिकारियों से वसूल नहीं की जाती एवं इस मामले की जाँच पूरी नहीं होती तब तक उन्हें किसी भी प्रकार का NOC न दिया जाए.इसके बावजूद कुछ तत्कालीन पदाधिकारियों को सेवानिवृति बाद NOC दी गई.

मांडोकार को सेवानिवृत्ति बाद कायम रखा
उक्त दोषरोपण में तत्कालीन पदाधिकारी मांडोकर का भी समावेश था,इनकी सेवानिवृत्ति बाद न सिर्फ इन्हे NOC दी गई,बल्कि इन्हें 462 रूपए प्रति दिन के हिसाब से काम पर रखा गया.दूसरी ओर खानोरकर पर भी जाँच शुरू थी,उसे घर बैठा दिया गया.नियमानुसार NON TEACHING STAFF सम्बन्धी निर्णय विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार द्वारा लिया जाता हैं लेकिन मांडोकर के सम्बन्ध में निर्णय VC ने खुद सिफारिश कर 8/8/18 को काम पर रखा था.

मारोती बोरकर को संचालक मंडल से निकाला गया
पतसंस्था की वर्त्तमान कार्यकारिणी में अस्थापना विभाग के मारोती बोरकर का समावेश था,यह तत्कालीन (वर्ष 2015-16) कार्यकारिणी में भी था,इनसे भी 158000 रूपए वसूली का आदेश पारित होने के बाद इन्हें वर्त्तमान कार्यकारिणी से हटा दिया गया.बोरकर का अस्थापना जैसे महत्वपूर्ण विभाग से तबादला करने की मांग वर्त्तमान कार्यकारिणी ने VC से की थी.

विवादों में रहे प्रदीप मसराम
खानोरकर ने RTI के तहत प्रदीप मसराम से जुड़ी कुछ जानकारियां विश्वविद्यालय प्रशासन से मांगी थी,वह यह कि मसराम 10 वीं में कितने वर्षों के लिए रेस्टीकेट किये गए थे और विश्वविद्यालय के सामान्य प्रशासन विभाग में रहते हुए एक परीक्षार्थी को गंदी फिल्म दिखाया था,तब PRO VC परासर ने वह वीडियो जप्त किया था,इसके बाद जाँच समिति गठित की थी,इसकी रिपोर्ट दी जाए.

मसराम ने अपने ही खिलाफ की अपील खुद ही ख़ारिज कर दिया।वे अगले माह सेवानिवृत होने वाले हैं.अनुभव प्रमाणपत्र के नाम पर DISCHARGE CERTIFICATE दिया वर्त्तमान में नविन परसराम मुंगले डिप्टी रजिस्ट्रार हैं,इनकी नियुक्ति वर्ष 2003 में अधीक्षक पद पर हुई थी.इनकी नियुक्ति के वक़्त विद्यापीठ के आवेदन की स्क्रूटनी नहीं की गई और न ही आवेदन पर कुल सचिव का हस्ताक्षर हैं.इन्होंने अनुभव प्रमाणपत्र के नाम पर HI-TECH RESISTORS PVT. LTD. का डिस्चार्ज प्रमाणपत्र जोड़ा था.

302 के तहत सजायाफ्ता कभी निलंबित नहीं किया गया
सेवानिवृत अरुण वाजपेयी पर उनके कार्यकाल में 302 के तहत मामला दर्ज हुआ था,इसके बाद भी और 2 बड़े मामला दर्ज हुआ.इसके बाद भी उन्हें कभी सस्पेंड नहीं किया गया और तो और NOC भी दे दी गई.इनके द्वारा मेडिकल प्रमाणपत्र में डॉक्टर शाहू के कम्पाउंडर का हस्ताक्षर युक्त कई प्रमाणपत्र विश्वविद्यालय में जमा करवाए गए.जबकि इस फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने पर डॉक्टर पर भी कार्रवाई होनी चाहिए थी.

करोड़ों की अफरातफरी वाला भी निलंबित नहीं किया गया
रविंद्र पोटदुखे पर करोड़ों की अफरातफरी का आरोप लगा था,एक साल जेल में भी रहा.इसने 16 नंबर का आयकर विभाग का फॉर्म भी बदल डाला,इसके मासिक वेतन स्लीप में चेक क्रमांक तक अंकित नहीं ,इतनी खामियां के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई.

उल्लेखनीय यह हैं कि सिर्फ 12 दिन जेल में रहने वाला और विश्वविद्यालय की पोल खोलने वाला खानोरकर को विश्वविद्यालय से बाहर करने के लिए तमाम प्रबंधन एकजुट होकर सक्रीय हैं.जबकि यह एक राष्ट्रीय पक्ष का पदाधिकारी हैं,इस पक्ष के विश्वविद्यालय में सीनेटर भी हैं,क्यूंकि हमाम में सब नंगे हैं इसलिए वे भी इसका साथ नहीं दे रहे.

Advertisement
Advertisement